पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष एकविंश भाग.djvu/५४४

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विभाव-विभाषित

__भयानकरसका, जिससे भय उत्पन्न होता है, उसे | विभावत्य (सं० लो०), विभावका माय । 'आलम्यन' तथा उस भीतिप्रद पदार्थकी विभीषिकादि विभाचम् (सं० वि०) प्रकाशक, विकाशशील। अर्थात् उसकी प्रतिमोषणा चेष्टाको हो .उद्दीपर' विभाष ) विभायन (सं० को०) घि-मायिल्युट । १ विचिन्तन, , विशेषरूपसे चिन्तन । विभावयति कारणं विना कार्या- वीभत्सरमका, दुर्गन्धित, माम, धिर, विष्ठा, त्पत्ति चिन्तयति पण्डितमिति, वि-भावि-ल्यु-युच था। मादि 'मालम्बन' तथा उन सय द्रव्यों में क्रिमि मादि होने- २ अलङ्कारविशेष। विना कारणफे जहां कार्योत्पत्ति से पह 'उद्दीपन' विभाव है। होती है, वहां उसे दिभावना अलङ्कार कहते हैं। यह अन तरसका,-अलौकिक वस्तु' मालम्बन तथा उत्तः और अनुक्तफे भेदसे दो प्रकारका है। ३. पालन । उस वस्तुको गुणमहिमादि 'उद्दीपन' विभाव है अर्थात् विभायना (सं० स्रो०) वि.मायि, युग टाप । ' अलङ्कार. जहां साधारण मनुष्यों के अकृतसाध्य विस्मयकर कार्य विशेष । इसमें कारणके बिना कार्यकी उत्पत्ति या अपूर्ण दिखाई देगा यहां यह व्यापार लालम्यन तथा उसको कारणसे कार्यकी उत्पत्ति . या प्रतिबन्ध होते हुए भो गुणायली उद्दीपन विभाव होगी। कार्यकी सिद्धि या जिस कार्यका कारण नहीं ___हास्यरमका,-जिन सय वस्तुगों या व्यक्तियोंका हुमा करता, उससे उस कार्यकी उत्पत्ति गया विरुद्ध अति कदर्यरूप, वाफ्य और अङ्गमङ्ग आदि देख कर कारण किसी कार्यको उत्पत्ति या कार्यसे, कारणको लोगोंको हंसी भाती है, ये सय पस्तु या व्यक्ति 'माल- | उत्पत्ति दिखाई जाती है। म्यन' तथा वे सब रूपं और अङ्गविष्कृत्यादि 'उद्दोगन', "विभाषनीय (सं० वि०)मावना या चिन्ता करने योग्य। .. विमाघ । विभावरी ( स० स्त्री० ) १राति, रात । २ हरिद्रा, हल्दी। ___ करुणरमका,-शोकको विषयीभूत वस्तु अर्थात् ३ कुट्टनी, कुटद्ध, इतो। ४ पक्र स्त्री, टेढी.चालकी औरत । . जिसके लिये शोक मनाया जाता है, वह 'आलम्पन' है ५मुखरा स्त्री, बहुत बड़बड़ करनेयाली स्त्री। ६ विवाद. तथा उस शोच्य विषयकी दाहादिका (जैसे मृत आत्मीय यस्रोमुण्डो। ७ मेदापक्ष । ८ यह रात जिसमें तारे को मुमूर्ष कालीन यन्यादि ) अषस्था 'उद्दीपन' विभाव चमकते हो। मन्दार नामक विद्याधरको एक कन्या। (मायडेयपु० ६३३१४) १० प्रचेतसकी नगरीका नाम । ___ शान्तरसंका, -- नश्वरत्वप्रयुक्त इन्द्रियभोग्य वस्तुभी- विभाघरोयुग (सल0) हरिद्रा और दामहरिद्रा । को निःसारता ( सारराहित्य या परमात्मस्वरूपत्व ) विभावरीश (सं.पु०) चन्द्रमा, निशापति । 'शालग्यन' तथा पुण्याश्रम, हरिक्षेत्र, नैमिषारण्य आदि विभावसु (स.नि.) १ विभा या ज्योतिविशिष्ट, अधिक रमणीय वन और महापुरुषकी सङ्गति ये सब 'उहीपन' प्रभावाला । (भूक ३२२१२) (पु.) विमा प्रमा पर विभाव हैं। वसुसमृद्धिर्यस्य । २ सूर्य। (भारत ११८६ ) ३ अर्क- विभावक (सं०नि०) यि-भृण्वुल ( तुमुनयवुभौ क्रियायो । वृक्ष, माकका पौधा। ४ नि, आग। ५चित्रकक्ष, पा ११०) क्रिया मिति एजुल । चिन्तक, चिन्ता करने- चीता । ६ चन्द्रमा ७ पक.प्रकारका हार। वसुपुत्रभेद । घाला। (मागवत ६।६।१०) ६ सुरासुरपुल। (भागवत १०५६।१२) . १० दनुके पुन मसुरभेद । (मागपत ६६३०) १९, नरक- धर्म ही 'आलम्पन' हे तथा धर्म शास्त्रादि उसका 'उद्दीपन' विमाव पुत्रभेद । १२ ऋषिभेद । ( गहाभारत) १३ पक गन्धर्व जिसने है। क्ष्याषीरका-अनुकम्पमीय अर्थात् दयाका पात्र, 'आलम्बन' |, गायत्रीसे वह सोम छीना था जिसे वह देवताओंके लिये तथा दीन अर्थात दरिद्रादि की कातरोक्ति आदि उद्दोपन विमाव | ले जा रही थी। १४ गजपुरके पक राजा। (कथासरित् ) है। युद्धवीरका विजेतव्य अर्थात् पतिद्वन्द्वी व्यक्ति 'भालम्पन' विभाषित (स. त्रि०).१ इष्ट, देखा हुआ। .२ अनुभूत, तमा उसको स्पर्दादि उदीपन!: . किया हुआ। ३ विचिन्तित, विचारा हुआ।