पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष एकविंश भाग.djvu/६२९

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विवाह ५४१ मेकलेनेनका दूसरा एक यह सिद्धान्त है, कि कन्या. आगे चल कर इस तरहका स्त्रीहरण धीरत्वगौरव. इत्याप्रथा प्रचलित रहनेसे ही कन्याओं की कमी हुई। परिचायक हो उठा। समाजमें स्त्री-अपहरण करनेवाले इसी कारण आदिम समाजमें स्त्रीहरण और यहुभरि | विशेषरूपसे सम्मानित थे। इस तरह असगेत्र विवाह ( Polyandry ) करनेकी प्रथा प्रवर्तित हुआ करती है। समाजमें भाद्त हो गया। मन्तमें साधारण विषाहमें भी यह सिद्धान्त भी युक्तिसंगत नहीं । कि तासमेनियन, इस समय यह समरसला और धूमधाम गौरवजनक अष्ट्रेलियन, डकोटो और जिलियनेमि ,माज भो यहु- समझों जाने लगी। इसीसे आज भी हम इस देशक . मत्त, कता दिखाई नहीं देती। पस कुइमा जातिक | गगनेक स्थानों में ही विवाहमें एक तरहसे समराहम्यर लोगोंमें यह प्रथा प्रचलित है। किन्तु ये अब तक नहीं |. देखते हैं। महाभारतमें कन्यापहरणपूर्वक विवाहका जानते, कि स्त्रोहरण किस चिड़ियाका नाम है । टोखाओं- उदाहरण पाया जाता है। मनुसंहितामें जिन पाठ तरह- में यहुमतरकी प्रथा प्रचलित है सही, किन्तु इनमें अप-2 के वियाहोंका उल्लेख है, उनमें राक्षस और पिशाच- , हरणपूर्वक पाणिग्रहणप्रथा बिलकुल ही दिखाई नहीं देनी । विवाह आदिम अवस्था विवाहको ही ऐतिहासिक ___कोमाका, न्यूजीलेण्डर, लेपचा मौर कालिफोर्निया स्मृति है । राक्षस विवाह के सम्बन्ध मनुने लिखा है- के अधियासियोंमे सगोत्र और असगोत्र दोनों तरहको | '. "त्या ठित्वा च भित्वा च क्रोशन्ती रदती गृहात् । प्रथाके अनुसार विवाह प्रचलित है। फ्युजियन, कारिख, प्रसह्य कन्याहरणं राक्षसो विधिकस्यते ॥” (मनु ३।३३) एस्कुइमा, पारण, हटेनटट और प्राचीन ब्रिटेन में पहु मेधातिधिका कहना है, कि कन्यापक्षसे बलपूर्वक वियाह और बहुभर्तार करनेवाली प्रथा दिखाई देती है। कन्याहरण करके विवाह करना राक्षस वियाह कहा जाता इरोकोइस और किपाया जाति के लोगोमे अब राक 'उप- है। इस अवस्थामे कन्याप्रदानमें कोई अड़चन उप. • हरण' वाली विवाहप्रया नहीं है। . . स्थित हो तो, वरपक्षको चाहिये, कि ये लाठी आदिसे स्पेन्सरका कहना है, कि कन्याओं का अपहरण कर मारपीट कर चहारदीवारी गादिसे सुरक्षित दुर्ग (किले) . स्त्रीप्रहण करनेकी प्रथा कन्याके मार डालनेके कारण को नष्ट भ्रष्ट करके कन्यापहरण कर लें। अनाथा कन्या पान्याओं के गमाव होनेके फलसे प्रवर्तित नहीं हुई थी। | यह कद्द कर रोती ६, कि तुम लोग मेरी रक्षा करो, आदिम समाजमें स्त्रीरत्न भी अस्थावर सम्पत्ति | मुझे हरण कर ले जाता है, यहो राक्षस-विधाह है। सम्मिलित था। इस तरह समाजमें युद्धविमहफे फलसे ' दूसरे पक विवाहका नाम पैशाच विवाद है। मनु जोतनेवाले हारनेवालोंका सभी धनरत्नों के साथ साथ कहते है:- स्त्रोरत्न भी अपहरण कर लेने थे। स्त्रियां दासी रूपसे, "मुतो मत्ता प्रमत्ता पा रहो यत्रोपगच्छति । . उपपत्नी रूपसे और, खो-रूपसे ,ध्यवाहत होती थी। स पापिठो विवाहानां पैशाचम्चाटमोऽधमः ॥" (मनु ३१३४) असभ्य समाजमें इस तरहको नारीहरणप्रथाका अभाव सुप्ता, मत्ता या प्रमत्ता कन्याका छिप कर ममिमर्पण नहीं था। दारनरने लिखा है--सामायातमें विजयी करना हा पैशाच विवाह है। निद्विता अर्थात् सोई हुई पक्षमापसमें जय लूटी हुई सम्पत्तिका बंटवारा करता या मद्यफे नशेमें मत्त या और किसी तरह की नशीली था, तव स्त्रियों का भी बंटवारा होता था। इलियाद पढ़नेसे दस्तुओं द्वारा चेतनारहित कन्याका मभिमर्पण कर ..मालूम होता है, कि प्राचीन यूनानिपेनि पवित्र इजियन | उसको स्त्रोके रूपमें परिणत करना अत्यन्त जघन्य कार्य नगरफी लूट कर जो स्त्रियां प्राप्त की थी, उन्होंने आपसमें | कहा गया है। मनुके मतसे क्षत्रिय राक्षस विवाह कर उनका भी विमाग किया था। माधुनिक इतिहासमै भी | सकते हैं। किन्तु ग्राहााँके लिपे राक्षस और पैशाच इस नरहको घटनाका प्रभाव नहीं। इससे प्रमाणित | पे दोनों तरहफे वियाह हो निन्दनीय हैं। राक्षस और होता है, कि युद्धविजयके माथ. साथ स्त्रीहरणका कार्य पैगाच विवाहमें कन्या और कन्या अभिभावककी नित्यकी घटना घो। था।. ... . . Vol, AXI, 136 . . . अनिच्छा ही रहती है.! राक्षस रिवाद हनन प्राधान्यम य,