पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष एकविंश भाग.djvu/६३१

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विवाह ५४५ तरह वे सन्तानका बटवारा कर लेते हैं। दरिद्रों में हो । चार पांच या इससे भी अधिक सहोदर होने पर ज्येष्ठ ऐसा विवाद गधिक दिखाई देता है। एक घरमें सात | भाई ही अपना विचार करता है । अन्यान्य माई जव जवान सहोदर वर्तमान है। सात आदमियों की सात स्त्रियोंका होते है, तब ये भी क्रमशः उसी स्त्रोको पनीरूपमें मानते पालन पोषण दरिद्रता देवोके सामने अतोय कठिन कार्य है। जेठे भाईकी पत्नीको बहनें भी उसके देवरों. हैं, ऐसे ही स्थलने एक ही स्त्री सातों भाइयोंको पत्नी के साथ प्याही जा सकती है। अयस्पाविशेषमे दो रूपसे व्यवहत होती है। इस श्रेणोके लोग बियाङ्कोड़। दो भाइयों में एक या बहु स्त्रो प्रहण करने को प्रथा अवल. "कमानार" अर्थात् कारुकर नामसे पुकारे जाते हैं। स्थित है। इनमें स्त्रीपुरुष दोनोंका बहुविवाह दिखाई मलवारफे निकट किसो समय बहुमत्त कता प्रथाका देता है । फ्यूजियन रमणियां भी सामाजिक प्रथाके अनु. बहुत जोर था किन्तु इस समय इसका यह जोर जाता | सार बहुत पुरषांको उपभोगया होती हैं । ताहितीय लोगों रहा अथवा यो कहिये, कि इस प्रथाको भव प्रायः स्मृति में स्त्रियां भी बहुत भार और पुरुष भी बहुविवाह कर मात्र ही रह गई है। अब जो यत्र तत्र यह प्रथा दिखाई सकते हैं। देती है, वह आदिम समभ्य समाजको बहुमत्त कता यहुभर्ग का रमणियां अधिकांश स्थानमें सहोदर प्रथाको तरह इन्द्रियतृप्ति के लिये नदो' चलाई गई। इनमें | भाइयोंकी पतियां होती हैं । कितु निःसम्पर्क स्थलमें भी तो इसके लिये कभी याद वियाद भी नहीं होने सुना | इस तरहका पतित्व दिखाई देता है। फेरिव, एस्कु गया है। इमो और चान्सांको रमणियां वहुभार ग्रहण करती हैं। ____ मलयारको "नायर" जातिके लोगोंमें किसी समय | पलिटियान द्वोपके अधिवासियोंमें तथा कनारीद्वीपके इस प्रथाका यथेट प्रचलन था, किन्तु इस समय इस अधियासिपेमें भो यह प्रथा प्रचलित है । लानसिरोटर- का प्रायः लोप हो रहा है। रण दुर्मद नायर जातिके | को रहनेवाली स्त्रियां भी बहुत भर्तार करती है। किन्तु लोगों के लिये प्रत्येकका वियाह करना कठिन था और इनको निहिए समय तक पफ एक स्वामीके साथ सह- प्रत्येकके विवाह कर लेने पर गृहसंसारमें बड़े बखेड़े। चास करना पड़ता है। एक एक पक्ष तक यानी १५ उठ खड़े होते थे। समरप्रिय व्यक्तियों के सम्परधर्म इस दिन तक इनको एक एक पतिके साथ सहवास कर. तरहका विवाह सुविधाजनक नहीं समझा जाता । नायर नेका नियमित समय होता है। काशिया तथा स्पारिजियन सैनिक है। यूरोपिमें भी सिपाहियों के विधाहका महत्त्य कसाकों में भी बहुभकता प्रधा मौजूद है । सिंहलके धनी नहीं दिया जाता। मलयारके गायर सदा युद्ध में फसे । और उच्च श्रेणोके सम्नांत व्यक्तियों में एकाधिक भाइयों- .रहते थे। अतः इनमें प्रत्येकफे विवाहका प्रपोजन नहीं | में एक साधारण: पत्नी दिखाई देती है। भाइयों में हो समझा जाता। केवल एक भ्राताके विवाह हो जाने पर साधारणतः यही नियम है। यो स्त्री समो भाइयोंके पतोका काम देती थी। इससे | अमेरिका भारु और सेपेडर जातिको रमणियां किसीको भी संसार बन्धनमें व'धे रहनेको आशङ्का नहीं बहुत भरिको पत्नी धनती हैं। काश्मीर, लादक, कुना. होतो धो। इसी कारणसे मलबारके नायमेिं बहुमतु- हार, कृष्णयार, मलवार और शिरमूरमें यह प्रथा प्रचलित कता प्रथा प्रचलित हुई थो । विवाहोड़को निम्न श्रेणीकी है। अरय और प्राचीन ब्रिटेनमें भी यह प्रथा प्रचलित अनेक जातियोमि यद 'प्रथा अब भी घर्त्तमान है। किन्तु यो। पूर्वकी तरह कभी यव इस प्रथाका उतना जोर नहीं दि- तिब्धतमें आज भी यह प्रथा अधिकतासे प्रचलित है। साई देता । भारतवर्ष के अन्यान्य स्थानों में भी बहुमरी ता. फलतः तिब्वतकी तरह ऊपर भूमिमें यदि विवाह द्वारा जन- ' का उदाहरण आज भी दिखाई देता है। तिम्वतमें इस संख्या बढ़ाई जाये, तो भन्नाभावसे देश में भीषण अशांति प्रथाका पहले पड़ा जोर था यहां अब भी य६ मौजूद है। । मच जा सकती है। इस प्रथाके जारी रहनेसे तिब्बतका टोडा जाति के लोगों में यह प्रथा दिखाई देती है ! इनमें | मङ्गल ही हुआ है। वाणिज्य और युद्ध-कार्यो में जहां Vol xxL 137 ..