पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष एकविंश भाग.djvu/६४२

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५५६ विवाह कोई प्रमाण है या नहीं, यही पात विचारणीय है। कई तरहसे व्यभिचार होता हो पाता है। भारत हम पराशर के तीनों श्लोकों में मनु की पुनरुक्ति हो हिन्दू समाजने जब अतीय यिशालरूप धारण किया था, तब देखते हैं। उन तीनों श्लोको के अर्थ इस तरह है: उस हिन्दू समाज जो विविध माचरण गनुपन होते थे, . ___ खामोके कहो चले जाने, मर जाने. क्लोव होने, ) संहिनाओं के पढ़नेसे उनका कुछ आभास मिलता है। संमार म्याग करने, गयरा पतित हो जाने पर-निगोको हम इमसे पहले अमभ्य समाजके वैवादिक इतिहासकी दुसरा पनि करना धर्मसंगत है। स्यामो की मृत्युके आलोचनामें दिखला चुके हैं, कि विवाह के पहले भी या जो सो ब्रानाका अवलम्बन करती है, वह | बहुतेरे देशों में कन्या इच्छानुसार व्यभिचार करती है। देहान्तमें ब्रह्मचारियों की तरह स्वर्ग पाती है। जो स्त्री किन्तु उनका यह व्यभिचार उनके समाज में निन्दनीय पति के साथ सतो हो जाती है, वह मनुष्य शरीरके साढ़े। नहीं समझा जाता। हिन्दू समाज में भी किसी समय , तीन करोड़ रोमोंके सख्यानुसार उतने वर्ष तक स्वर्ग- अवस्था विशेष ध्यमिवार दिखाई दिया था और यह सुन पाती है। घटना क्षमाकी दृष्टिसे परिगृहीत हुई थी। कानीन पुत्रत्व ___ पराशरफे नोनों घचोंके पढ़ने से मालूम होता है, कि स्वीकार हो उसका माट्य-प्रमाण है । गनु कहते हैं:--- उन्होंने नारो आपत्कालका हो धर्म लिन्ना है। उन्होंने "पितृवेश्मनि कन्य तु य पुत्र जनयेद्रहः। . स्पष्ट हो कहा है.-"पञ्चस्यापत्सु नारीणां पतिरप्यो त कानीन वदेन्नाम्ना वाद : कन्यासमुद्भवम् ॥" . विधीयते । (मनु । १७२) शास्त्रविहित पतिका अभाव ही हिन्दू-नारोके लिये | अर्थात् पिताके घरमे विधाहक पहले कन्या गुप्त. आपत्रस्यरूप है। अतएव पाणिग्रहण करनेवाले पति के भावसे जो सन्तान पैदा करती है, उस कन्या विवाह अमानमें किसी भरणपोषण करनेवाले पालककी जरूरत हो जाने पर वह पुत्र उस पतिका 'कानीन' पुत्र कह- होती है। इस पति शब्दका अर्थ पाणिग्रहणकारी पति लाता है। नहीं । घर इसका अर्थ अन्य पति अर्थात् पालक है। ____ केवल घटनाको देख कर ही किसी कानूनकी सृष्टि । महाभारत में लिखा है- नहीं होती। कभी कभी समाजमें कानोन पुत्र देखे जाने थे। "पालनाचा पतिः स्मृतः।" महाभारत में सब विषयों का उदाहरण मिल जाता है। . अतएव पालक या रक्षक हो अन्य पति के इस पदको | कर्ण महाशय इसी तरह पाण्टु राजाफे, कानीन पुत्र थे। वाच्य हो सकता है। इस समय ऐसे कानीन पुत्रोंका हिन्दू समाजमें लेोप सा महामहोपाध्याय मेधानिथिने मनु पंहिताके नयम | हो गया है। इस तरहका व्यभिचार भी इस समय देश अध्यायके ७' श्लोकको व्याख्या, पराशरके उक्त | में दिग्वाई नहीं देता। श्लों का उदान किया है। इन्होंने लिया है :- फिर ऐसीभो घटना देखो गई है, कि दूसरेसे रिता- "पतिगदो दि पालन क्रियानिमित्तको प्रामपतिः सेना के घरमें कन्या गर्भिणो होतो थी । गर्भावस्थामें ही कन्या- याः पतिरिति । अतश्चास्मादयोधनेशा भत्त परतन्त्रा का विवाह होना था। विवाह होने के बाद सन्तान पैदा । स्यात् । गपि तु यात्मनो जोबना सैरन्धीकरणादि होती थी। अब इस सन्तान पर किसका अधिकार : कर्मपदन्यमाथरोत् ।" होना चाहिये, · इसके पालन पोषणका भार किस पर कुछ ले.गेका राय है, कि वाग्दत्ता कन्याफे सम्बन्ध अर्पित होगा, शास्त्रकारोंने ,इसी प्रश्नको मीमांसा की । में हो पराशरकथित व्यवस्था ठोक है। है। मनु महाराजने इसको मोमांसा कर लिया है- कन्याका पमिवार। .. कन्याका गर्भ जाना हुआ हो या अनजान हो, गर्भिणी

शनिवारको बन्द करनेक लिये शास्त्र कारेने उप- कन्याका वियाह करनेवाला हो गर्भ लइकेका

. देश याफ्पोको भरमार कर दी है। फिर, मो, समाजमें ! . पालन पोषण करेगा और उसोका ..इस,पर अधिकार