पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष एकविंश भाग.djvu/५५०

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४७२ विभोतिक-विभीषण गुण-कटु, तिक्त, कपाय, उष्ण, कफनाशक, आंखको । विरलाभके बाद रावणके साथ विभीषण भी लड़ा- रोशनी बढ़ानेवाला, पलितन, विपाकमें मधुर। इसका पुरीमें आये। गन्धर्वाधिपति शीलूप की कन्या सरमाके मान गुण-तृष्णा, सदी, कफ और वातनाशक, मधुर साथ उनका विवाह हुआ। . . . मदकारक । इसके तेलका गुण-स्वादु, शीतल, केश- : सीता हरण कर जब रावण लङ्कामें लौटा तव रावण- बर्द्धक, गुरु, पित्त और वायुनाशक । ( राजनि०) के इस आचरणसे धार्मिक विभोपणका प्राण पथित विभीतिक (संपु०) यिमीतक, यहेड़ा! हुमा । सती साध्वी सीताकी परिचर्याका भार प्रिय विभोपक (सं० वि०) भयानक, हरानेवाला । पत्नो सरमा पर उन्होंने दिया था। इसके बाद सीताकी विभीषण ( स० पु०) विभोपयतीति विमोवि (नन्दि खोजमें हनुमान लङ्कामें उपस्थित हुए । अनुमानक रावण- महिपचीति । पा ३२१११३४) इति ल्यु । १ नलतृण, नरसल- के प्रति निन्दावाद और रामचंद्रको बड़ाई सुन कर रावण- का पौधा । (त्रि०) २ भयानक, उरानेवाला । "इन्द्रो | को वड़ा क्रोध आया । और तो फ्या, उसने हनुमानको विश्वस्य दमिता विभोषण" (ऋक ५६३४१६) 'विमोपणः | मार डालनेको आज्ञा दे दो। इस समय विभीषणने हो भयजनक' । ( सायण) नीतिविरुद्ध दूतवधको गहित कार्य बता कर रावणको (पु०) ३ लङ्कापति रावणका कनिष्ठ भ्राता गौर शांत किया। इसके बाद जव विभोपणने सुना कि भग. . भागवान् रामचन्द्र का परम मित्र, सुमाली राक्षसका वान् रामचन्द्र सैन्य ले कर आ रहे हैं, तब उन्होंने रावणसे दीहित । विश्रया मुनिफे औरस और कैकसी राक्षसीके सीताको पुनः रामचन्द्रजीके पास लौटा देने के लिये कई गर्भसे इनका जन्म हुआ था। सौ बार अनुरोध किया, किन्तु रावणने उनकी एक भी न एक दिन सुमालीने पुष्पकरथ पर विराजमान कुघर सुनो । उल्टे विभीषणकी पुनः पुनः हितकथासे विकल हो को देख कर वैसा ही दौहित्रप्राप्तिको आशासे गुणवती कर रावणने उनसे कहा था-"विभीषण ! मेरा ऐश्वर्य कन्या कैफसीको विश्रवाके पास भेज दिया। ध्यानस्थ तथा यश तुमसे देखा नहीं जाता । रे कुलकलङ्क ! तुमको विश्रयाने कैकसीको समीप पाते देख उसका मनोगत वार धार धिक्कार है । इस तरह उसने तिरस्कार कर भाव समझ कर कहा, "इस दारुण समयमें तुम आई हो, उनको अपने यहांसे निकाल दिया। आतएव इस समय तुम्हारे गर्भसे दारुण राक्षस ही जन्म विभीषण वहुन धीर, फिर भी परम धार्मिक थे।' लेंगे।" उस समय कैकसीने सानुमय प्रार्थना की, 'प्रभो। उन्होंने समझ लिया था कि रावण जिस तरह पाप कार्यमें । मैं ऐसे पुत्र नहीं चाहती। मेरे प्रति आप प्रसन्न हों। लिप्त हो रही है उससे उसकी वचनेकी गाशा नहीं। इस पर ऋषिने सन्तुष्ट हो कर कहा, 'मेरी वात अन्यथा उन्होंने इस तरह तिरस्कृत हो कर चार राक्षसोंके साथ होनेवाली नहीं। जो हो, तुम्हारे गर्भसे जो अन्तिम पुन राजधानी परित्याग की | धर्मरक्षाके लिये उन्होंने आत्मीय होगा यह मेरे आशीर्वादसे मेरे वशानुरूप और परम स्वजनों के प्रति जरा दटिपात भी नहीं किया। इस धार्मिक होगी।' ऋपिके आशीर्वाद के फलस्वरूप विभीषण समय भगवान् रामचन्द्र समुद्र के उस पार वानर सैन्यों हो अन्तिम पुत्र हुए। . के साथ उपस्थित थे। विभीषण अपने चारों अनु विभीषणने भी रावण और कुम्भकर्णके साथ एक चर राक्षसों के साथ यहां आये.जहां रामचन्द्रजी मौजूद समस वर्ष तपस्या की थी। ब्रह्मा जय घर देनेके लिये गये | थे। पहले सुग्रीव उनको शत्र का दूत समझ कर मार तब विभीषणने उनसे प्रार्थना की, "विपद्में भी मेरी धर्ममें . डालने पर उद्यत हुए थे, किन्तु शरणागतवत्सल भगवान् मति हो। नित्य ध्रुचिन्ता वयमें स्फुरित हो।" ब्रह्माने श्रीरामचन्द्रने रोक दिया। फिर भी सुप्रावने कहा था, भो जय अधर्म में | 'विपद् के समय भाईको छोड़ जो विपक्षी पक्षका माश्रय तुम्हारी मा.. अमरत्य लाभ लेता है उसका विश्वास नही करना चाहिये ।' रामचन्द्र करोगे।" जीने विभीषणको मिनरूपसे ग्रहण किया था। उनसे . वर दिया, .