पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष एकविंश भाग.djvu/६०७

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विलासपुर ५२३ समतल भूमि है। सूर्योत्तापमें प्रकाशित छोटे छोटे | महाराष्ट्र सेनाने छत्तीसगढ़ राज्य पर आक्रमण किया। तालाथ, प्राम और माम, पीपल, इमली मादि ऊंचे, उक्त छत्तीसों गढ़ वास्तवमें एक पका जमीन्दारी या ताल. पृक्षों ने डालाफे शिखर पर खड़े हो कर समतल क्षेत्र- लुकका सदर है। राशकार्या मुखालापूर्वक चलाने के को एकताका मन कर दिया है। यदि किसीको विलास | लिये यहां एक एक दुर्ग पनवाया गया था। एक एक पुरके प्रकृत सौन्दर्यको देख कर अपने नेत्र परितृप्त करने सरदार के अधीन ये सब स्थान 'खाम' या सामन्तराजकी हो, तो उसे चाहिये, कि समतल क्षेत्रको छोड़ कर शर्स पर शासित होते थे। साधारणतः राजाके आत्मीय पहाड़ों पर चढ़ जाये। यहां तरह तरह के वक्ष प्रकृति ही सरदार पद पर नियुक्त होते थे। राजा सुरदेव के का माहात्म्य गा रहे हैं। फिर शक्ति, कया, माटिन मशमें जो १८ गढ़ थे, उन घरीमान बिलासपुर जिलेके और उपरोड़ा आदि १५ पहाड़ो सामन्तराज्य तथा सर | ११ सालसा अधिकारमें और ७ जमींदारियांको शर्समें कारो पतित जमीन वहांके कृषक द्वारा आवाद होनेसे | राजाधिकारमें थे। सन् १४८०ई०में सुरदेवके घशधर ' यहाँको शोभा और भी बढ़ रही है। इन सब पहाड़ी राजा दादुरापने रेवा नरेश हाथ अपनी कन्याको सम. जङ्गलो में हाथी पाये जाते हैं। कमी कभी झुएडके झुण्ड र्पण करने के समय अपनी सम्पत्तिको १८वीं ककेती (कर. हाथी उतर कर यहांकी खेतीवारोफा नष्ट कर देते हैं ।। कारो) यौतुक या उपढ़ीकन रूपमें दी थी। विलासपुरके हास्दु नदी किनारेवाले जङ्गलमे तथा पार्वतीय झरनांके । पश्चिम पाण्डारिया और कर्यादा नामक जो सामन्त. निकट प्रायः हाथी एकत्न होते हैं। राज्य हैं, वे मण्डला गोंढ़ राजवशके अधिकारसे यिच्छिन्न जिले भरमें महानदी ही एक बड़ी नदी है। धाम | कर दिये गये । सन् १५२० ई०में सरगुजाराजके यह दो मील तक फैल जाती है। किन्तु गर्मी के दिनाम | अधिकृत फोरया प्रदेश और सन् १५०० ई०में' महानदीके गङ्गाकी तरह सूख जाती है और इसका सूखा फलेबर दक्षिणके झिलाईगढ़के सामन्तराज्य और पूर्व में सम्वल. फेयल वालुकामय घरफे रूपमे दिखाई देता है। पूर्व | पुरफे अधिकृत किका नामक खालसा भूभाग विलास- यर्णित पर्वतमालाकी अधित्यकाभूमिकी अववाहिकासे पुरके अन्तर्गत लिया गया। 'हो कर नर्मदा और सोन नदी उद्भूत हुई है। महाराष्ट्र सुरदेयके बाद उनके पुत्र पृथ्योदेवने राजसिहासन के अभ्युत्थानके पहले रतपुरके वैहयवंशीय राजाओं पर अधिरोहण किया। मलहर और अमरकण्टकके द्वारा यह स्थान शासित होता था। इस प्राचीन राजा शिलाफलक आज भी उनको कीर्तियांकी घोषणा कर पशका परिचय बतानेकी जरूरत नहीं, स्वयं भगवान् | रहे हैं। ये शन के भयोत्पादक और प्रजा वन्धु थे। • श्रीकृष्ण ब्राह्मणयेशमें इस राजव शके राजा मयूरध्यजको | पृथ्वीदेयके याद इस बंगके अनेक राजाओंने रत्नपुर छलने आपे थे। हैहयराजवश देखो। सिंहासनको अलकृत किया था। स्थानीय मन्दिर साधारणतः रत्नपुरके राजामोंने छत्तीसगढ़ों पर आदिमें उत्कीर्ण शिलाफलकों पर इन राजामोंके कीर्ति अधिकार जमाया था। इसोसे इस राज्यका छत्तीसगढ़ | कलाप विघोपित हैं। सन् १५३६से १५७३ ई. तक नाम पड़ा था। शायद ७५० ई०में इस राजवंशफे बारहवें राजा कल्याणशाहीका राज्यकाल था। उक्त राजा दिल्ली. राजा सुरदेव सिंहासनाधिकार के बाद छत्तीसगढ़राज्य के मुगल बादशाहकी वश्यता स्वीकार करने पर सम्राट : दो मागोमें विभक्त हो गया। सुरदेव सुपुरमें रह कर ने उनको विशेष सम्मानसूचक उपाधि दी। इसके बाद 'समन उत्तर भागका शासन करते थे और भाई । ब्रह्मदेय रत्नपुरमें जिन सव राजानि स्वाधीनतापूर्वक राज्य. रायपुरमें राज्य स्थापन कर समग्र दक्षिण भाग पर शासन शासन किया था, उनमें राजा कल्याणशादीकी नवी' करते थे। नौ पुश्तके वाद ग्रह्मदेवका वंश लोप हुआ। पीढ़ी नीचेके राजा राजसिह पुत्रक हुए'। अपने ऐसे समय रत्नपुरके एक राजकुमारने आ कर रायपुरका | समोपो मात्मीय और पितामहभ्राता सरदार सिंहको राज्यभार ग्रहण किया । इनके पुत्र के अधिकारकाल में | राजसिंहासनका यथार्थ उत्तराधिकारी जान कर मो