पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष एकविंश भाग.djvu/५५८

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४ "विमर्दिन्–विमलकीर्चि मचा हुआ। ५ चूर्णित, चूर किया हुआ । ६ संघटित ।। विमल ( स० वि०) विगतो मलो यस्मात् ।। निल ७ अपमानित । मलरहित, स्वच्छ, साफ । पर्याय-दीध्र, प्रपत। ( शब्द .. विमहिन (सं०नि०) वि-मृद इनि । विमद नकारक, ‘रत्ना० )२ चारु, सुन्दर । ३ शुभ्र, सफेद । ४ निष्कलङ्क, खूब मर्दन करनेवाला। २ कुचलनेवाला, पीसनेवाला। विना ऐवका । (पु०) ५ तीर्थङ्करभेद, गत उत्सर्पिणीके ३ नष्ट करनेवाला । ४ यध करनेवाला, मारनेवाला । ५चे और पर्समान अवसर्पिणीके १३वे सई त् या विमहों ( स० वि०) विमदिन देखो। तीर्थाङ्कर । जैन देखो।' (हेम) ६ सुद्युम्नके एक पुत्रका . विमोत्य (सं० पु०) विमर्झदुत्तिष्ठतीति उद्-स्था क नाम । (भागवत ६१४१)(क्की०) ७ पद्मकाष्ठ। ८ रौप्य, . वह सुगन्धि जो कुमकुम आदि मलनेसे उत्पन्न हो। । चांदी। सैन्धव लवण, सेंधा नमक । (पद्यकनि०) विमर्श ( स० पु०) वि-मृश-घन । १ यितर्क, विचा- | १० उपधातुविशेष । पर्याय-निर्मल, स्वच्छ, अमला रना। २ तथ्यानुसन्धान, किसी तथ्यका अनुसन्धान । | 'खच्छधातुक। गुण-कटु, तिक्त, त्वग्दोष और मण- ३ विवेचना, मालोचना । ४ युक्ति द्वारा परीक्षा करना । नाशक। (राजनि०) . ५ असन्ताय । ६ अधेा , अधीरता। रसेन्द्रसारसमहमें इस धातुशोधनका विषय इस .. विमर्शन (सं० क्ली० ) वि-मृग-न्युट । १ परामर्श, वितर्फ । प्रकार लिखा हैं, मोलमें माक्षिक तथा विमलको रख २ मालोचना, समीक्षा। ३ शान, सम्भव । फर मूत, कांजी, तेल, गोदुग्ध, कदलीरस फुलथी, कलाय विमर्शिन् (स'. त्रि०) वि-मृश-इन् । विमर्शकारक। का काढ़ा, कोदो-धानका काढा इनके स्वेदसे क्षार, अम्ल- विमर्ण (सं० पु० ) वि.मृपघन । विचारणा, विचार। वर्ग और लवणपञ्चक, तेल और घृतके साथ तीन यार . २ असहन । ३ असन्तोष। ४ मालोचना । ५ नाट्याङ्ग पुट देनेसे विमल शुद्ध होता है। . . भेद, नाटकका एक गङ्ग। अपवाद, सम्फेट, व्यवसाय, जम्बीरी नीवूके' रसमें स्वेद दे कर मेषश्टङ्गी और द्रव, धुति, शक्ति, प्रसङ्ग, खेद, प्रतिषेध, विरोधन, प्ररोकदली रसमें एक दिन पाक करनेसे विमल विशुद्ध होता चना, आदान, और छादन ये सब विमर्षके भङ्ग हैं। है। (रसेन्द्रसारस० विमलशुद्धि) . इनका लक्षण यथा- ।' इस उपरस विमलको विना शोधन किये काममें नहीं दोपकथनको अपवाद, क्रोधसे भरो वातचीतको संफेट, | लाना चाहिये। लानेसे नाना प्रकारको पीड़ा उत्पन्न कार्य निर्देशक हेतुके उद्भयको व्यवसाय, शोक आदिके | होती है। वेगमे गुरुजनोंके आदर आदिका ध्यान न रखनेको द्रव, विमल-१ एक तांत्रिक भाचार्य । शक्तिरत्नाकरमें इनका . भय प्रदर्शन द्वारा उद्वेग उत्पन्न करनेको छ ति, विरोधको उल्लेख है । २ शङ्करके शिष्य पापादके पिता ! ३ राग . शान्तिको गति, अत्यन्त गुणकीर्तन या दोप-दर्शनको चन्द्रोदय नामक सङ्गीत प्रधक रचयिता । ४ तीर्थङ्कर- प्रसङ्ग, शरीर या मनकी थकावटको खेद, अभिलपित | भेद । ५ सह्याद्विवर्णित दो राजाओंक नाम। ( सड्या० . विषयमें सकावरको प्रतिपेध, कार्याध्यसको विरोधन, | ३४॥२६,३१) ६ एक दण्डनायक । इन्दोंने अर्बुद पहाडके प्रस्तावना समय नट, नटो, नाटक या नाटककार आदि. ऊपर एक मदिर बनाया और प्राम बसाया था । खरतर- फी प्रशंसाको प्ररोचना, संहार विषयके प्रदर्शित होनेको गच्छक अन्तर्गत प्रसिद्ध जैनसूरि बद्ध मानने उस मदिर- आदान तथा कार्योद्धार के लिये अपमान आदि सह लेनेको | में देवमूर्तिकी प्रतिष्ठा की थी। छादन कहने हैं । (साहित्यद० ६३७८-३६०) विमलक (स.पु० ) १ मूल्यवान् प्रस्तरभेद, एक प्रकार; 1. माहित्यदर्पणमैं इन सबफे उदाहरण दिये गये हैं। का नग या बहुमूल्य पर । २ भोज के अन्तर्गत तीर्थ घढ़ जाने के भयसे यहां पर नहीं लिम्बा गया! ' . ____ नाटकमें विमर्पका वर्णन करनेमें इन सब अङ्गोंका विमलकीर्ति ( स०'पु०) यक प्रसिद्ध बौद्धाचार्य | इन्होंने वर्णन अवश्य करना होता है। कई सूत्रोंकी रचना की है और उन्होंफे नाममें प्रसिद्ध है। भेद।