पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष एकविंश भाग.djvu/६११

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विलिनाथ फयि-पिलेपो ५२७ विलिनाथ कवि-मदनमअरी नामक नाटकके प्रणेता। खोदना। २ विरोचना | ३ फाड़ना। ४ जड़ उखाड़ना। विलिप्त (स० वि०) लिपा हुआ, पुता हुआ। ५जोतना । ६ विभाग करना, घांटना । विलिप्ता ( स्रो०) .एक सेकेण्डका - परिमाण | विलेखिन् ( स० वि०) विलेखनकारो, भेद करनेवाला । काल। (गणित) विलेत (स० वि०) वि.लो-तृच । (पा ६।०५१) विलिप्तिका (स) स्त्रो०) कालभेद। विक्षिसा देखो। १ विलयकारी, विनाश करनेवाला। २ द्रवकारी। विलिप्तो (सं० सी० ) ज्ञानलोपको अवस्था । विलेप ( स० पु०.) वि.लिप-घन । १ लेप, शरीर आदि . (अथर्व० १२४१४१) पर चुपड़ कर लगानेकी चीज। २ पलस्तर, गारा। 'विलिष्ट ( स० वि०) १ हटा हुआ, उखड़ा हुआ । ३ अस्त विलेपन ( स० क्लो०) विलिप्यन्तेऽङ्गान्यनेनेति वि.लिप. व्यस्त, जो ठोक अवस्था न हो। ल्युट्। १ लेप करने या लगानेकी क्रिया, अच्छी तरह विलिस्तेङ्गा (सं० स्रो०) दानवीभेद । (काठक १३२५) । लोपना, लगाना। २ लगाने या लेप, करनेका पदार्था । विलोक ( हि पु० ) अनुचित, नामुनासिव । जैसे-चन्दन केसर आदि। विलीढ़ ( ० स्त्रो०) वि.लिह क्त। दूढन्यस्त ।. . विलेपनिन् (स नि०) विलेपनमस्त्यस्य । विलेपन (अथव १३१४) विशिष्ट । विलीन (सॉ० नि०) विलोक्त । १ लुप्त, जो अदृश्य हो गया विलेपनी (सं० स्रो०) वि.लिप-ल्युट कर्मणि, करणे या ! हो । २क्षयमाप्त, नष्ट । ३ छिपा हुमा । ४ जो मिल गया १ यवागू, जौको कांजी। २ सुवेशा स्त्री। हो। . जैसे--पानी में नमक विलीन हो गया। | विलंपिका (स. स्त्री०) विलेपी । विलीयन ( ० को०) गलना। .. .. विलेपिन (स० वि०) विलेपयति यः वि.लिप-णिनि । (भाश्य श्रौत० २६१० भाष्य.) । लेपनकर्ता, पोतनेवाला। विलुण्ठन (सं० लो०) वि-लुण्ठ ल्युट । विशेष रूपसे | विलेपो ( स. स्त्री०) विलिप्यतेऽसौ इति विलिप घन लुएठन। . (कर्मणि ) स्त्रियां डीए । यवागू। विलुण्ठित (स'. स्त्री० ) अवलुण्ठित । . रोगोके पूर्वाभ्यस्त माहाय्यं भन्नके अर्थात् रोग विलुप्त (स० वि०) विलुप न। १ तिरोहित, जिसका, होनेके पहले दैनिक हिसायसे जितना चावल साया लोप हो गया हो, नए । २ लुण्ठित, लूटा हुआ । ३ छिन्न । जाता है, उसका चतुर्थाश चावल ले कर शिलादि पर ४ भाक्रान्त। ५गृहोत । अच्छी तरह पोसे और चौगुने जलमें उसका पाक करे । विलुप्तयोमि (स स्त्री० ) एक प्रकारका योनिरोग। इस पाक शेष होने पर जब द्रव भाग घट जाये, तब उसे रोग योनिमें हमेशा पीड़ा होती रहती है। उतार ले। इस प्रकार जो अन्न प्रस्तुत किया जाता है, विलुप्य (स.लि.) विलोपके योग्य । उसे विलेपी कहते हैं। बिलुमित (स' त्रि०) चन्चल। विलेपो लघु होती है । इसके बानेसे अग्नि प्रदीप्त बिलुम्पक (स.पु. ) चौर, चोर। . होती है। यह हृद्रोग, प्रण (क्षत ) और अक्षिरोगर्म पिलुलक (स.नि.) नाश करनेवाला ।. उपकारक, आमशूल, ज्वर और तृष्णानाशक है। इससे बिलुलिस (स' नि०) यि लुल क्त । १ चञ्चल, कल्पित, मुखको रुचि, शरीरको पुष्टिता और शुक्रकी वृद्धि होता है। दोदुल्रमान । २ विरित । चैधानिघंटुमें इसका प्रस्तुत प्रणाली और गुण इस पिलन (स.नि.) कटा हुआ, अलग किया हुआ।. | प्रकार लिखा है-, . , पिलेस (स० पु०) वि.लिस घन । १ अङ्कण || "कृता च पड गुणे तोये विलापी भ्राष्ट तपटुन । २ टत्वाता।। । । । सा चाग्निदीपनी लम्ची हिता मूज्वरापद ॥". . विलेखन (सं० श्लो०) वि.लिन क्युट । १ खनन,