पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष एकविंश भाग.djvu/५८५

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' , यिरुद्धता-यिरूपपरिणाम ५०६ का एक भेद । इसमें एक ही क्रियाफे कई परस्पर-विरुद्ध , विरुद्धाशन (सं० ली०) विरुद्ध अशनं । विरुद्ध भोजन, फल दिखाए जाते हैं। . . मछली दूध गादिका खाना। मछलीके साथ दुध खाने. विरुद्धता ( स० स्त्री० ) विरुद्धल्य, भाव, तल टा।। से विरूद्ध भोजन होता है। ऐसा भोजन बहुत हानि. १ विरुद्धका भाव या धर्म।. २ प्रतिकूलता, विपरीततो, | कारक माना गया है। विशेष विवरण विरुद्ध शब्दमें देखो। उलटापन । . | विरुधिर (सं०नि०) १ रक विशिष्ट, जिसमें खून हो। विरुद्धमतिकारिता ( स० स्त्री० ) काथ्यगत दोषभेद । यह २रकहीन, जिसमें खून न हो। ऐसे पद या वाफ्यी प्रयोगसं होता है, जिससे वाच्यके | विरुक्ष (सं०.त्रि०) १ अति रुक्ष, बहुत रूमा । २ रुक्षतो. सम्बन्ध विरुद्ध या अनुचित घुद्धि हो सकती है। जैसे |, होन, जो रूखा न हो। 'भयानोश' शब्दफे प्रयोगसे । 'भयानो' शब्दका अर्थ चिरूक्षण (सं० त्रि०) १ स्नेहवञ्जितकरण, समताप्रापण । ही है 'शिया की पत्नी । उसमें ईश लगानेसे सहसा यद २ रस क्षरण। ध्यान हो सकता है कि "शिषको पनी" का कोई गौर विरूद (स.नि.) विशेषेण रोहति वि-सह-क्त । १ जात, भी पति है। । उत्पन्न, पैदा । २ मफुरित, घोजसे फूटा हुआ । "विरूढ़ विसरमतिशत् (स' नि०) कावागत . दोषभेद, विरुद्ध जान्न अकुरितधान्यकृतमन्ने" (माधवनि०) ३ बद्धमूल । मतिकारितादोप।। (काव्यप्र०) ४ खून जमा हुआ, ग्यून बैठा हुआ । ४ आरोहणविशिष्ट । वियद्धरूपक (सं० पु०) केशवके अनुसार रूपक अल. | विरुढ़क (सं० क्लो०) १ अकुरित धान्य । (पु०) २ कुम्भाएड. ङ्कारका पक भेद। इसमें कही हुई यात विल्कुल जन-1 राजके पुत्रभेद। (ललितविस्तर) ३ लोकपालभेद । मिल' अर्थात् असंगत या गसंबद्ध सी जान पहती है, पर ४ शाफ्यकुलोत्पन्न एक राजा । ५ राजा प्रसेनजित्के विचार करने पर अर्थात् रूपकके दोनों पक्षोंका ध्यान ) पुत्रभेद । ६ इश्याकुफे, पुत्रभेद । करने पर अर्थ सङ्गत ठहरता है। इसमें उपमेयका | विरूधिनी (सं० स्त्री०) वैशाख कृष्ण एकादशी। कथन नहीं होता, इससे यह "रूपकातिशयोकि" हो है। | विरूप (सं० वि० ).विकृत रूप यस्य । १ कुत्सित, कुरूप, विरुद्ध हेत्याभास (सं० पु०) न्याय वह हत्यामास यदसूरत ! २ परियर्शित, बदला हुमा ! ३ कई रंगरूप. जहां साध्य साधक होने के स्थान पर साध्यफे अभाव. फा, तरह तरहका । ४ शोभाहोन, शोभारहित । ५ का साधक हेतु हो। जैसे-यह द्रव्य यहिमान है, सम्पूर्णभिन्न, दूसरो तरहका । ६ जो अनुरूप न हो, षयोंकि यह महाहद, है। यहां महाहद होना यहिके विरूद्ध । विरूप अर्थात् विरूद्ध इन दोनों पक्षों में जहां होनेका हेतु नहीं है, वरन् यहिके अभावका हेतु है। संघटना होती है, वहां विषमालङ्कार होगा। (क्लो०) .. (श्रीकृष्णजन्मखपद) | ७ पिप्पलोमूल, पिपरामूल । (.पु०) ७ सुमनोराजपुन । विरहार्शदीपक (सं० ली० ) अलङ्कारभेद । इसमें एक (कालिकापु. ६० भ०) ही यातने दो परस्पर विरुद्ध कियाओंका एक साथ होना विरूपक (सं० त्रि०) विरूप-स्वाथै कन् । विरूप देखो। दिखाया जाता है । जैसे,—जलकण मिली वायु प्रीष्म विरूपकरण (सं० क्लो० ) विरूपस्य करण। विरूपका तापको घटाती और विरह-तापको बढ़ाती है। यहां पर | करण, बदसूरत बनाना। . स्पष्ट मालूम होता है कि 'पृद्धि और. हास करना' इन | विरूपण (सं० क्लो०) विकृति करण, कुरूप बनाना । दोनों. विरुद्ध क्रियाओंका समावेश एक ही आधारसे | विरूपता (सं० स्त्रो०) विरूपस्य मायः सलाटाय।। • यथया प्रमायसे होता है । गतपय यहां पर हास और, विरूपका भाव या धर्म । २ कुरूपता, पदसूरती । ३ भदा. . पृद्धि इन परस्परविरुद्ध दोनों कियाओंके .एक ही कर्ता, पन, वेढंगापन | . . या कर्ममें निहित रहने तथा उससे विशेष ,विचित्रताको विरूपपरिणाम (सं० पु०) एकरूपतासे अनेकरूपता अर्थात् उपलब्धि होने के कारण विरुद्धार्थदोपकालद्वार हुमा । | निर्षिशेषतासे विशेषताको ओर परियर्सन । सांगयमें परि- Vol, IXI 128