पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष एकविंश भाग.djvu/६१९

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५३३ विवर्तितसन्धि • होने पर अर्थात् ३२ तोला रह जाने पर प्रक्षेप हाल भग्न | सन्धिस्थलफे दो ओर दो दो करके तथा तलदेशमें एक रोगीको प्रातःकालमें सेवन कराना होगा। श्रोणिदेश गा पृष्ठदण्डमें अथवा वक्षास्थलमैं एक तथा गरोरके किसी स्थानमें भग्न हो कर अस्थि यदि | दोनों अक्षमें दो बन्धनका प्रयोग करे । सब प्रकार के झुक गई हो, तो उसे खडा करके अपने . स्थान पर वांध भग्न और सन्धिविश्लेपरोगमें पूर्ववत् कपाटशयनादि देना चाहिये । भग्नस्थानको अस्थि यदि अपने स्थानसे विशेष हितकर है। घट गई हो, तो लखित भायमें खींच कर सन्धिस्थान. | - कटिभग्न,-कमरको हदो टूटने पर कमरको ऊपर को दो अस्थियों के साथ मजयूतोसे बांध दे। किसी और नीनेको ओर खींच सन्धिके संस्थानको अच्छी तरह अस्थिके नीचे झुक जाने पर उसे ऊपरको मोर स्रोच संयोजित कर यस्तिक्रिया द्वारा चिकित्सा करें। यथास्थानमें यांध देना उचित है। आञ्छन (दीर्घा पाास्थि भान,-पर्शका अर्थात् पंजरेकी हड्डीके भावमै बींचना ), पोड़न और सम्यक् प्रकारसे उपयुक्त टूटने पर रोगोको खड़ा करके घी लगाये तथा जिस शोर- स्थान सन्निवेश और वन्धन इन सब उपायोंसे युद्धिमान की हड्डी टूटी है, उसके बन्धनस्थानको मार्जित कर उसके चिकित्सा शरीरको सचाल और अचल सन्धियोंका ऊपर कपलिका (पूर्वोक्त अश्वत्थ वल्कलादि )का यथास्थानमें संस्थापित करते हैं। प्रयोग करे, पीछे येल्लितक नामक बन्धन द्वारा बडी . शरीरफे मग्नगडकी चिकित्सा, प्रक्रम और बन्धनादि । होशियारीसे बांध दे। इस प्रकार है- स्कन्धभग्न,-कन्धसन्धिफे विश्लिष्ट होनेसे रोगी- नवसन्धि, नवसन्धिसमूस्पिष्ट गर्थात् चूर्णित रक्त- को तैलपूर्ण कराहम या द्रोणी ( चहरों ) सुला कर सञ्चित हानेसे भारो नामक अस्त्र द्वारा उस स्थानका मषित कर यहाँका रक्त निकाल दे। मूसल द्वारा उसका क्षदेश उठा ले तथा उसमें स्कन्ध. ... . . सन्धि संयोजित होनेसे उस स्थानको स्वस्तिक द्वारा पदतल भग्न,-पदतलके भग्न होने पर यहां घी बांध दें। लगा कर पूर्वोक्त बन्धन फियानुसार वांध दे। इस हालत में कदावि व्यायाम नहीं करना चाहिये। कूपरसन्धि भग्न,-कूपरसन्धि अर्थात् पंहुनिक . मंगुलिमग्न,-गलोफे टूटने अथया उसके सन्धिः यिश्लिट होनेसे उस स्थानको अङ्ग द्वारा मामित कर विशिलए होनेसे उस स्थानको समानभायमें स्थापित पीछे वहां पोड़न करे तथा उसे प्रसारित और याकुञ्चिन कर सूक्ष्म पट्टयम्स द्वारा वांध दे और उसके ऊपर घो। | कर यथास्थान पर बैठाये और उसके ऊपर घृतसिञ्चन लगा दे। करे । जानु, गुल्फ और मणिबन्धनके टूटने पर इसी प्रकार चिकित्मा करनी होती है। जोरमग्न,-जहा या उसके भग्न होने पर पड़ी। सावधानीसे उसे दीर्घभाव में स्त्रीच कर दोनों सन्धिः प्रोवामान, प्रोवादेश यदि यफ हो जाये या नीचेको पालको संपोजित करें। पीछे वट गादि . वक्षोंकी छाल ओर बैठ जापे, तो अवटु अर्थात् प्रोयाके पश्चात् भागका पट्टयस्त्र द्वारा यहां बांध दें। ऊपदेशकी अस्थि निर्गत, मध्यस्थल और दोनों हनु (मुवसन्धि ) पोड कर उठाये स्फुरित वा पिस्थित होने पर युद्धिमान् चिकित्सकको तथा उसके चारों ओर कुश अर्थात् पूष यटादिकी चाहिये, कि ये उस अस्थिको चक्रतैल द्वारा प्रक्षित कर छाल रख कर कपड़े से बांध दे और रोगकी सात रालि दीर्घामाय खोच पूर्वोक्त प्रकारसे वांध दें। उक्त दी तक अच्छी तरह सुलाये रपये। ... स्थानमेसे किसी एकके टूटने पर चिकित्सिकको नाहिये, हनुसन्धि भग्न,-हनूसन्धिफ मिस्लट होनेसे उस... शिघे पहले रागीका शयन करावें, पीछे पांच स्थानोंको को हडियोको समानभाव, रय यया यान पर संयोजित । - कोलकाकारमें इस प्रकार बांध दें, कि यह स्थान हिलने । करे. और यहां स्वेद । पोछे पञ्च को बन्धन द्वारा उसे : शोलने न पावे। अर्थात् इस पन्धनका नियम यह है, कि . चांध देना होगा। फिर यासघ्न म गादिया पूर्वी Vol. XxI, 134