पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष एकविंश भाग.djvu/५७९

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. विराट खाई है। इस स्थानको देखनेसे दो राजधानीका उपः। कृति एवं उपरांश नागकन्याकं समान वदुरन्नालंकृता है। युक्त स्थान मालूम पड़ेगा। उस वृहत् गढ़के ध्वंसा- पहले देखने से ही यह नागकन्याकी मूर्ति मालूम पड़ती यशेषके मध्य कचहरी, राजभवन तथा शिय और है, किन्तु नागकन्या द्विभुता होती है और ये चतुर्भुजा कनकदुर्गाके मन्दिरका ध्वंसावशेष इस समय भी हैं। स्थानीय लोग इन्हें एक पांववाला भैरव कहने हैं। लोगोंको दिखाया जाता है । राजा यदुनाथभजके किसी धूरीने इम देयीमूर्तिको महादेवका भैत्य प्रमाणित समय को ईसारी गढ़के अधिपति सर्वेश्वर मान्धाता करने के लिये उसके दोनों स्तनको बहुत कुछ तराश कर मजाधिपसे पराजित हुप थे एवं भजाधिपति- ' समतल बना दिया है, किन्तु तो भी उसका उद्देश्य सिद्ध के आक्रमणसे, फो ईसारो गढ़ विध्वस्त हुआ, उसी नहीं हो सका। सुप्रसिद्ध प्रीक ऐतिहासिक दियोदोरस समयसे यहांले प्राचीन राजय'शका कीर्शि गौरव विलुप्त : ईस्वी सन्मे पांच सौ वर्ग पहले लिख गये हैं, कि मध्य • दो गया है। राजयशियों में किसीने कोप्तोपादाने तथा : पशियाके स्कोदिय लोग 'पल्ला', (इला ) नामक एक देवी किसीने नीलगि रेमें आश्रय प्रहण किया। इस समय मूर्तिकी पूजा करते हैं । उसो देयीका निम्नांश सर्पाकृति चैगटराजवंशीय दो वाबू घराने केईसारी गढ़ में वास एवं उपरांश साधारण नारीके समान है। शक करते हैं। इन लोगोंको अवस्था बडो शोचनीय हो। लोगोंकी उपास्य यही प्राचीन देवो पया यहां 'एक रहो है। ये लोग अपने को भुन ग क्षत्रिय बताते हैं। पाद भैरव के नामसे विख्यात होती हैं ? उक भुजङ्ग- ईसारी प्रममें उक्त राजवंशीय एक अत्यन्त गृह वशीय व मुखसे और भी सुना गया, कि उक्त दोनों - कुछ दिन हुए जोवित थे। उनके कहनेसे मालूम हुमा योको मयां कासारो गढ तैयार होने के बहुत पहले है, कि जेठे मनु शाहका चश पईसारो. मझलेका पश! को हैं। ननुगाहफे वधरने जिस समय यहां आ कर नीलगिरिम एवं छोटे कुनगाहाका वंश फाप्तोपादामें राज्य | दुर्ग तैयार करने के लिये मिट्टी खादी थो, उसी समय करते थे। पसन्त दैराटके समय इस तरह राज्यका मिट्टांके नीचेसे उक्त दोनों मूर्तियां बाहर हुई घों। सुतरां विभाग हुगा। उसके पहले फेहिमारो या वैराटपुरसे ले | ये दोनों मूर्तियां सहस्रों वर्ष पहलेको धनी मालूम पड़नी कर मोलगढ़ वर्शमान नीलगिरि पर्दान्त देश एक वैराट है। इस्वोसन्के दो सौ वर्ष पहलेके शक लोगों के नृपतिके शासनाधीन था। पसन्त पैराट प्रतिष्ठित घुयाई समयको आदिरसटित जिस प्रकारको मूर्ति मथुरासे चएडोको पाषाणमण मूर्ति नीलगिरि राज्यको प्राचीन | आविष्कृत हुई है, यहां को हरगौरी मूत्ति मी उसी राजधानी सुजनागढ़में आज भी यरीमान है। फेदसारीको आकारकी पर्यउसी.समयको मालूम पडतो है। उक्त कनकदुर्गा राजा यदुन थ मजके समय वारिपदामें लाई। दोन मूर्तियां शक्रयाशियों के शासनकाल में किसी शक गई। इस समय कईिसारीगढ के ध्वंसावशेषके मध्य भाग्न | राजाके द्वारा बनाई गई होंगो । कोईसारोग्राम के बाहर मायूरी मूर्ति विद्यमान है। उस भग्नमूर्सिमें केवल .एक बड़े पीपलवृक्षक नोने एक प्राचीन कमानके पास मायूरीदेवो दो पांव पर उनके वाहन मयूरका मुखान गि पर सछित्रशोभिता एक द्विभुती देवीको मूर्स है। दृष्टिगोचर होता है। गढ़के बाहर प्रेमालिंगनरत चतु. घे जनसाधारण उन्हें कोटासनी' कहने हैं। ये भुजङ्ग मुंज महादेव तथा चतुर्भुजा गोरोको सुहत् प्रस्तर राजवंशकी अधिष्ठात्री देवी थीं। जहां देवीको मूर्ति है, मूर्ति रखी हैं एवं उनके पासमें हो वृक्षके नीचे एक घदो पदले ईटका बना एक मन्दिर था। इस समय उस. चतुर्भुजा अपूर्व देयीमूर्ति है । देशीका निम्नांश सर्पा. के वसांपशेषको ईर देवी बार मोर पड़ी देखो जाती • इस चतुभुजाके दक्षिणा हायमें समरू, उसके याद है । जो स्थान एक समय वैराट शको राजधानी था, पार, पामोद हाथमें माता, दोना पार्य मे दो सखिया, इस समय यहो स्थान निर्जन हो रहा है। ' पबिफे नीचे एक ओर शानि और एक मोर-गाय एवं भूगाल पूर्वोक्त कोईसारोसे प्राया १२ मोल पश्चिम दक्षिण - के पोछे करना एक पानर मूर्ति है। . . . . और पारिपदासे प्रायः ४० मोल दक्षिण-पश्चिम में पार.