पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष एकविंश भाग.djvu/६४३

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विवाह रहेगा। ऐसा लड़का "महोद" नामसे प्रसिद्ध होगा। । विधवा-विवाह मन्यादि किसी फागसे भी अनुमोदित पालिका विवाह । - नहीं था। पराशरने भो तो "नष्टे मृते प्राजि" वचनों की कानीन और महोद पुत्र विवाद के पूर्व के ध्यमिचार पष्ट नहों को है, यह उक्त श्लोकको पढ़ शास्त्रान्तरफ के साक्षीस्वरूप ममाजमें विद्यमान रहते थे । इस! साथ एक वाक्यरूपसे मर्श समझनेकी चेष्टा करने पर मा अयस्त्राने भो व्यमित्रारिणियों का विवाह होता था। सहज ही समझा जाता है। इससे यह भी मालूम होता है, कि कन्यायें बहुत दिगो उद्धत १५७ श्लोकको टीकामें भी मेधातिथिने लिखा तक अविवाहित अवस्थामें पिताके घर रहती थी अर्थात् अधिक उम्रमे विवाह होता था तथा कुछ अजमे __"यत् तु नष्टे मृते प्रयजिते लोये च पतित पतौ । पञ्च स्वाधीनताका भो ये भोग किया करती थी। मालूम स्वापत्सु नारीणां पतिरन्या विधीयते । इनि-सन पाल. होता है, कि कानीन गौर सोढ़ पुत्रोत्पादनको वृद्धि देख नात् पतिमभ्यमाश्रयेत सैरन्धार्मादिनात्मत्यर्थ पिछले शास्त्रकारोंने पाल्पविधाहका गादेश प्रचार नयमे व निपुण निर्णेष्यते मोरितमत्त कायाश्च म विधिः ।" किया था। (अजिरा) ... .. - इसका भावार्थ'यही है, कि 'नटे मृत' श्लोक में जो जो कन्या अविवाहित रूासे पिता घरमै रदतो है, पति का प्रयोग है, उससे भरि मृत्योपरान्त पाल उसके पिताको बाहत्याका पाप लगता है। ऐसे एल. नार्थ भग्य पति हो समझा जाधेगा। में कन्याको स्वयं घर दद कर विवाह कर लेनी चाहिये ___ जहां पाणिग्राही पतिकी मृत्युफे याद नारियों के जीयन. पहिराने और भी कहा है- निर्वाहका कुछ उपाय नहीं रह जाता, यहां ही उनका "प्रान्तेतु द्वादशे वर्षे यदा कन्या,न दीयते । सापटकाल उपस्थित हो जाता है। सापत्काल उपस्थित तदा तस्यास्तु.कन्मायाः पिता पिरति शोणितम् ॥" होने पर उस समय आपत्ति अबलम्वन कर जोयिका राजमार्तण्ड में भी इमो सरहका विधान निदिए चलानी पड़ती है। ऐसी ही अवस्था दुनिनी स्त्रियों हुआ है। अत्रि गौर फरम्पने तो रजस्वला कन्याको फा अन्य पालन पोषण करनेवालेकी शरण लेनी पहती बियाह करने पर भी पिताको अपक्ति य बन कर समा में | है। जीविकामावडियेही जो विधवारे प्रति अनागत रहने का विधान बनाया है। भावकके शरणापान होगी, ऐसी बात नहीं है । विध- . कन्याके विवाह काल के सम्यन्धमें जो निर्णय अगा। याओंके अरक्षिता होने पर उनके लिये धर्मरक्षा करना ने किया था, महाभारत में उसका व्यतिकम देखा जाता भी कठिन है। इसलिये मनुने कहा है- है। महाभारत में लिखा है- "पिता रक्षति कौमारे भा रक्षति यौग्ने । "शिदी पोशाग्दा भायी शिन्देताग्निकाम्। रक्षन्ति स्थापरे पुत्रा न स्त्रो स्यातन्त्र्यमहति ॥" मनः प्रवृते रजसि कन दिद्यात् पिता सात् ॥" क्षेत्रमा अर्थात् तोस घर्षका युवक पेशियोंया भरजस्वला | महाभारत के समय "पुत्रार्थ क्रियते भाग्यां" इसी कन्याका पाणिग्रहण करें। इससे मालूम होता है, कि नोतिका यथेष्ट प्रादुर्भाव था ऐसा मालूम होता है। महामारतके समय कन्याये सोलह वर्षसे पहले साधार• | विवाह करने के कई उद्देश्य हैं, उनमें पुत्रोत्पत्तिका उद्देश्य णतः रजस्वला नहीं होती थों। किन्तु गिरा और यम प्रधानतम कहा जाता था। पति के किसी प्रकारको अस- के वचनों को देख कर मालूम होता है, कि किसी प्रान्त | मर्थताके कारण ,स्त्रोके सन्तानोत्पादनमें कोई वाधा विशेष या बट्टारको बालिकाओंको अवस्थाको पर्याली । उपस्थित होने या सत्तानदीन पति के मर जाने पर नियोग धना कर उन्होंने ऐसो व्यवस्था हो यो ।..पङ्गप्रदेशमें | द्वारा देवर या सपिएड व्यक्तिले सन्तानोत्पादन का तो ११ वर्ष तककी कन्याको ऋतुमतो होते देखा जा रहा. विधान था। ऐसे, पुनको , "क्षेत्रज" पुन नाम .rar .. ... .. : ..। जाता था। . _Vol, XxI, 140 . , .