पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष एकविंश भाग.djvu/६१

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चागिाज्य ५५ भारतवासियोंका विशेष वन्धुत्व हो गया। एक अर्मेनियन पपसे स्वेजनहर खोदनेके बाद भारत और यूरोपके सम्राट इस समय वाणिज्य पथ सुगम करनेके लिये। वाणिज्यको धीरे धीरे पृद्धि होने लगी है। " कास्पायसागरसे कालासागरके किनारे तक १२० मोल पुर्तगोजोंने उत्तमाशा अन्तरोप घूम कर भारतमें आने. . लग्यो एक नहर खुदवाने पर बाध्य हुगा, किन्तु यह काम , के समय अफ्रिकाके पूर्व उपकूल पर समृद्ध राज्य और शेप होते न होतं यह एक गुप्तचरके हाथ मारा गया। नगर देख कर उन सब स्थानोंमें वाणिज्यार्थ उपनिवेश ..उससे यह महदुद्देश्य कार्य में परिणत न हो सका। स्थापन किये। उस समयसे पहुत पहलेसे यहां पश्चिम. - इसके बाद विनिसवासो पणि वाणिज्य क्षेत्रमें भारत में सिन्धुप्रदेशीय और कच्छयासी हिन्दू तथा अरवी .; उतरे। वे लोग भारत आने के लिये सबसे सुगम रास्ता और फारसी उपनिवेश स्थापन कर वाणिज्य कार्यको . .निकाल कर अति शीघ्र यूफोटिस नदी होते हुए भारत देखभाल करते थे।

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पुर्तगोज द्वारा अफ्रिका दक्षिण-समुद्र हो कर भारत ... : विनिसवासी,वणिक लोग भूमध्यसागर पार हो कर . जानेका पथ खुल जानेसे ! विनिस और जेनोवावासी गफ्रिकाके त्रिपलीराज्यमें आ कर पैदल विख्यात झालेपो ! पणिकोंके सिर पर वज्राघात हुआ; कारण जलपथसे स्थल- • यन्दर- आते थे, पीछे यहांसे घे लोग.यूमोटिस तीर... पथमें विभिन्न देश हो कर जानेसे बहुत खच पड़ता था, इस ___ वत्ती वीरनगर आकर पण्पद्रध्य येचते थे । यहाँ नौकाके लिये उससे पण्यद्रव्यका मूल्य भी बहुत अधिक लगता था। -सहारे तिमिस नदीके किनारेके यग़दाद नगरमें ले जाते घोरे धोरे. पुर्तगोज लोग पाश्चात्य वाणिज्यके प्रधान .. ..थे। यगदादमें पुनः नावमें लाद कर यह सब द्रष्य तिग्रिस | परिचालक हो उठे। उस पर वैदेशिकके प्रति विद्वेष. द्वारा बसरा नगरमें एवं पारस्योपसागरस्थ हज द्वीपमें यशतः तथा समुद्रपथ पर अपना एकाधिपत्य . जमानेको आते थे। हम्मुंज (Ormuz):उस समय दक्षिण एशिया- इच्छाकर पुर्तगोज यहांके हिन्दू और भरवां पणिको का सर्वप्रधान याणिज्य-पन्दर था। यहां पाश्चात्य यणिक पर अत्याचार करने लगे। ...: गण स्वदेशजात मसमल, सूती कपडा और अपरापर द्रश्यके आपसके द्वन्द और प्रतियोगितांसे शत्रुता दिन ...यदले पूर्वदेशजात गरम मसाला, औषध और बहुमूल्य पर दिन बढ़ती ही गई। पुर्तगोज तिजारत छोड़ कर प्रस्तर यादि ले जाया करते थे। चोरो-डकैती करने लगे। वे लोग समुद्रपथसे दूसरे ...। यिनिसयासी वणिकोंको प्राच्यवाणिज्यमें विलक्षण : दुसरे वणिकोंकी सर्वस्व लूटने लगे। सभी साड़ित हो अर्थशालो होते देख यूरोपको दूसरी जाति भी ईन्यितः उठे। अन्त में प्राण तथा सम्पत्ति जानेके मयसे रखो और हो उठी तथा :इसी तरह 'पुर्तगीज लोग भारतीय | भारतीय वणिक वैदेशिक वाणिज्य-यात्राको जलाअंलि , वाणिज्यका अंशमागी होने के लिये बहुत चेष्टाके वाद,१५ । 'दे अपने अपने स्थान पर लौट मानको याध्य हुए। साथ यो . सदोके,शेष :उत्तमाशा. अन्तरीप घेर फरः दक्षिण | दी साथ 'भारतीय वाणिज्य-प्रमाय खर्व हो कर पाश्चात्य भारतके कालिकट यन्दरमें आ जुटे । इस १५से पाश्चात्य संसघ लोप हो गया। पणिकों को प्रायः चार सदी तक भारतके साथ पाणिज्य यूरोपीय धनिये इस प्रकार मकिंका-उपकूलमें वाणिज्य करके अन्तमें राजा सलोमन और टायर पति हिरामके करने के लिये आ कर उस देशके अधियासियोंकी शान्ति ..प्रवन्ति लालसागर यथका अनुसरण करना पड़ा। इस' और सुख बढ़ानेमें जिस तरह पराङ्मुख दो अपनी अर्थ- पिपासा शान्ति करनेको अग्रसर हुए थे, उसो,तरद्द ये लोग ... गजेपडके महाकवि सेक्सीयरके Merchant of | - जगदीश्वरके कोपानलमे पढ़ कर अपनो सञ्चित सम्पत्ति- • Venice ग्रंथमें भालेपोवन्दरफो समृद्धिको कथा एवं अन्धकवि से पञ्चित हुए। उनके प्रतियोगी अङ्रेत, . माम्सोसो, मिन्टनो “Paradise lost" अन्यमें दर्मज भोर भारतके धन- अर्मन और डेनमार्क र्याणकोको प्रतिद्वन्द्वितासं उनकी रत्नका उल्लेख है। .. घद उच्छुट्ल वाणिज्य प्रतिपनि क्रमशः नष्ट हो गई और