पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष एकविंश भाग.djvu/६०८

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८५२४ पिलासपुर राजा उनको राजसिंहासन देने पर राजी न हुए। १७१० ई०की घटना है। राजाको मृत्युके कई दिन बाद ग्रामणमन्त्रोफे परामर्शानुसार और शास्त्र प्रमाणसे राज मोहनसिह लौट आये। उन्होंने सिंहासन पर सरदार महिपोके गर्भसे ब्राह्मण द्वारा पुत्रोत्पादनको । थ्ययस्था सिंहको बैठा देख अत्यन्त ग्रोध प्रकाश किया, किन्तु हुई। यथासमय रानो पुत्ररती हुई। इस पुत्रका नाम उपाय न देख वे राज्य छोड़ कर चले गये। । विश्वनाथ सिंह हुमा। । सरदार सिंहको मृत्युफे पाद सन् १७३० ई० में उनके राजा विश्वनाथसिइने रेवा-राजकन्याका पाणि ६० वर्षके बुढे भाई रघुनाथ सिंहने राजपद प्राप्त किया। प्रहण किया। विवाह हो जानेके बाद राजकुमार और | किन्तु उन्होंने निर्विरोध राज्य नहीं कर पाया। आठ वर्ष- राजकुमारी अदएकीड़ामें रत थी। राजकुमार अपनी | के बाद महाराष्ट्र-सेनापति भास्करपण्डितने ४० हजार . पत्नीको प्रकृति जाननेके लिये कौशलसे अयलाभ कर रहे। सेनामों के साथ विलासपुर पर आक्रमण किया।: इस. थे, यह देख राजकुमारीने उपहासच्छलसे कहा-"मैं तो समय रघुनाथसिंह पुत्र-शोकसे विहल हो रहे थे। इस हारगी ही, क्योंकि आप ग्राह्मण या राजपुत गद्दी |, लिये वे शीरदर्पसे भास्करकी गतिको रोक न सको। महा- हैं ।" रानीके इम वाफ्यने राजाके हृदयमें भारी | राष्ट्रसेनाने राजप्रासादके मशविशेषका भी ध्वंस. कर चोट पहुंचाई । ये पहलेसे अपने जन्मके सम्बन्धमें कुछ दिया। छतसे एक. रानीने सन्धिसूचक पताका फह- गड़बड़ पातें सुन चुके थे । राजकुमारीके इस वाफ्यने ! राई । सन्धि तो हुई। किन्तु साथ ही इस राज्यका राज. उनका रहा सहा परदा फाड़ डाला। फलतः राजाने | घंशख्याति भो विलुप्त हो गई। मरहठे राजासे बहुत धन उसो समय घरसे निकल कर अपने कलेजेमें छूरे भोक लूटपाट कर.ले गये ओर राजाको भोसले राजाके अधीन. कर आत्महत्या कर ली। 'राजकार्य परिचालनका मार दिया। राजा राजसिह पुनका आकस्मिक मृत्यु-संवाद सुन इस समय प्रतिहिंसा-परायण पूर्वोक मोहनसिंह कर बड़े हो शोकातुर हुए ; किन्तु उस ब्राह्मण मन्त्रीका महाराष्ट्रवल में शामिल थे। महाराष्ट्र रघुजी भोसले परामर्श ही इस पुत्रशोकका कारण हुआ। यह भी ये उनके कार्यसे पड़े सन्तुष्ट हुए थे। इसलिये रघुनाथ अच्छी तरह समझ गये, कि इस ब्राह्मण-गन्तीफे सिंहकी मृत्यु के बाद उन्होंने मोहनसिहको राजोपाधि कुपरामर्शक कारण राजांशमें कलङ्कका टोका लगा है। देकर बिलासपुरकी राजगद्दी पर बैठाया। सन् १७५८ यह समझ कर, उन्होंने मन्त्रियशका ध्वंस करनेके लिये | में पिम्याजो भोंसले महाराष्ट्र नेतृपदापर, प्रतिष्ठिन हो । उस ब्राह्मण-मन्तोको हो नहीं उसके टोलेको तोपसे । रत्नपुरके राजसिंहासन पर बैठे। । । उड़ा दिया । इस ब्राह्मण-मन्त्रीके साथ उस टोलेके प्राय३० वर्ष तक राज्य कर ये.इहलोकसे चल बसे। . कोई चार सौ नरनारियों की जान गई। साथ ही राज. | उनकी विधवा पत्नी भानन्दो दाईने सन् १८०० ६० तक चशका यथार्धा ऐतिहासिक प्रन्य आदि भी विनर हो । गज्यशासन किया। । .. . गया। . इस समयसे सन् १८१८ ई० में आपा साहयको राज्य. इसके बाद रायपुर-राजव शके मोहनसिंह नामक न्युति तक कई सूयेदारों ने अति विश्वलाके साथ बिलास- एक बलवीर्यशाली राजकुमारको राजा राजसिहने अपना पुरका शासन किया। इस जिले में उस समय :एक दल उत्तराधिकारी वनायो। किन्तु ब्रह्माका लिखा कोन मिटा | महाराष्ट्र सेना रहते, पिण्डारी डाकुओंके उपद्रव और सकता है। मोहनसिह शिकार खेलनेके लिये निकल सूबेदारी के अयथा करमारसे बिलासपुर. नष्ट होता देख चुके थे। - इसी दिन राजा राजसिंह घोड़ेसे गिर कर | अगरेज कम्पनीने कर्नल एगम्यूको यहांका, सरवाय. मृत्युमुखी पतित हुए । फलतः मृत्युकालमें मोदन- | धायक नियुक्त कर भेजा। सन् १८३० ई० में पालक को न पाकर उन्होंने पूर्वोक्त .. अपना रघुजो बालिग हुए। इन्होंने अपने जीवन भर राज्य, सिरताज पक्षता कर सन् / किया । सन् १८५४ ई० में नागपुर अक्षरेजों के हाथ आया।