पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष एकविंश भाग.djvu/५८८

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५१० - विरूपशक्ति-विरेचन णामफे दो भेद कहे गये हैं,-स्वरूपपरिणाम और विरूप- विरूपाश्व ( स० ० ) राजभेद । ( मारत ६३ पर्व । परिणाम | विरूप-परिणाम द्वारा प्रकृतिसे तरह तरह के | विरूपिका (स' स्त्रो०) विकृतं रूपं यस्याः कन रापत पदार्थों का विकाश होता है और स्वरूप परिणाम द्वारा इत्वं । कुरूपा स्त्री, बदसूरत भारत।। फिर नाना पदार्दा क्रमशः अपने रूप नष्ट करते हुए प्रकृति- विरूपिन (सं० वि०) विरुद्ध' रूपमस्यास्तीति विज्ञपनि। में लीन होते हैं। एक परिणाम सृष्टिको ओर अग्रसर १ कुरूपविशिष्ट, बदसूरत । (पु०) २ जाहक जन्तु, गिर होता है और दूसरा लयकी ओर। ' गिट। विरूपशक्ति (सपु०) १ विद्याधरभेद। (कथासरित्सा० शिरक ( स० पु०) विरिय-धम्। विरेचन, दस्तावर, ४६६८) २ प्रतिद्वन्द्वी शक्ति (Counteracting forces) || दया, जुलाव। जेसे, ताडितको Negative शकि और Positive विरेचक (स० वि०) मलभेदक, दस्त लानेवाला।' शक्ति। वे एक दूसरेके विरोधी हैं। यिरेचन (सं० पली. ) वि-रिच न्युट्। विरेक, जुलाव । विरूपशन (संपु०) ब्राह्मणभेद । वैद्यकमें विरचनके विषय पर अच्छी तरह विचार किया (कथासरित्सा० ४०।२६) | गया है । यहां पर बहुत संक्षेपमें लिखा जाता है । कुपित सिरूपा (सं० स्त्री० ) विरूप टाप। १ दुरालभा, जवासा, | मल सभी रोगोंका निदान है। मल कुपित हो कर नाना धमासा। २ अतिविपा । ३ यमकी एक पलोका नाम | प्रकारका रोग उत्पन्न करता है । अतएव जिससे मल (नि.) ४ कुरूप, बदसूरत । न रुके, इस ओर ध्यान रखना एकान्त कर्तव्य है । मलके विरूपाक्ष (सं० पु०) विरूपे अक्षिणी यस्य सक्थ्यक्ष्नोः | रुकनेसे विरेचन भोषध द्वारा उसका निःसारण करना स्याङ्गात् पच् इति पच् समासान्तः । १ शिव । २ रुद्रः चाहिए । भेद । (जटाधर) इनको पुरी सुमेरुपर्णतके नैत कोणमें | भावप्रकाशमें विरेचन विधिके सम्बन्धमें इस प्रकार अवस्थित है। लिखा है- "तथा चतुर्थे दिग भागे नैऋताधिपतेः श्रुता।' ' स्नेहन और ख दक्रिया के बाद यमनविधि द्वारा यमन नाम्ना ऋष्णावती नाम विरूपाक्षस्य धीमतः ॥" फरा कर पीछे विरेचनका प्रयोग करना कर्त्तव्य है । यदि (वराहपु० रुद्रगीता) पहले यमन न करा कर विरेचनका प्रयोग किया जाये, ३ रावणका एक सेनानायक जिसे हनुमानने प्रमोदवन तो कफ अधापतित हो कर प्रणो नासोको आच्छादन उजडाने समय मारा था। एक राक्षसका नाम जिसे कर शरीरको गुरुता या प्रवाहिका रोग उत्पादन करता सुप्रीयने रामरावणयुद्ध मारा था । ५ रावणको एक है, इसलिये सबसे पहले धमन करांना उचित है । अथवा मन्त्री । ६पक दिग्गजका नाम । एक नागका नाम। पाचक औपंधका प्रयोग कर थामकफका परिपाक करके (वि०) ८ विरूप, बदसूरत । भी विरेचन दिया जा सकता है।' ' ' विरूपाक्ष-१ एक योगाचार्य। इन्होंने अग्निायसे | शरत् और वसन्तकालमें देहशोधन के लिये विरेचनका महायोढान्यास नामक एक प्रन्थ लिखा है। इंठदीपिकामे प्रयोग हितकर है। प्राणनाशको आशङ्का पर अन्य समय इनका नामोल्लेख है। २ विजयनगरके एक राजाका भी विरेचनका प्रयोग किया जा सकता है । पित्तके कुपित होनेसे नया आमजमित रोगमें उदर और आधमान रोग. विरूपाक्षदेव-दाक्षिणात्य के एक हिन्दू राजा। में कोष्ठशुद्धिके लिये विरेचन प्रयोग विशेष हितकर है। विरूपाक्ष शर्मन्-तत्वदीपिका नाम्नी चण्डोरलोकार्थप्रकाश लखन तथा पाचन द्वारा दोषके प्रशमित होनेसे वह पुन: नामक अन्यके रचयिता । १५३१ ई०में अन्धकारने अन्ध- प्रकुपित हो सकता है, किन्तु शोधन द्वारा दोष सदाके . रचना समाप्त को । माप कविकण्ठाभरण आचार्य नामसे | लिये दर हो जाता है। भी परिचित थे। । .. बालक, वृद्ध, अतिशय स्निग्ध,क्षत या क्षीणरोगप्रस्त, . नाम। . .. ।