पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष एकविंश भाग.djvu/६५८

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५७२ विवाह दाता कामः प्रतिप्राहोता कामा समुद्रमायिशत् । कामेन | दानपदसे ही प्राण गो समझना चाहिये । अतएव .' स्य प्रतिगृणामि कामैतत्ते।" 'भार्यात्म-सम्पादक प्राणी विवाद है । कन्यादाता यह कामस्तुति त्रिवेदीय विवाह-पद्धतिमें ही दिखाई जा कष्णदान करते हैं और यर जय कन्याको भार्या. ' : देती है। रूपमें ग्रहण करता है, तमी वियाह सम्पन्न हो जाता है। 'गाउ बन्धन। 'कितु तप भी जायात्व सिद्ध नहीं होता और न पाणि- ___ कन्यादानका दूसरा कार्य गांठबंधन है। साम- प्रहण ही सिद्ध होता है। हरिवंश विशङ्का उपाख्यान- वेदीय विवाहमें भी यर और कमाका गांउ धन होता में लिखा है- . . है। इसको प्रथिय धन या गांठय'धन कहते है। यजुर्वेः 'उस मूखने दूसरेकी विवाहिता भार्याको अपहरण .. दोष गांठव धगका मन पहले ही लिखा जा चुका है। कर पाणिप्रवणके मनोको पढ़ने में विघ्न उपस्थित किश पनि के प्रति नवदामा अनुराग दूर करनेक लिये है। इस वायरमें पाणिग्रहण के मन पढ़ने के पहले .. इन मनोरा पाठ किया जाता था। इनमलों में कन्या | अपहता कनताको "कावाहा" अर्थात् विवाहिता कहा .. के प्रति उपदेश दिये गये हैं। इस उपदेशमें जिन सव / गया है। मनुका करना है- ऐतिहासिक परिघ्रता सुनियोका नामोल्लेख किया | . "पाणिप्रणसंस्कारा सवर्णासूपविश्यते। गया है, उन्हीं सब प्रातग्रता : देषियों का नामाभ्यारण असवर्णा एवयं यो विधयवाहकर्मणि ॥" । मङ्गल जनक समझा जाता था। इस तरह कानप्रदानको । अर्थात् यह पाणिप्रक्षणसंसार बंघल सपर्णा कन्याः । विधि कर पाणिप्राण सकार किया जाता था। फेलिपे कहा गया है । सवर्णाके साथ विवाह हो विवाह और पाणिग्रहण। .. सकता है, किन्तु उसके साथ पाणिग्रहणकी कायली पाणिग्रहणसंस्कार होममूलक है। वैदिक मन्त्रमें नहीं हो सकती। होम करफे पाणिप्रवण सस्कार सम्पन्न होता है। पाणि. . . . . पाणिमहण मन्त्र ।। प्रहण मन जब तक पढ़ा नहीं जाता, तब तक विधाह __रत्नाकरका कहना है, - फि पाणिप्राण विधाहका सिद्ध महों हे ती। हम इस समय विशाहउद्वाह और अङ्गीभून संस्कारविशेष है और पाणिग्रहणक मत्र पाणिप्रक्षण शब्दको एक पर्याय अतर्गत मान कर विवाह काङ्गभून हैं। पाणिग्रहणकी प्रथा बहुत पुरानी - प्यवहार करते हैं। पस्तुतः विवाह या उद्याह और है। ऋग्वेदकं समय भी पाणिप्राणी प्रथा प्रचलित पाणिग्रहण एकार्थवोधक नहीं। रघुग'दनक, उद्वाह- थी। पाणिप्रहणक जो मन सामवेदीय मलिन ह्मण तत्यमे लिखा है- गौर सामवेदीय विवाह पद्धतिमें लिखे हैं, घे ऋग्वेदसे ___ "भार्यात्यसम्पादकग्रहणम्-विधाहा ही लिये गये हैं। यर अपने वांये हायसे चूका हाथ अर्थात् विष्णु गादिके वचनानुसार भाम्यांत्य सम्पादक और उसकी उंगलियां दाहने हाथ से पकड़ कर निम्न महणको विवाह कहते हैं । विवाह के सोपान होनेसे लिखित मन पढ़ने है- . . कन्याका पत्नीत्व निष्पन्न होता है, यह शान ही विवाह (१)"भोम् गृम्नामि ते सौभगत्याय हस्त . . है। इसके सम्बंध स्मार्त रघुन दनने और भी सूक्ष्म मया पत्या जरदष्टिर्यशासः। , विनार कर मतमें कहा है, कि झाग विशेष हो विवाह . . भगो अर्यमा सविता पुरम्धीमा है। किंतु भार्याय सम्पादक पद केवल इस ज्ञानके । स्यादुर्गाद पत्याय देवा।।" विशिष्ट परिमालकमान है। कुछ लोग कहते हैं, कि ) . . . | . . . . . (१०म०:८५ १०२६) . कन्यादान ही वियाह है। , . . : ., . , . ____अर्थात् हे कन्ये ! अर्यमा भग सविता गौर मनु यायल्पपने ब्राह्म-विवाहका जो लक्षण कहे | पुरन्ध्रीने तुम्हे गाईस्थ्यजीवनके कार्योका, सम्पादन . है, उनमें दान ही विवाह मालूम होता है। किन्तु इस | करनेके लिये मुझको ससर्पण किया है, . तुम मेरे साथ