पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष एकविंश भाग.djvu/६४९

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

- विवाद ५६३ चलो शुनपर्ण और समान हो, जिसके वाक्य सरलतासे । पासको गलो जमीनसे छू न जाये, वह स्त्रो दुल क्षणा परिपूर्ण हो, जो स्त्री समगाव, हस या कोकिलको सरह, कहो जाता है। जिस स्त्राके पैरफ अंगूठेको गलको भाषण करनेवालो और कातरताहोन हो, जिसकी उंगली मंगूठेसे बड़ी हो, वह भी दुर्लक्षणसम्पन्ना नासिका समान, समछिद्रयुक्त और मनेाहर तथा नील है और उसके साथ विवाह करनेसे मनुष्यको फिर पाको तरह शोममान हो, जिसके 5 युगल आपसमें दुःखका ठिकाना नहीं रहता। 'सटे हो, मोटे न हो, न लम्बे हो, परं धन्याकार हो- जिस स्त्रोफे घुटनेका निचला भाग उदद, दोनों ऐसी रमणी विवाह के लिये उपयुक्त हैं। जिस कामिनोजकों में शिरा तथा रामसे भरे हों और बहुत मांस- का ललाट चन्द्राकार, नीच च न हो; विशिष्ट हों, जिसका नितम्ब वामावर्त, नोचा और छोरा और जिस पर रोम न हो. जिसके कान दोनों समान है, तथा जिसका उदरं कुम्भ ( घट) के समान हो- और कोमल हो, जिसके फेशे चिकने और घोरे काले ऐसी कुनारियां दुर्लक्षणसम्पन्न हैं। यह यिवाहक रंगके हो तथा जिसका मस्तक सममायसे' अवस्थित लिये अयोग्य है। जिस स्त्रीकी गर्दन छोटी हो यह हो, ऐसी लक्षणयुक्ता रमणी विवाहके लिये अच्छी दरिद्रा, लम्बो हो ना कुलक्षणा और मोटा हो ना प्रचण्डा है और विवाह करनेसे सुप-समृद्धि बढ़ती है। होती है। जिस स्त्रोके नेन पिङ्गलवर्ण, फिर भी चञ्चल 'जिस स्त्रीके हाथ अथवा पांवमें भृङ्गार, आसन, हम्ती, है और मुसकाने पर भी जिसका गाल गहरा हो जाता रथ, धोवृक्ष (घल), यूर, वाण, माला, कुन्तल, चामर, है, यह दुर्लक्षणसम्पन्न है। अंकुश, यष, शैल, ध्वज, तोरण, मत्स्य, स्वस्तिक, ललाट लम्बा होनेसे देवरका नाश, उदर लम्बा होने. घेदिका, तालत, शछन्न, पन मादि निहो' में एक से श्वशुरका नाश और चूतड़ लग्दा होनेसे स्वामीका मी चिह्न अङ्कित हो, तो वह सौभाग्ययंती है, अतः ऐसो विनाश होता है। गतः पे भी दुर्लक्षणा हैं। जो रमणी हो कुमारियां विधाहफे लिये उत्तम है। बहुत लम्बी और जिसका अधोदेश रोमांसे भरा हो, ___जिस कुमारीके "हायका मणिबन्ध कुछ निगूद, | जिसके स्तन रोमयुक्त, मलिन और तीक्ष्ण हों, गौर जिसके हाथ तगण कमलके बीचका माग अङ्कित हो, जिसके दोनों कान विषम हो, जिसके दांत मोटे हों, जिसके हाथको उंगलियों के पर्ण सूक्ष्म और जिसका हाथ भयङ्कर और काले मांसयुक्त हो, तो वह स्त्रो ठोक नहीं न बहुत गहरा और न वहुत ऊना हो, फिर भी उत्कृष्ट अर्थात् उससे विवाह करना न चाहिये। हाथ राक्षसोंकी रेखायुक्त हो, ऐसी रमणो ही उत्तम और विवाहा है। तरह अथवा सूखे हों या जिसके हाथमे वृक, काक, कङ्का, 'जिस स्त्रोके हाथमे मणिबन्धसे निकली एक लम्बी सर्प और उल्लूका चित्र अङ्कित हो, जिसका होठ मोटा (ऊर्ध्व ) रेखा मध्यमा उंगलीके मूल तक गई हो या | हो और केशाय रूखे हों, यह नारी दुर्लक्षणसम्पन्ना है। जिसके चरणमें दो ऊर्ध्य रेखा हो, तो यह कनया माग्यवान स्त्रियों के शुभाशुभका विचार करने में निम्नलिखित होगी। अंगुष्ठके मूलमें जितनी रेखा रहती हैं, उतने | स्थानों का ध्यान रखना चाहिये । '१ दोनों चरण और ही सन्तान होते हैं। इनमें जो मोटी रेखा है, यह पुत्रकी, गुल्फ, २ जङ्घा और घुटने, ३ गुह्य स्थान, ४ नाभि जो पतली रेखा है, यह पुत्रीको है। फिर जो रेखा क्षीण, और कमर, ५ उदय ६ हृदय और स्तन, ७ कन्धा और नहीं हुई है, वह सन्तान होजोषी तथा खरखरखाका ! जान, ८ होंठ और गरदन, ६ दोनों नेत्र और भ्र तथा सन्तान अल्पायु होता है। इन सब लक्षणोंको देख कर १० शि।देश ।' इन स्थानोंका शुभाशुम विशेष रूपसे कनया विवाह के लिये निश्चित करना चाहिये । स्थिर कर लेना चाहिये। (पृहत्संहिता ७ अ०) ___ अविवाया नारी। - जिस कन्याका पैर खड़ाऊं की तरह हो, दात कोकी अब दुर्लक्षणा स्त्रियों की आलोचना की जायें। जिस तरह और नेत्र बिल्ली की तरह हो, तो उस स्त्रोंसे मी खाके चलनेके समय उसके पैरकों कानो और उसको । विवाह न करना चाहिये। यहचलित प्रवाद है।