पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष एकविंश भाग.djvu/६२७

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विवाद ५३६ बहुत कम है ; किन्तु इनमें कलह बहुत कम ही दिखाई। लिखा है, कि कुमाना जातिको कुमारियां विवाह के पूर्व देता है। मिष्टर फूकका कहना है, कि "मैंने अब तक | दिन तक बहुतेरे पुरुपोंकी उपभोग्या होने पर भी ये समाज शिन देशोंका भ्रमण किया है, उनके समान शान्ति में दोपो नहीं गिनी जाती। किन्तु विवाह के बाद ही पर- प्रिय और निर्विवाद भादमी मैंने बहुत कम देखे हैं। पुरुषका सहवास देोपावद गिना जाता है। पेरुवियोंके यदि चरित्रकी शुद्धताका उल्लेन करना हो, तो मैं स्पर्धा सम्बन्ध पी० पिजारोने लिखा है, कि इनकी स्त्रियां हर के साथ कह सकता है, कि ये इस सम्बन्ध में सम्यजगत्- तरहसे पत्नीको अनुवर्तिनी हैं। पतिफे सिया इनका के भादर्शस्वरूप हैं ।" नरिन और किसी दूसरे पुरुपके साथ दूषित नहीं होता; • पत्नित्य और सामाजिक शान्ति। फिन्तु विवाहके पहले इनको कन्याप भी जिस किसीफ इर्यटस्पेन्सरका कहना है,---"यह बात स्वीकार नहीं । साथ संसर्ग कर सकती हैं। इसमें कोई बाधा नहीं दी की जा सकती, कि पति-पत्नी में प्रेम रहनेते हो | जाती और इनका ऐसा फर्म दोपायह भी नहीं माना दूसरी किसी सरहको मशान्ति न मचेगी। पेलिनफेट जाता। चियचा जाति के लोगों में भी ठोक ऐसी ही प्रथा ( Thelinket ) जानिक लोग पत्नी और पुत्रोंको बड़ी प्रचलित है । विवाहफे पहले इनकी भी लड़कियां सैकड़ों स्नेह ममताको दृष्टिसे देखते हैं। इनको स्त्रियों में भी पुरुषोंको उपभोग्या होने पर भी लोग उनके पाणिग्रहण , यथेष्ट लजा, नम्रता और सतीत्व दिखाई देता है, किन्तु करनेमें तनिक भी नहीं हिचकते ; किन्तु विधाहके बाद इनका समाज अत्यन्त जघन्य है। ये बड़े झूठे, यदि स्त्रो परपुरुषके प्रति कुष्टिसे देखे, तो वह क्षमा चौर और निर्दयो होते है। ये दासदासर्योको नहीं होती। तथा कैदियों को पातको बातमें मार डालते है। असगोत्र और सगोत्र विवाह । येचुमाना ( Bechuana ), जातिके लोगोंका स्वभाष , इन सरप्रमाणे से मालूम होता है, कि सामाजिक भी ऐसा ही है। ये जाक, झूठे और नर घातक होने शृङ्खलाकी क्रमोन्नतिके माथ पतिपलोके सम्बन्धको क्रमा- हैं, किन्तु इनकी स्त्रियां लजायती और सती-साध्यो । न्नतिका कुछ भी सम्बन्ध नहीं है। किन्तु इन कई प्रमाणों हैं। दूसरी ओर ताहिति ( Pahitrans) जातिके | पर किसी तरहका सिद्धान्त किया जा नहीं सकता। हम लोग शिल्पादिकायों में तथा सामाजिक बलामें | लोग समाजतत्त्वकी आलोचना कर स्पष्ट देखते हैं, कि स्त्रो बहुत उन्नत है, किन्तु इनमे परदाग सहवास मघाघ- पुरुषका सम्बन्ध यदि सुदढ़ न हो, तो सामाजिक बन्धन रूपसे प्रचलित है। स्त्रियों में पराये पुरुषके साथ सहवास किसी तरह दृढ़ नहीं हो सकता। स्त्री-पुरुषका सम्बन्ध करने में कोई रुकावट नहीं। फिजिया लोग भयडर जितना ही दृढ़ होता है, उतना ही समाज उन्नत होता है। .. विश्यासघातक और निर्दयों होते हैं, इनको यदि नर राक्षस व चार असभ्य समाजफे उदाहरण कभी प्रमाण हो कहा जाय, तो मत्युक्ति नहीं हो सकती। किन्तु इनको नहीं माने जा सकते । जगत्के ममन मानस-समाजको त्रियां सतोत्व संरक्षणमे जरा भी कसर नहीं उठा ! क्रमोन्नत्तिके इतिहासके साथ विवाह बन्धन-सम्बन्ध रखती। कई तो कह सकते है, कि अधिकांश असभ्य अत्यन्त घनिष्ठ है। प्रत्येक सभ्य समाजमें हो पारिवारिक समाजमें त्रिपोंका धर्म उत्तमताके साथ संरक्षित रहता दृढ़ बन्धनफे साथ साथ सामाजिक डालाको क्रमोन्नति अच्छी तरह दिखाई देती है। पाश्चात्य समाजतस्यधिद् . कौमार व्यभिचार । . . पण्डिताने मसगान और सगात विवाह के सम्बन्धमे बड़ी कनियागा जातिमें जब तक लड़कियोंका विवाह नहीं | आलोचना की है। हम यहां इसके सम्बन्धमें दो चार हो जाता, तब तक वे ये कटेक अपने इच्छानुसार परवाने' कहेंगे। हम इन दोनों चैदेशिक शब्दोंको मनु- पुरुषों के साथ मौज उड़ा सकती है। किन्तु वियाह हो | संहितामें लिखे "असगोत्र" और "सगोत"के सच्चे • जाने पर उनको सतो वनना ही होगा। पय्यारक हेरेराने | प्रतिनिधि नहीं मानते। फिर यथोचित शब्दके अभाव-