पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष एकविंश भाग.djvu/६४७

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..विवाह 'प्रदान करता, तो हम इतने विम्मित नहीं होते। किन्तु दश कुल विशेषरूर निन्दित हैं, जैसे-हीनक्रिया अर्थान् दुर्भाग्यको बात है, कि समाजकं मुख्य विशेषतः श्रोत्रिय जातकर्म आदि संस्कार जिम वंशमै रहित, जिस घशमें ब्राह्मण इस सर्पिणी प्रथाके शिकार हो रहे हैं अर्धात्। गर्भाधान आदि दश प्रकार के संस्कार न हों, उस वंशकी 'अपनी दुहिताको येवा करते हैं। भ्रमसे भी ये लोग यह कन्या कमो प्रहण न करनी चाहिये। जिस कुल में पुत्र पाल नहीं करते, कि कन्याओं का क्रयविकप शास्त्रमें । उत्पन्न नहीं होता फेवल कनया जन्मता हैं, निश्छन्द विनकुल वर्जित है। समाजके नेता ब्राह्मर ऐसे नोच अधात् जिस चंशमें वेदाध्ययन तथा पण्डित नहीं हाते, · कर्मियों को शास्त्रानुसार शासनको भो व्यवस्था नहीं या जो अध्ययन नहीं करते, जे रामश है अर्थात् जिस करते। किन्तु हर्ष है, कि इस समय (कन्याविक्रय)। पंशके लोग अधिक गमयुक्त हाते हैं और जिस कुलमें क्रमशः कम हो गया है। । । मर्श, राजयक्ष्मा, अपस्मार, विन ओर कुष्ठरोग हो इन दश पुत्र-विक्रय ।। । कुलोको कन्यायें कभो प्रहण करनी न चाहिये। ये किन्तु दूसरी ओर पड्गीय ब्राह्मण और कायस्थ समाज विशेष रूपसे निषेध हैं। में विवाहकं लिपे पुत्रविक्रयप्रथा दिनों दिन बढ़ रही है। जिस कनयाफ शिरके बाल पिङ्गल या रक्त वर्ण हो, श्रीतिय ब्राहाणे में जिस दाम पर कम्यायें विकतो थों, उससे जिसके अङ्ग घड़े हों अर्थात् पैर या हाथका उंगलियां कहीं अधिक दाम पर इस ममय ब्राह्मणोंमें तथा कायस्थों- अधिक हों, जो मदा रोगिणी रहता हो, जिमके शरारमें में पुत्र यिक रहे हैं। इन्हीं दो जातियों में क्यो-प्राय: | राम नहीं हो, अत्यन्त लाम हो, जो अपारमित वाचाल हो सभी जातियों में पुत्र विक्रयको प्रथा प्रचलित है। इतर; जिसके नेस पिङ्गल वर्णके हो ऐसो कनयायें विवाह करने जातियोंकी अपेक्षा यह प्रथा कायस्कुलको मधिक योग्य नहीं । नक्षत्र, पृक्ष, नदी, म्लेच्छ, पर्वत, पक्षा, मर्प, अपना शिकार बना रही है। इसकी यह हालत देख कर यह और संयक या दासादिके नाम, जिस कनााका नाम हो, मालूम होता है, कि थोड़े दो दिनों में कायस्प-पन्यामो-1 और जो कनया भयानक नामवालो हो, ऐसी पनायें का विवाह असम्भव हो जायेगा। विवाहयोग्य नहीं । अर्थात् इन सब कनारामोंका . .विवाया और भविवाह्या कन्या। विवाह न करना चाहिये। नाम यथा-आमलकी, • किस लक्षणकी करयाका विवाह करना होता है और नर्मदा, वरी, विध्या,सारिका. मुनङ्गी, चटो, डाकिनो किस लक्षणकी कन्याका विवाह नहीं, मन्यादि इत्यादि नामविशिष्टा कन्या विवाहयोग्य नहीं। जिस शास्त्रों में इसका विशेषरूपसे वर्णन मिलता है। उसकी कन्याफे भाई नहीं है, अथवा जिसके गिताका वृत्तान्त । संक्षिप्तरूपसे आलोचना कर देखा जाय ।' गुरुको | विशेषरूपसे मालूम न हो, प्राक्ष पुरुष पेसो कन्याको भावास प्रतस्नान करनेके बाद द्विज लक्षणा-1 जारजत्यके इरसे विवाह न करे। जिस कन्याका मत ग्विता सवर्णा स्त्रीका विवाह करें। निम्नलिखित लक्षण विकृत नहीं हो, जिसका नाम सुखसे उच्चारण किया युक्त स्त्रियां विवाह करने योग्य है. जो कुमारी माता-1 जा सके, हंस या गजको तरह जिसकी गति मनोहर हो, को असपिएडा है अर्थात् जो स्त्रो सातवें पुश्त तक माता- जिसके लोम, केश और दांत बहुन मोटे न हों, ऐसी हो महादि संशज्ञात नहीं और जो मातामहाफ चौदह पुश्त । कोमलाङ्गो कन्या विवाहके लिये योग्य है। द्विजोंको तक सौता नहीं और जो पिताका सगोत्रा या सपिण्डा चाहिये, कि ऐसी कन्याओंसे ही विवाह करें। नदी है अर्थात् पितृखन्नादि सन्तति स्यम्भूता नहीं है ऐसो यायल्सयसंहितामें लिखा है, कि विज नपुंसक हा स्त्री यिवाहपेाग्य है और सम्मोग करने लायक है। स्वादि दोपशन्या, अन्नन्यपूर्वा ( पहले किसी दुसरेके (सात पुस्त तक सापिएडयरहता है) । साथ विवाहको वातचीत भी न चली हो, मोर दूसरेकी गी, करो, भेट और धन धानादि द्वाप अति समृद्ध उपयुका नहीं हो, उसोका नाम अनन्यपूर्ण है।), महावंश होने पर मां नो प्रहण के सम्बन्ध निम्नलिखित | कान्तिमतो, असपिण्डा (पितृवाधुसे नीचे सात पुस्त Vol. XXI, 141