पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष एकविंश भाग.djvu/५८७

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.विरुद्धता-घिरुपपरिणाम का एक भेद । इसमें एक ही क्रियाफे कई परस्पर विरुद्ध , विरुद्धाशन (सं० क्लो०) विरुद्ध दाशनं । विरुद्ध भोजन, फल दिखाए जाते हैं। मछली दूध आदिका खाना। मछलीके साथ दूध खाने- विरुद्धता ( स० पी० ) विरुद्धस्य भाव, तल-टाप्। से विरुद्ध भोजन होता है। ऐसा भोजन बहुत हानि. १ विरुद्धका भाव या धर्म।. २ प्रतिकूलता, विपरीततो, कारक माना गया है। विशेष विवरण विरुद्ध शब्दमें देखो। उलटापन । | विरुधिर (सं० त्रि०) १ रक्त विशिष्ट, जिसमें खून हो। विरुद्धमतिकारिता ( स० स्त्री० ) काव्यगत दोपभेद । यह | २ रकदीन, जिसमें खून न हो। ऐसे पद या वाफ्य प्रयोगस होता है जिससे वाच्यके विरूश (सं० नि०) १ मति रुक्ष, बहुत रूपा । २ रुक्षतो. सम्बन्ध विरुद्ध या अनुचित वुद्धि हो सकती है। जैसे हीन, जो रूखा न हो। 'भवानीश' - शब्दफे प्रयोगसे । 'भयानो' शब्दका अर्थ | विलक्षण (सं० त्रि०) १ स्नेहवर्जितकरण, समताप्रापण । ही है 'शिवा'को पनी । उसमें ईश लगानेसे सहसा यह | २ रस क्षरण । ध्यान हो सकता है कि "शिवको पती" का कोई और | विरूढ़ (स'०नि०) विशेषेण रोहति वि-सह-क । १ जात, भी पति है। उत्पन्न, पैदा । २ मफुरित, वोजसे फूटा हुआ। "विरुद विसहमतिकृत् ( स० लि.) कायागत दोपभेद, विरुद्ध | जान्नं अ'कुरितधान्यकृतमान" (माधवनि०) ३ बद्धमूल । मतिकारितादाप। ( काव्यप्र०) ४ खून जमा हुआ, खून बैठा हुआ ! ४ आरोहणविशिष्ट । विरुद्धरूपक (सं० पु०) केशयके अनुसार रूपक मल विरूदक (सं० लो०) १ अंकुरित धान्य । (पु०) २ कुम्भाएड. कारका एक मेद । इसमें कही हुई वात विल्कुल 'मन- | राजके पुत्रभेद। ( लक्षितविस्तर ) ३ लोकपालभेद । मिल' अर्थात् संगत या असंबद्ध-सी जान पहती है, पर ४ शाक्यकुलोत्पन्न एक राजा। ५ राजा प्रसेनजित्फे विचार करने पर अर्थात् सपकफे दोनों पक्षोंको ध्यान पुत्रभेद । ६ इश्याकुफे पुत्रभेद । करने पर अर्थ सङ्गत उदरता है। इसमें उपमेयका विरूधिनी (सं० सी० ) पैशाख कृष्ण एकादशी। कथन नहीं होता, इससे यह "रूपकातिशयोकि" हो है। विरूप (सं०नि० ),यिकृतं रूपयस्य ! १ कुत्सित, कुरूप, विरुद्ध हेत्वाभास ..(सं० पु०) न्यायमे यह हेत्वाभास | पदसूरत। २ परिवर्तित, वदला हुआ। ३ कई रंगरूप- जहां साध्य के साधक हनिके स्थान पर साध्यके अभाव का, तरह तरहका । ४ शोमाहीन, शोमारहित । ५ का साधक हेतु हो। जैसे—यह द्रव्य यहिमान है, सम्पूर्णमिन्न, दूसरी तरहका । ६ जो अनुरूप न हो, क्योंकि यह महाहद है। यहां महाहर होना यहिके | विरुद्ध । विरूप अर्थात् बिरुद्ध इन दोनों पक्षमि जहां होनेका हेतु नहीं है, यरन यहिके अभावका हेतु है। । संघटना होती है, वहाँ विषमालङ्कार होगा। (ली.) ... . (श्रीकृष्णजन्मखपड) | ७ पिप्पलोमूल, पिपरामूल । (पु०) ७ सुमनोराजपुत्र ।। वियद्धार्थदीपक (सं० सी० ) अलङ्कारभेव । इसमें एक ( काक्षिकापु. ६००) हो पातसे दो परस्पर वियद्ध क्रियाओं का एक साथ होना विरूपक (सं० त्रि०) विरूप-स्वार्थे कन् । विरूप देखो। दिखाया जाता है । जैसे,-जलकण मिली वायु प्रोम | विरूपकरण (सं० को०) विरूपस्य करण। विरुपका तापको घटाती और विरह-तापको बढ़ाती है। यहां पर करण, बदसूरत बनाना। . स्पष्ट मालूम होता है कि वृद्धि और. हास करना' इन विरूपण (सं० लो०) विकृति करण, कुरूप बनाना । दोनों. विश्व क्रियाओं का समावेश एक हीमाधारसे विरूपता (सं० नो०) विरूपस्य भावः तलराप । १ • अथवा प्रभायसे होता है । जय यहाँ पर हास और | विरूपका भाष या धर्म । २ कुरूपता, बदसूरती । ३ महा- पृद्धि इन. परस्परविरुद्ध दोनों क्रियाओंके .एक हो कत्ता पन, येढंगापन ! , का कर्ममें निहित रहने तथा उससे विशेष विधिनताको विरुपपरिणाम (सं० १०) एकरुपतासे अनेकरूपता अर्थात् .. उपलब्धि होनेफे कारण शिवशायदोपकालटार' हुआ। निर्मिरेतासे विशेयताको ओर परियर्शन । सांस्यमें परि- Tol, II 129, .