पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष एकविंश भाग.djvu/६५६

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५७० विवाह समये सम्प्रदानशालायां उत्तरतः स्रोगयी चध्या विष्ट-। सामवेदीय विवाहमण्डपमें बसे भीषण . दृष्यका रादिकं सजोहत्य पश्चिमाभिमुखे उपविधस्तिष्ठेत् ।" विधान दिखाई नहीं देता। कन्यादान हो जाने पर अर्थात् कन्यादाता दिनमें नान्द'मुग्वश्राद्ध कर शुभ ] नाई "गोगो" ध्वनि कर दामादको गोको पात स्मरण लग्नके समय प.न्या-सम्प्रदान-शालामें एक गाय बांध करा देता था; किन्तु सुगीन और सुबोध पालक - रखे और विष्टर भादि सजा कर पश्चिमको मोर मुंह | दामाद गम्भीर भावसे कहता था- कर बैठे। इसके बाद वरका चरण तथा पूजा हो जाने "मुञ्च गां वरुणपाशात् द्विषन्तं मे मधेति । तं जये. पर उसे भीतर घरमें भेजें जिससे स्त्रियां मङ्गलाचरण ऽमुष्य, चोभयोरुत्सृज, गाम तृणानि, वियतूद म्।" कर सके । आपसमें मुग्वचन्द्रिकाको देखा देखी होनेके ' अर्थात् हे नाई! वरुण देवताके पाससे गायको । बाद घर सम्प्रदानशाला आये। इसके बाद कन्या विमुक्त करो और ऐसी पहाना करो, कि उसी पाशसे । दाता कृताञ्जलि भायसे वरको लक्ष्य कर गोपस्थापन | मेरे प्रति विष्ठा व्यक्तिको धांधा जा रहा है। ऐसी का निम्नलिखित मन्त पाठ करें- कलाना करो, कि पाशमें यधे मेरे उस शत्र को भोर ____ "प्रजापतिपिग्नुष्टुप् छन्दोऽई णीया गोर्देवता यजमानके शव को मार रहे हो, गायको छोड़ दो, पद गयोयरधने विनियोगः। ॐ अहणा पुनधाससा | तृणभक्षण करे और जल पीये। इस आदेश पर नाई धेनुरभवद् यमे सा नः पयस्वती दुहामुतरामुत्तरी गायको छोड़ देता था। उस समय सुपण्डितकी तरह समाम् ॥" दामाद कहता था--- ___ अर्थात् हे पुत्रको सरह मादरणीय अचिरप्रस्ता | ____ जो गोजाति रुद्रोंकी जननी, पसुओ की सवत्सा उत्तरोत्तर वर्ष भी दूध देने में समर्थ ( वत्स दुहिता, मादित्योंकी यहन और अमृतरूपी सर्वोत्तम रहित वृद्वा या रोहिणो नहीं ) यह गाय तुम्हारी पूजाके , दूध की खान है, तुम लोग ऐसी निरपराधा अवध्या लिये वस्त्र के साथ खड़ी हुई है। यमदेवता कार्या- गायका मत मारना क्षेत्र में उपस्थित होने के लिये अर्थात् जन्मान्तर परिग्रहण- दामादके पण्डितजनाचित्त साधु घाफ्यसे विवाह के लिये प्रस्तुत है। समामे गायधनित भीषण दृश्य उपस्थित नहीं होता गुणविणुक भाप यद्यपि किसी किसी शब्दका था। निरपराधा गाय प्राण ले कर यहांसे चली जाती अन्यरूप अर्थ दिखाई देता है, किन्तु मूठ विषयमें जरा | थी। भी फर्क नहीं भर्थात् इसमें जरा भी सन्देह नहीं, ___ जब बाचार्या ऋत्यिक, प्रिय गतिथि मौर विवाह्य कि गाय वरफे श्री.सभाजनके उद्देश्य से यध करने के लिये घरकी अम्पर्थनाके लिये अपनी गौशालाकी प्रधान गो खडी की जाती थी। गोभिलगृह्यसूतमें (४।१०३)/ मारने की सम्परीत प्रचलित थी, तब विवाहपद्धनिमें दिखाई देता है, कि भाचार्या, ऋत्यिक, स्नातक, इस तरहका पाठ रहना स्वाभाविक ही है। किंतु जब राजा, विबाह्य पर गौर प्रिय तिथियों के भाने पर उनके अपर्थनाकी यह दूपत रीति बिल्कुल भीरण पाप होने... भोजन दिये उनके सामने घरकी सुलक्षणा दुग्धव. सं उठा दी गई है, तव इस मका विवाहपद्धतिमें रखने. सवत्सा गाय मारी जाती थी। कन्यादानके पहले ही की क्या आवश्यकता है ? जब विवाहमएडपमें गाय ले कन्यकर्ता विव ह्य वरफ नेत्रों के सामने इस तरहको आनेकी प्रथा नहीं, गाय यांधनेका नियम नहीं, तब सुलक्षणा गाय खड़ी कर उसकी जीभमें लोम पैदा कर "ना.पतेन गौ!:" क्यों भरा पड़ा है। इस तरहका अपना निष्टाचार दिखलाता था। यजुर्वेदीय विवाह प्रयोजन और निरर्थक प्राची प्रथाका प्रवाद-संरक्षण पद्धतिमें दिखाई देता है, कि कन्यादान करनेवाला केपल प्रयास ऋग्वेदमें भी दिखाई देता है। हम अबसे पहले मौमिक भद्रतासे हो सन्तुष्ट नहीं होता था, यरं गाय- वियाहार्य प्रस्तुता कनयाय पहनने के निमित्त मैले विप मारनेके लिये हाथमे तलवार ले कर खड़ा हो जाता था 1 आदि युक्त निस्त्रएड फटे घस्रोंकी यातका उल्लेख कर