पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष एकविंश भाग.djvu/५६१

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चिमान-विमानपोत ४८१ मादिके पास होता है। वायुयान, उड़ाखटोला। आदि धातुओंसे बनाया जाता है उसे सङ्कीर्ण कहते विमानपोत देखो। संस्थत पर्याय-व्योमयान। (समर ) हैं। इसके सिवा स्थानक, भासन और शयन तीन "भुवनालोकन प्रीतिः स्वर्गिभिर्नानुभूयते।। प्रकारको विशेषता है। विमानकी ऊंचाईके अनुसार विलीमने विमानानातदापातमयात् पथि ॥" स्थानक, विस्तारफे अनुसार आसन और लम्यके मनुः (क मारस० २१४५) सार शयन कहा जाता है। इन तीन प्रकारफे विमानोंमे. २ इन्द्र के एक रथका नाम । ३ सार्वभौमगृह, सात से स्थानक-धिमान पर दण्डायमान देवमूर्ति, आसन. मञ्जिलका घर। विमान पर उपविष्ट देवमूर्ति और शयन-विमान पर "सरत्नसमाकीया विमानग हशोमितान् ॥" शायित देवमूर्ति प्रतिष्ठित करनी होगी। ___(रामायण १२०१६) रिमानके आयतनके अनुसार फिर शान्तिक, पौष्टिक, "विमानोऽस्रो देवयाने सप्तभूमे च सनि ।' जयद, भगत और सर्वकाम पे पांच प्रकारके भेद दिखाई (रामायण १।२५।१६ टीकाकृत निघण्टु ) ४ घोटक, घोडा। ५यानमाल, रथ, गाड़ो। ६ परि _____ साधारणत: विमान में गर्भगृह, अन्तराल और अर्द्ध- कछेदक । 'सोमापूपा रजसा विमान" ( क. २४०३)। मण्डप इन तीन अशोसे समस्त आयतन प्राचीर समेत 'विमानं परिच्छेदक समानमित्यर्थः (सापण) साधन, साढे चार या छः अशोमें विभाग करना होता है। यज्ञादि कर्गसाधन। इनमेंसे गर्भगृह दो, ढाई वा तीन भाग, अन्तराल डेढ़ या विमानमनियमश्व धिताम" ( क ३१३ दो भाग तथा अईमएडप एफ वा डेढ़ माग होगा। बड़े 'विमानं विमीयतेऽनेन फलमिति विमानं यज्ञादि कर्मसाधन पिमानके सामने ३ वा ४ मण्डप होते हैं। उनके नाम (सायया ) विगतः मानो यस्य । ८ यशात । ( भागात हैं, अमएडप, महामण्डप, स्थापनमण्डप, उत्तरीमण्डप । ५।१३.८०) असम्मान । १० परिमाण । ११ मरे हुए विमानके स्तम्मोकी ऊचाई ८ या १० समान भागों- • युद्ध मनुष्यको गरी जो सजधजके साथ निकालो! में विभक्त करनी होगी। इनमेंसे ६, ८ वा ७ स्तम्भ द्वार- जाती है। देश पर देने होते हैं। उनको चौड़ाई ऊंचाईसे माधी १२ पास्तुशास्त्रवर्णित देवायतनभेद । जिन सय मन्दिरों होगी। के शिखर पर पीरामोहकी तरह चहा रहती है, प्राचीन विमानक (सं० पु०) विमान-स्वार्थ-कन् । विमान देखो। पास्तुशास्त्र में उमीको विमान कहा है। मानसार नामक | विमानता (स'० स्त्रो०) विमानस्य भावः तल-टाप । मातीन पास्तुशास्त्रके १८ से २८ये अध्यायमें तथा विमानकामाय या धर्म, अपमान। काश्यपीय वास्तुशास्त्र में विमान बनानेको प्रणाली सवि. विमानत्य (सल0) विमानता देखो। म्तार लिखी है। मानसारके मतसे विमान एकसे घारह विमानन (स' लो०) वि.मान-स्युट । अपमान, तिर मंजिलका तथा काश्यपके मतसे एक्से १६ मंजिलका | स्कार। तथा गोल, चौपहला और मठपहलाको दाविद कहते है। विमानना ('स' क्लो०) विमानन-टाप् । अपमान, तिर. ये सब विमान फिर शुद्ध, मिश्र और सङ्घीण, इन तीन स्कार। भागोंमें विगक हैं। जो केवल एक प्रकारके मसाले | विमानपाल ( स० पु० ) अन्तरीक्षके पालनकर्ता देवन्द । अर्थात् पत्थर वाईट किसी एकसे पनाया जाता है उसे | विमानपुर-प्राचीन नगरमेद। शुद्ध कहते हैं। यही विमान श्रेष्ठ माना गया है। जो विमानपोत (सं० लो०) आकाशमार्गसे गमन करनेवाला विमान दो प्रकारके मसालों अर्थात् ईट और पत्थर) यान, हवाई जहाज । अथवा पत्थर और धातुसे बनाया जाता है उसे मिश्र तथा जगदीश्वरने मानव जातिको ही सर्वश्रेष्ठ जीव बना जो तीन या तीनसे अधिक उपादानोंसे अर्थात् लकी, कर इस जगत्में भेजा है। जिस वजहसे याज मानव Vol. xxI 121