पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष एकविंश भाग.djvu/६३६

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

५५० विवाह, "एतं वा स्तोममश्विनावकातनाम मृगयो न रथं । पाता है। हे वलयान इन्द्र ! जिस तरह कामयमांना पत्नी न्यमक्षाम य.पणा न मय्ये नित्यं न सूनु तनयं दधानाः।" | कामयमान पतिको पाती है, वैसे हो मेधावियोंकी (ऋक १०३६।१४) स्तुतियां तुमको स्पर्श करें। जैसे दामादको कन्यादान करते समय वस्त्रभूषणसे यह प्रमाण भी प्रागुक्त मनुवचननिहिट गान्धर्व विवाह सुसजित कर कन्यादान किया जाता है, वैसे ही मैंने का वैदिक प्रमाण है। . . स्तयको अलंकृत किया जिससे नित्य हमारे पुत्र-पौत्र . देवरके साय विधवा-विवाह । कायम रहे। स्वामोके मर जाने पर देवरके साथ विधवा विवाह कन्या और वरको वनभूयणसे सुसजित कर फन्या- | प्रथा भी ऋग्वेदके समयमें प्रचलित थी। के पिताके घर व्याह करनेकी प्रथा बहुत पुराने समयसे । "कह खिदोश कह वस्तोरश्विना कु हामिपित्व करतः ही उत्तम मानी जा रही है। कु होतुः। को पा शयुमा विधवेव देवर मर्यो न योषा कृणुते देव-विवाहमें भी अलंकृत कन्यादानको प्रथा प्रवः | सधस्प मा ॥" (१० मयडल ४० सक्त २ क ). . लित थी। (मनु ३ अ० २८ श्लो०) इसका अर्थ यह है, कि हे अश्विद्वय ! तुम लोग दिन। स्वयम्बर और गान्धर्व विवाह । या रातमें कहाँ जाते हो या कहां तुम समय बिताते हो? इस समय आसुर-विवाहमें भी धर-कन्यादान करने विधया जिस तरह सोनेके समय देवरका समादर करतो' की प्रथा है। है अथवा कामिनो अपने कांतका समादर करती है, यह ____ मृग्वेदमें स्वयंवर तथा गान्धर्वा-विवाहका भी उल्लेख आइनस्थलमें कौन तुमको वैसे ही आदरके साथ पाया जाता है। (१० म० २७ स२ १२ क ) धुलाता है ? . ऐसी कितनी ही स्त्रियां हैं जो अर्धाको प्रोति के कारण ___ मनुसंहिताके नये अध्यायफे ६६वे श्लोकफी टीका. कामुक पुरपके प्रति अनुरक्ता होती है। जो स्त्रियां में मेधातिने इस ऋकको उद्धत किया है। उत्तम , जिनके शरीर सुगठित है, ये घात लोगो'मैसे विधवाओं के सम्यन्धमे और भी एक क दिवाई अपने मन के अनुरूप प्रियपान चुन लेती हैं। देती है। सुविख्यात सायणाचार्यने इस ऋक्के भाष्यमें लिखा । "उद्दीष्य नाम जीवनोक गतासुमेतमुप शेष हि । हस्तग्राभस्य दिधियोस्तवेदं पत्यु नित्वमभि सं वभूय ॥" ___ "अपि च यया वधूभद्रा ( कल्याणी ) सुपेशाः (१० म०१८ सू०१८ ऋक) । (शोभनरूपा ) च भवति, सा द्रोपदीदमयन्त्यादिका अर्थात् हे मृतको पनि ! जीवलोकमें लौट चलो। वधूः स्वयमात्मनैव जने चिजनमध्येऽवस्थितमिति मित्र यहांसे उठी । तम जिसके साथ सोने जा रही हो, यह मर प्रियमर्जुननलादिकं पति धनुते (याचते स्वयंवरधर्मेण | चुका है। अतः लौट आओ । जिसने तुमसे विवाह प्रार्थयते)।" कर गर्भाधान किया था, उस पतिका जाय-त्य गत हो ____कन्या और वरकी परस्पर इच्छा द्वारा जो संयोग | गया है। अतः सईमरणकी मावश्यकता नहीं। होता है, यही गांधर्व विवाह नामसे प्रसिद्ध है। इस क्फे पढ़नेसे मालूम होता है, कि ऋग्वेदके ऋग्वेदमें और भी लिखा है, कि स्त्री अपनी आकांक्षा- | समय भी कही कही सतीदाइकी प्रथा प्रचलित शी। . फे अनुसार भी पति चुन लेती है। किन्तु सूक्तकारने पुत्रपौत्रयुक्ता विधवाको सहमरणसे . . (१ म०६२ सूत्र ११ ऋक् ।। रोकने के लिये ही इस सूक्तकी रचना की है। साधणने अर्थात् हे दर्शनीय इन्द्र, तुम मन्त्र और नमस्कार 'जोवलोक' पदकी व्याख्यामें लिखा है, "जोवानां पुन.. द्वारा स्तुत हो । जो मेधावो पुरुप सनातन कर्म या धन पौत्रादिना लोक स्थानं गृहम्" । 'जायात्व गत हो गया।' की कामना करता है, वह बहुत प्रयास करनेके बाद तुमके, इस पदके मूलमें भी वैसे ही भावकी बात है। यह क.