पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष एकविंश भाग.djvu/५७३

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विराट । - पड़ता है, कि शूरमन मथुरा प्रदेशके निकटयत्ती कोई। मानारोके नामसे विख्यात हुभा है। यहां भी स्थान ही मनुका कहा हुआ मत्स्यदेश है। बहुतसी प्राचोन कीर्तियों का निदर्शन विद्यमान है। वास्तविक ' मथुरा जिले पश्चिमांश एवं जो मात्रारीसे घेराट ज्ञानेके रास्ते में कुशलगढ़ पड़ता है। विस्तृन भाग एक समय कुरक्षेत्र के नामसे विरायात था ____महाभारत में मत्स के समीप ही कुशल्प नामक जन- उसके दक्षिण राजपुतानेके अन्तर्मत वर्तमान जयपुर पदका उल्लेख है। कुशव्य और कुशलगढ़ के नामों पर- रायके बीच वैराट और माचाही नामक दो प्राचीन स्पर कैसा सम्यग्य है? स्थान अभी भो विद्यमान हैं। ये दोनों प्रशन प्राचीन चीन परिव्राजक यूपनचुग ईसाई बों शताब्दी में विराट राज्य और मत्स्य देशके नाम की रक्षा कर रहे यहां भाये थे। उन्होंने जो पो.लि.पे तो ले था पारि- हैं। विरार शहर दिल्लीसे १०५ मोल दक्षिण पश्विममें यात्र नामक. जनपदका उल्लेख किया है, उसे एवं जयपुर राजधानोसे ४१ मील उत्तर, रकवर्ण शैल- ही वर्तमान प्रत्लतसविदोने प्रावोन विराट वा परिवटित गोलाकार उपत्यकाकाफे घोचमें अवस्थित है। मत्स्यदेश स्थिर किया है। चोन परिघाजकके समय यह वैराट उपत्यका पूर्व-पश्चिममें ४से ५मोल लम्बी विराट वैश्य जातीय राजाके अधिकारमें था । यदा- एवं उत्तर दक्षिणमें इसे ४ मील चौड़ी है। इसके के लोगोंको योरता तथा रण निपुणताका परिचय चोन पूर्वा शफे अनाको अधिषयतामें विस्तीर्ण ध्वंसावशेषके परिवाजक भी दे गये हैं। मनुस्मृति में भी लिखा है, कि मध्य वरार शहर है। शहरके पिछले भागों वीजा कुरुक्षेत्र मत्म्यादि देशके लोग भा रणक्षेत्रमें अप्रगामी पहाड़ है। एक छोटी स्रोतस्वती के किनारसे उत्तर हो कर युस करते थे। पश्चिममें जा कर उपत्यकाका प्रधान प्रवेश पेय मिलता चीन परिव्राजक आगमनकाल में यहां एक हजार है। यह स्रोतस्वती बाणगंगाको एक शाखा है। घर ब्राह्मणों का वास था और १२ देवमन्दिाथे। इनके उक्त शहरको लम्बाई चौडाई आध मील पर्य घेरा अतिरिक्त ८ वौद्ध 'संघाराम और प्रायः ५ हजार बौद्ध प्रायः ढाई मील है। यर्तमान यराट शहर उक्त भूभाग. गृहस्थों का वास था। कनिहम अनुमान करते हैं, कि चीन- के सिर्फ एफचतुर्थाश स्थानमें फैला हुआ है। उसके परिव्राजकके ममय यहां लगभग तीस हजार लोगोंका चारों ओर 'कृषिक्षेत्र है, उसके मध्य कई स्थानों' यास था। प्राचीन मृन्मयपान एव तांयेकी खाने हैं। पहले यहां ' मुमलमानोंके इतिहाससे भी जाना जाता है, कि जो तावा पाया जाता था, उसका यथेष्ट परिचय मिलता ४०० हिजरो अर्थात् १००६ ई० में गजनीके सुलतान महल है। प्राचीन वराट नगर सैकड़ों वर्ण तफ परित्यक्त । मूदने वैराट पर आक्रमण किया था। यहांफ राजा उनकी 'रहा। तीन मौ वर्ष हुए, यहां फिरसे लोगोंका वास अधीनता स्वीकार करने को बाध्य हुए। फिर ४०४ हो गया है। एक समय यहाँके तायेको खान भारत, हिजरो अर्थात् १०१४ ईमें दूसरी बार यहां महमूदका प्रसिद्ध धी। इसीसे आईन इ-अकवरी में घिरारका नाम आगमन हुआ। हिन्दुओंके साथ उनकी घमसान लड़ाई पाया जाता है। - हुई। भावुरिहन लिम्बते हैं, कि महमूदने उस नगरको प्राचीन घेराटको पूर्वाश 'भीमजीका प्राम' कहलाता , विध्वंस कर डाला' तथा वहाँक अधिषासी दुर दूरके है। इसके पास ही मोमजीका होंगर या भीमजोकी देशों में भाग गये। फिरिम्नाके मतानुसार ४१३ हिजरी गुफा नामक एक पहाड़ है। इसको चोरीके अधिवासा | चा १०२२ ई० में फैराट (वैराट) और नारदिन (नारायण) मोमपदको दिखलाते है। ' नामक पार्यस्य प्रदेशोंक 'मधियासियों को मूर्तिपूजक . घराटसे ३२ मील पूर्ण पय मधुरासे प्रायः ६४ मोल जान कर उन पर शासन करने नथा उन्दे' इस्लाम धर्म- पश्चिम मावाड़ो नामक पक प्राचीन ग्राम है। कुछ | में दीक्षित करने के लिये मुसलमान-सेमापति अमोर मली लोग अनुमान करते हैं, कि मरस्यदेश हो अपनशमें। यहां आपे। उन्होंने शहर पर अपना अधिकार जमाया