पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष एकविंश भाग.djvu/६६२

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५७४ विवाह जम्माण करता है। इसीलिये पनो मारा कही । सके। सुनकारिणी' खिों के साथ मुम्हारा समय भानी है। स्थापित हो। धतिहा मी गह गमन है-"अात्मा पुत्रनामामि" यजुर्विवाहमें मप्तपदीगमनमें फेघल यह अन्तिम प्रामा यापर शायरयमिसि हो पियादा मुम्प मड़ है। दिखाई नहीं देती। मिया इसके सप्तपद गमनमक : सारा पैर म पालने तक जायात मिद नहीं होता। कोई भी पाय नहीं दिखाई पड़ना । सवदीप वियाहमें पिया-पद्धतिमें होम समय प्तमपदोगमनका जो भी उक्त प्रदर्शनामन्न दिवाई नहीं देता। किन्तु सप्त कार्यानुष्ठान होता है, मन्त्रों मारा उसका वर्णन किया । पद गमनमग्नमें पाईपय है। यथा- गया है। यह मगह है- (१)"इप एकपदी भय, सा मामनुयता भय, घरके पाये सामने पनिममे पूर्वती मोर छोटे छोटे पुत्रान विन्दायई वहस्तःसन्नु जरदष्ट।।" सात मण्डल अदित किये जाने हैं। उन्दी मण्डलो (२) " अर्जे द्विपदी भय सा मामनुमत भव" . पर वर मात यार मन्त्र पढ़ कर पता पैर रखवाता है। इत्यादि। ___ मनों पापिय रहने पर भी जिस उद्देश्से सप्त- (१) "यो एकमिपेयिष्णुत्या नयतु ।" पदी गमन किया जाता है, उसके मूल उद्देश्यमें कोई भी मर्थात् हे फन् ! अर्थलाभफे लिये विष्णु तुम्हारा पापिय नहीं है। वेदोप मप्तपदीगमनमें भी उमी एक पैर उठायें। अर्शलाम, धनलाभ मादि उद्देश्यसे दो सप्तपद गमन करने. (२) "गों उजयिष्णुम्त्या नयतु ।" . का विधान है।. मितु इसके साथ प्रदरेक पदमें ही धनलामके रिये यिष्णु तुम्हारा दूसरा पैर उठाये। वधूका पनिकी अनुपता होने का गौर पुत्रादि लामका उपदेश (३) "शो तोणि घनाय विगुम्त्या नगतु।" ।। और एक पार्धापय है, कि ऋग्वेदीय यियाहमें सतग्दो कर्म या निमित्त तुम्हारा तोसरा पैर उठाये। गमनके लिये सामवेदीय और यजुर्वेदीय प्रथाको तरह (४) “मो पत्यारिमायो भगाय विष्णुस्त्या मयतु।" । छोटो मण्डलका गहिन नहीं की जातो। सात मूठ सौख्य प्राप्तिके लिये विष्णु तुम्हारा चौथा पैर चायल रन कर उस पर बधूका पैर क्रमशः परिचालित उठा। पर उक्त मत्रसे सप्तपदीगमन व्यापार सम्पन्न होता है। (५) "ओं पञ्च पशुम्यो विष्णुप्त्या नपनु ।" यह कहना वाला है. कि दिदूधियाहमें यह मप्तपदी. पशु-माप्तिफे लिये विष्णु तुम्हारा पांचयां पैर गमन विवादका अनि मुख्य अङ्ग है। यह कार्य जय तक .. उठायें। सम्पन्न नहीं होता, तब तक विवाद सिद्ध नहीं होता। . (६) "मों यमाय पेराय यिष्णुस्त्या नयतु ।" पितुगोपनिवृत्तिा धन प्राप्तिक लिपे यिष्णु तुम्हारा छठा पैर उठाये। । सप्तपदी गमन के याद ही कन्याको पितृगानिवृत्ति (७) "मो मप्त मातम्यो विगुस्त्या नयतु ।" दोती है और स्वामित्र को प्राप्ति होती है। .. स्या प्राधिक लिये यिष्णु तुम्हारा सातघां पर ___लघुशारीनमें लिखा है-मप्तपदोगमनके बाद ही पित उठाये। गोत्रसे भ्रष्ट होती है। इसके बाद उसको सरिएडकादि. • इसके बाद यर कन्याको सम्योधन कर कहता है क्रिया पतिगोत्र में की जायेगी। “समा सप्तग्दो भय मरपन्ते गमेयं सम्पन्ते मा पोपाः । वृहस्पति का कहना ? -पाणिग्रहण के समय तो मन समपन्तै मायोटय।" । पढ़े जाते हैं, ये मन पितृमाको अपहरण करनेवाले हैं। मात् हे कन्ये ! तुम मेरो सहनारिणी बनो, मैं इस दादसे पतिफे गेसका उल्लेया करके पिण्डदान तुम्हारा ससा गुमा। इमा ध्यान रखना, कि मेरे साथ ! आदि क्रिया करनी होगी। . तुम्हारा सोप स्थापित हुआ, यह कोई स्रोतो न गोभिलका गहना है, कि वैवाहिक मवसंशताक्षी