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. विरोधकृत-विलक्षण
विरोधकृत् (सं० वि०) घिधिकारी। (पु०१२ साठ , विरोधेोक्ति ( स० स्त्रो०) परस्पर पचनविरोधी वचन ।
संवत्सरफे अन्तर्गत ४४वां वर्ण ।
पर्याय-विप्रलाप, विरोधयाक, फोधेोक्ति, प्रलाप । ..
विरोधक्रिया (स स्त्री..) शत्रुता।
विरोधोपमा ( स० स्त्रो०) उपमालङ्कारमेद । इसमें
विरोधन (सं० क्ली०) विरुध ल्युट । १ विरोध करना, : किसी घस्तुको उपमा एक साथ दे, विरोधी पदार्थासे दो
बैर करना। २ नाश, घरवादो। ३ नाटकमें विमर्पका) जाती है। जैसे-"तुम्हारा मुख शारदीय चन्द्रमा और
एक अङ्ग। यह उस समय होता है जब किसी कारणवश | कमलके समान है", यहां कमल और चन्द्रमा इन दोनों -
कार्यध्वंसका उपक्रम (सामान ) होता है। जैसे- | उपमानों में विरोध है।
. . . .
कुरुक्षेत्रयुद्धके अन्त होनेके निकट, जय दुर्योधन बन रहा | बिरोध्य (सं० त्रि०) विरोध-यत् । १ विरोधके योग्य।
था, तब भीमका यह प्रतिज्ञा करना कि "यदि दुर्योधनको २ जिसका विरोध करना हो। ..
न माझगा, तो अग्निमें प्रवेश कर जाऊंगा।" सव यात विरोपण (सं० पु०) १ लेपन, लोप करना। २ लीपना, .
वन जाने पर भी भीमका यह कहना युधिष्ठिर आदिके | पोतना। ३ जमीनमें पौधा लगाना, रोपना। ..
मनमें यह विचार लाया कि यदि दुर्योधन मारा गया, तो विरोम (सं० वि० ) रोमरहित, यिना रोएका।..
हम लोग भी भीमके बिना कैसे रहेंगे। यहां पर यही विरोप (सं० वि०.) १ रोपविशिष्ट, क्रोधी। विगतो रोपो ।
कार्यध्व'सका उपक्रम या विरोधन है।
। यस्य बहुमो० । २ रोपशून्य, जिसे फ्रोध ग हो । ३ एटक.
विराधमाफ (स० वि०) विरोधी ।
| रहित, विना कांटेका।
विरोधयत् (स' त्रि०) विरोधशील, विरुद्ध । विरोह (सं० पु० ) १ लतादिका प्ररोह। २ एक स्थानसे
विरोधाचरण ( को०) १ शत्रताचरण, प्रतिकूला। दूसरे स्थान में ले जा कर रोपना। .
चरण, खिलाफ कार्रवाई । २ शत्र ताका व्यवहार। विरोहण (सं० लो०) विरोपण, एक स्थानसे उखाड़
विरोधाभास ( स०पु० ) अलङ्कारभेद। इसमें जाति, कर दूसरे स्थान पर लगाना। .. ..
गुण, क्रिया और दृष्यका निषेध दिखाई पड़ता है। विरोहित (सं० नि०) १ रोहितविशिष्ट। (पु०) २
विरोध देखो। विभेद । ।
विरोधित (स नि०) जिसका विरोध किया गया हो। | विरोहिन (सं० त्रि०) १.रोपणकारी, रोपनेवाला, पौधा ।
विरोधिता ( स० स्त्री०) १ शत ता, यैर । २ नक्षत्रोंकी लगानेवाला । २ रोपणशील, रोपने या लगाने लायक ।
प्रतिकूल दृष्टि।
विरोही-विरोहिन देखो।
....
विरोधित्व ( स० क्लो० ) विरोधिता, शत्रु ता। विरौती ( हि स्रो०) बाजरा, मडवा, कोदो वगैरहको
विराधिन ( स० त्रि०) विरुध-णिनि। १ विरोधकारी, एक प्रकारको जोताई जो उनके पौधेचे होने पर भी
शन, विपक्षी। २ हितके प्रतिकूल चलनेवाला, काय | जोती जाती है ।
सिद्धिमें पाधा डालनेवाला । (पु.)३. पाईस्पत्यम् | विल ( सं० ली० ) पिलाक। १ छिद्र, छेद । २ गुहा,
संवत्सरोंमसे पचीसवां सवत्सर।. , कन्दर । (पु०) ३ उच्चश्रवा घोड़ा। ४ येतसलता।
घिरोधिनी (स. स्त्री० ) विरुध-णिनि-डोप । १ हिरोधः पिलकारिन् (सं० पु०) पिलं करोतीति 'क-णिनि । १
फारिका, चैरिन। २ विरोध करानेवाली,दो आदमियों-- मूषिक, चूहा । -( त्रि०) २ गतकारी, कोड़नेवाला।
में झगडा लगानेवालो । ३ दुम्सदको कन्या। (मार्क० पु० विलक्ष (सं० वि०) विशेषेण लक्षयतीति विलक्ष-पचायच ।
५१५) . . . . . . . . . . ! १ यिस्यानिपत, माश्चर्यान्वित, अचंभेमें पड़ा हुशा । २
विराधीश्लेप ( स० पु०.) केशवके : अनुसार श्लेष अल /- ललित ! , ३ घास्त, घबराया हुभा । .: .!
झारका एक भेदः। इसमें श्लिष्ट गठहों द्वारा दी पदार्थों में | विलक्षण (सं० क्लो०) विगतं लक्षणं आलोचनं यस्य ।।
भेद, विराध या न्यूनाधिकता दिखाई जाती है। ..] हेतुशून्य आम्या । २ निष्प्रयोजन प्रिनि । ' (लिए)
पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष एकविंश भाग.djvu/६००
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