पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष एकविंश भाग.djvu/६३९

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विवाह

और तो क्या-हिन्दुगो के प्राचीन ग्रन्थ ऋग्वेदके पढ़ने | 'विधवाः । धवः पतिः। अविगतपतिकार 'से मालूम होता है, कि कुछ स्त्रियां पतिके मर जाने पर | जीयत्भत्र का इत्यर्थः। सुपत्नी शोभनातिका इमा सोते समय देवरका समादर करती थी अथवा देवरके नारी नार्य अअनेन सर्वतोऽञ्जनसाधनेन सर्पिपा घृतात- साथ सोती था। जैसा कि ऋग्वेदके १० मण्डल ४०' नेवाः सत्यः संविशन्तु । तथानधोऽयर्जिता अरु सूत्र २ में लिखा है। इसका प्रमाण हम पहले दे चुके दत्योऽनमीयाः । इत्यर्थः अमोव रोगः । नर्जिताः मानस. हैं। इससे स्पष्ट मालूम होता है, कि प्राचीन काल में कुछ दुःखर्शिता सुग्लाः शोमनधासहिता जनयः जन- विधवाये कामसे पोड़ित हो कर या प्रेममें फस कर देयर- यत्यपत्यमिति जनयो भार्याः। ताप्रे सर्वपां प्रथमतः के साथ रतिसम्भोग करती थी। इसका कुछ पता एव योनि गृहमारोहन्तु। मागच्छन्तु ।। नहीं चलता कि यह प्रथा उच्च हिन्दमो में थी या निम्नमें हम हमका मर्ग ऐसा समझाते हैं, किन्दले समय- अथवा यह समाज में असाधकासे प्रचलित थी या नहीं। में मृत व्यक्तिको स्रोफे साथ साथ अविघया (स्था) यह मो हो सकता है, कि सन्तानरहित विधवा ऋतु. शोभनपतिका, शोमनधनरस्नयुक्ता स्त्रियां भी श्मशानमें कालमें पति के रूपमें देवरसे सम्भोग किया करती थी। जाती थी। वे विधवाओं के दुःख सहानुभूनि दिखा .इसके बाद कामशेड़ित तथा प्रेममें पड़ार देवरको पति- कर रोती और मानसिक दुःन प्रकाश करतो यो। का स्थान दे देती थी। फिर यह भी हो सकता। उनके प्रति यह अभिप्राय प्रकट किया जाता है, कि ये नेत्रों में है, कि सूत्रकारके यासस्थानके चारों ओर यह प्रथा | सम्यक् रूपसे गजन लगा घृताक्त नेत्रसे शोकाथ और इतर श्रेणी में प्रचलित धो या उस समय उच्च | चित्तक्लेश परित्याग कर सबसे पहले घरमें प्रवेश करें। दरजेके हिन्दुओं में भी यह प्रचलित ना सम्भव नहीं। इसके बाद के ऋमें ही मृत् व्यक्तिको पत्नीको पति- है। जंगन्फे अनेक स्थलों में यह प्रधा गाज भी देखो। को श्मशानशय्यासे घर लौटाने के लिये देवर आदि जाती है। भारतमें भी नोवश्रेणोके लोगों में भौजाईको उपदेश कर रहे हैं। यथा सायणः- पत्नी रूपसे रखने की प्रथा चलो आती है। किन्तु हमारे देवरादिकः प्रेतपत्नोमुदीष्यं गारोत्यनया भत्त: मनुमहाराज इस प्रथा कट्टर विरोधी थे। मनु का कहना | सकाशादुत्थापयेत् । सूषितं च-तामुत्थापये वरः पतिस्थानीयोऽन्तेयासी जरहासो पोदो नाभि जीव "ज्येष्ठो ययोयसो भा यशैयान वाप्रजस्त्रियम् । लोकम्" ( आश्व० गृह० ११२१८) . पतिती भवतो गत्यप्पनियुक्तापपनापति" "५८" देवर भादि स्वजन पा कह कर प्रेत पत्नी को उठा कर (मनु ६ अध्याय) ] स्मामी समोप घर लौटाने थे, सूत्रकार यही कह रहे निधया-रमणीका देवर के साथ संसग शायद दोपा-| हैं, यथा- वह समझा नहीं जाता था। "उदीकी नाभि जोवनोक' गतासमेतमा शेष एहि। किन्तु इससे कुछ भी पता नहीं चलना, कि देयरके | हस्त प्रामस्य दिधिषाशु वेद पत्युर्ननित्वमगि सं बभूय ॥" साथ विधयाका विवाह होता था या नहीं, विवाहकं | . (१०म० १६०८ शुक्) जितने मन्त्र हैं, घे सब उच्चारित होते थे या नहीं। | - हेमृतकी पत्नि! तुम इम स्थानसे उठ कर पुत्र. ...१० वे मण्डलफे १८३ सूक्तका एक ऋम् उद्धृत करते | पौत्रादि वासस्थान गृहसंसारको ओर चलो। तुम जिसके साथ साने जा रही हो, यह तुम्हारा पति मर "इमा नारीरविधाः मुपप्नी जनेन सर्पिधा संविशन्तु । चुा है। जिसने तुम्हारा पाणिमहण किया था, जिसने ... भनथवोऽनमावा मुरत्ना मारोहत जनयो योनिमन।" तुम्हारे गर्भसे पुत्र उत्पादन किया था, उसके साथ (१११८७)। तुम्हारा जो कर्तव्य था, उसका अन्त हो गया। उसका सायणने इसका जो भाष्य किया है, वह इस तरह अनुसरण करनेको यब जरूरत नहीं। अब चलो। । इन दोनों में विधवा विवाह तथा विधवा-प्रण. Vol. xxI 139