पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष एकविंश भाग.djvu/६३२

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विवाह ५४६ जिन लोगोंको स्त्री-पुत्रों को छोड़ कर विदेशमें भ्रमण करना। सकता था । स्त्रियां खतन्त्र थी', आजाद थी। ये रति पड़ता है, वहां इस तरहको प्रथा समाजके लिये हितकारी ! सुक्षके लिये स्वच्छ दनापूरक जिस किसो पुरुषसे हो समझो जायेगी। | सहवास कर सकती थी, जिस किसी परपुरुषके यहां हिन्दू विवाह । मा जा सकती थी। ये कौमार अवस्थासे हाध्यमि- इसका निर्णय करना बहुत कठिन है, कि हिन्दू-समाज-! चारिणी होती थी। उस समय के पति इनके इस कार्य. में कव विवाह-संस्कार प्रदर्शित हुआ। यशप्रवाह में बाधा नहीं देते थे। उस समय यह अधर्म भी गिना संरक्षणके लिये स्नापुरुषका संयोग म्वाभाविक घटना है। नहीं जाता था. वरं यह उस समय धर्म हो फहा कितु घेदादि प्रयों में प्रजासृष्टिको अन्यान्य अलौकिक : जाता था; महाभारतफे समय उत्तर-कुरुप्रदेशमें यह प्रक्रियाये भी दिखाई देती हैं। मानस सृष्टि आदि , प्रथा प्रचलित थी। पाण्डने स्वयं भी उसे स्टलासे योनिसम्भव सृष्टि इमके उदाहरण हैं। मन्त्रघ्राह्मण : कहा है। पाण्डने यह भी बताया है, कि किस तरह में नारीक उपस्थदेशको प्रजापतिका दूसरा मुख कहा । यह प्रथा रोको गई । मादपा १२२ अध्याय ६-२० श्लोक गया है। ऋग्वेद जगत्का आदि प्रन्धे कहा जाता है। इस . उन्होंने कहा है-मैंने सुना है, कि उद्दालक नामक ऋग्वेदके समय बिंदू-ममाजमें विवाहको प्रथाये एक महर्षि थे। उनके पुत्र का नाम था श्वेतकेतु । इसी दिखाई देती हैं। ये सुसंस्कृत सभ्य समाजको वियाह- श्वेतकेतुने हो पहले पहल स्त्रियोंकी स्वच्छन्दविदारप्रया. प्रथा रूपमै समादत होने योग्य है । यह कहा जा नही । कोराका था। क्रोधित हो श्वेतकेतुने ऐसा क्यों किया, सकता, कि वैदिक कालके पहले हि दुओं में विवाह बन्धन उसका विवरण सुनो। एक समय उहालक, श्वेनमेनु कैसा सुदृढ़ था। और उनकी माता एकत्र बैठी हुई थी। ऐसे ममय एक महाभारत पढ़नेसे ज्ञात होता है, अत्यन्त प्राचीन ब्राह्मणने आ कर श्वेतकेतुको माताका हाथ पकड़ कर समयमै व्यभिचार दोपरूपमें नहीं गिना जाता था। कहा, माओ चले। यह कह कर बह ब्राह्मण उस हमने मादिम जातिके लोगों के विधाह-वर्णनमें इन सब . एकान्तमें ले गया। पिपुत्र शेतकेतु इस घटनामे पातीका उल्लेख किया है। महाभारतके १।१२२।२५ २६. , बड़े असन्तुष्ट और फोधित हुए। उहालकने उन्हें श्लोकमें लिखा है-पाण्ड कुन्तीस कह रहे हैं, कि हे पतिवने बहुत तरहसे समझाया । उहालकने यह स्पष्ट कहा- राजपुनि । धर्मश यही धर्म जानते हैं, कि ऋतु समय । - पुल, तुम , क्रोधित न हो, यह सनातन धर्म है । इस स्त्री स्वामीको अतिक्रम न करे, गवशिष्ट अन्यान्य समयमे । जगतको सभी स्त्रियां अरक्षिता हैं । गायोंको तरह मनुष्य स्त्री स्वच्छन्दवारिणो हो सकती है। साधु लोग इसे भी अपनी अपनी जातिमें स्वच्छन्दतापूर्वक विहार प्राचीन धर्मका कीर्तन कहा करते हैं। : ५ करते है। इस तरह ऋपिके समझाने पर भा श्वेतकेतुके इससे मालूम होता है. कि त्रियां ऋतुकालमें खामो. चित्तका सन्तोष नहीं हुमा। उन्होंने सो पुरुषके इस के सिवा अन्य पुरुषसे सहवास नहीं करती थी', ऋतु । व्यभिचारको दूर करने के लिये नियम बनाया। इस कालके सिवा अन्य समयमें अन्य पुरुषसे सहयास कर समयसे मानव समाजमें यह प्रथा प्रचलित है, किन्तु सकती थी। महाभारतके प्रागुक्त अध्यायके प्रारम्भमे अन्यान्य जन्तुओंमें यही प्राचीन, धर्म अब तक बलवान पापडने फुन्तोसे जो कहा था, वह ,महाभारतके आदि | है। श्वेतकेतुने यह नियम बनाया, कि आजसे जो स्त्री पवेक १२३ अध्याय ३-७ श्लोकमे देखिये। यहां हम उसक, किसो समयमें पतिवञ्चता करेगो, चढ़ मणहत्याकी "भावार्थ देते हैं- तरह महा अमङ्गलजनक पायको भागिनो धनेगी । फिर स्त्रियां पहले घरमें बन्द नही रखी जाती थी। ये जे पुरुष वालकालमे साधुशोला पतिव्रता. पत्नो पर 'सबको साथ मिल-जुल "। सभी उनको देख । अत्याचार करेगा, उसको भी इसो पापका भागी बनना