पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष एकविंश भाग.djvu/५७४

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विराट .. लिया और यहां के अधिवाप्तियोंको धनसम्पत्ति लूट ली।। जय भारतवर्ष में इस स्थानके अतिरिक्त दूसरा कोई स्थान . उन्हें नारायणम एक खादी हुई लिपि मिली। उसमें लिखा, मत्स्य देश नहीं कहलाता है, तब यहां अवश्य ही विरार- था, कि नारायण मन्दिर वालोस हजार वर्ष पहले बनाया की राजधानो थी, इसमें प्रमाणको आवश्यकता नहीं।" गया था। इस समयके इतिहास लेखकोंने उक्त लिपि उक्त इतिहास लेखक पाएडयोंके छद्म में विराट का उल्लेख किया है। यह प्राचीन खेादित लिपि सम्राट् नगरमें थागमन, कोचक-अध, भीमकृत भामको दोधो प्रियदशों को अनुशासन कह कर प्रमाणित हुई है। इस प्रभृति फोर्शि कलाप स्थापनका वर्णन करते हुए कहते समय यह प्राचीन अनुशासनफलक कलकत्तेको पशिया- हैं," यहां प्रति वर्ष वैशावके महीने में मेला लगता था। टिक सोसाइटोमें सुरक्षित है। उक्त लिपिसे जाना जाता जिस स्थान पर मेला लगता था, यह स्थान जगलोंसे है, कि सम्राट प्रियदोंके समयमें भी वैराटनगर समृद्धि । ढका था। प्रति वर्ष मेले में ३।४ सहस्र यानी इकट्ठ शाली था। जो हो, राजपूतानेके वैराटको हो हम लोग होते थे। प्रातःकालसे ले कर तृतीय प्रहर पर्याप्त आदिमत्स्य या विराट देश स्वीकार कर सकते है। .. मेला लगा रहता था। इस मेले में खाद्य सामग्रियां वरावर पूर्व विराट । .. मिलती थी, केवल मत्स्य, घृत, दरिद्रा और काष्ठका क्रय महाभारतमें कारुप के बाद एक मत्स्यदेशका उल्लेख विक्रय नहीं होता था। यहां लोगो को भीड़ लगी रहती है। विहार और उड़ीसा अन्तर्गत शाहाबाद थो इसलिये वन्य जतुओं का भय विल्कुल हो नहीं रहता जिला हो पहले कारुपदेशके नामसे प्रसिद्ध था। अतएव था। . इस मेले में एक आश्चर्याजनक घटना घटती थी। दूसरा मत्स्यदेश भी उक्त प्रेसिडेन्सीके अन्तर्गत है। यहांके यात्रो भोजन करने के बाद जो उच्छिष्ट पत्र या १२५८ साल में प्रकाशित कालोशर्मा-विरचित "बगुड़ा पात्र फेंक देते थे, दूसरे दिन उनका कोई चिह्न भी नहीं . का इतिहास वृत्तान्त” नामक छोटो पुस्तकके. चतुर्थ रहता , न जाने कौन समूचे मेले को साफ सुथरा कर अध्याय २य मत्स्यदेशका वृत्तान्त इस तरह लिखा है- देता था। ...... . .. . . "मत्स्यदेशको नाम परिवर्तन हो कर इस समय यहां लोग कहा करते हैं, कि देवता मा कर यह स्थान जिला संस्थापित हुआ है। इसको उत्तरी सोगा पर रंगपुर परिष्कार करते हैं। इस महारण्यके धीव रंगपुर, जिला, दक्षिण पूर्व सीमा पर धगुड़ा जिला, दक्षिण-पश्चिम दिनाजपुर और वगुड़ा जिले के साहय लोग शिकार करने । सीमा पर दिनाजपुर जिला है। घगुड़ासे १८ फेासको | आते हैं। यहां जिस प्रकारका बाघ है, पैसा बंगालमें दूरी पर घोड़ाघाट थानासे ३ फास दक्षिण ४/५ कोस और कहीं देखा नहीं जाता। जलाने की लकड़ी(धन), विस्तीर्ण अत्यन्त प्राचीन धरण्यानोफे याच विराट राजा. प्रति वर्ष रङ्गपुर, दिनाजपुर और यगुड़ा जिले में बिकने. की राजधानी थी। यहां विराटराजाके बेटे तथा पोतेके : आती है। इस समय यहां कई स्थानों में बहुतायतसे धान । राज्य करने बाद कलिके ११५३ भन्द व्यतीत होने पर पैदा होता है।" . .. जो महा जलप्लायन हुआ था, उससे विराटके घश और उक्त इतिहास लेनकने अनश्रुतिके प्रति विश्वास कीति एकदम ही ध्यस हो गई। पीछे धीरे धीरे यह | करते हुए जो सव अभिमत परिध्यक्त किया है, स्थान सधन जंगल में परिणत हो गया। केवल अति उसके साथ ऐतिहासिक लोग एकता नहीं कर सकते। उच्च मृन्मय दुर्गका जीर्ण कलेवर इस समय भी छिन्न घरेन्द्रनडके अन्ततो सभी जनपदोंका. इसने देखा है। मिमा हो कर वर्तमान है। कुछ लोगोंने मिट्टो खेोदनेके इस विराट नामक स्थानमें महाभारतके विराट राजको समय गृह-सामप्रियां एवं सोना, चांदो प्रभृति मूल्यवान् । राजधानी न होने पर भी यह अति प्राचीन जनपदका द्रव्य पाया है। जब इस देशके सभी लोग इस स्थानको भग्नावशेष चिह्नयुक्त स्थान है, इसमें सन्देह नहीं। . . विराटको राजधानी कहते आ रहे हैं, जय कोचक और घरेन्द्रखंडके मध्यस्थ उक्त विराट नामक प्राचीन जन.' भीमको कीर्ति इस स्थानके आस पास वर्तमान है और' पद पर्शमान रंगपुर जिले के अन्तर्गत गोविन्द गज नामक .