पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष एकविंश भाग.djvu/६६३

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विवाह अपने गोत्रका उल्लेख्न कर पतिको अभिवादन करेगी।। " मा पिदन परिवन्धिनो य मामीदन्ति दम्पती गोभिलके इस वाक्पको व्याख्या कर भट्टनारायणने | सुगेभिर्दुर्गमतोतामा द्वान्त्यरातयः।" (ऋक् १०१८.३२) लिया है--सप्तपदीगमनके बाद नवोढ़ा पत्नी । गुणविष्णुके भाष्यानुसार इसका अनुबाद इस पति को जय अभिगदन करेगो, नव पति के गोत्रका तरह है- उल्लेख कर अभिवादन करेगी। पतिके अभिवादनसे । अर्थात् जो चोर डाकू मादि रास्ते में पधिकोंको लूटा सामवेदोय विवाहको परिममाप्ति होती है। पाटा या वटपारी किया करते हैं, ये इस दम्पतीको देन वधूका पतिगहमें प्रवेश । न सके। यह दम्पती महलजनक पधर्म रथ हांक कर सामयेदीय विवाह-पद्धतिमें लिखा है- दुगंग पथको पार करे, शन, दूर हों। इसके पहलेकी "ततो दिनान्तो रपारूढो वधू कृत्वा वरः सगई नयेत् ॥" | कका मी ऐसा हो अर्थ है। इन दो अरु मन्त्राद्वारा वियाहक दिन दूमरे दिन पति वधूको रथ पर | प्राचीन कामे पथमे चोर डाकुओं द्वारा होनेवाले उप- चढ़ा कर अपने घर ले जाये। द्रवों तथा पथकी कठिनाइयों का परिचय मिलता है। इसका मंत्र यह है- ऋग्वेदीय वियाह-पक्षतिमें रथारोदणका जो मन्त्र है, "ॐ प्रजापतिवित्रि टुपछन्दः कनया देवता। यह इस तरह है- फलारोहणे विनियोगः। ॐ सुक्शुिर्क शाल्मलि विश्व | "यो पूषा स्येतो नयतु हस्तगृह्याचिन त्या प्रावहता रयेन। रूपं हिरण्यवर्ण सुयुतं सुनम । मा राइ सूर्ये अमृतस्य गृहानगच्छ गृहपना यथासो वाशिनो त्य विदयमा यदासि।" लोक स्थान पत्ये कृणुष्व ।" (मृ १०८५२०) (१० मएडल ८५ सूक्त २६ ऋ ) सायणके भाष्यानुसार इसका अर्थ यह है, कि 'हे। सूर्य (यहां कहो, कि हे बघू ), तुम्हारे पतिके घर जाने । अर्थात् पूषा तुम्हारा हाथ पकड़ कर यहांसे ले जाये, अद्विप रथ चला कर तुमको ले जाये, घरम का रथ सुन्दर पलास तथा शाल्मलो ( साखू) वृक्षको लकड़ियों का बना है। इसकी ति बहुत उत्तम और जा कर तम गृहिणो वनो । समाजको उच्न धेणोके सुवर्ण की तरह प्रभाविशिष्ट और उत्तम मासे घिरी है। सन्मान्त लोगों में विवाद जो राति प्रचलित थो, बैक्षिक मन्त्रमें उसोका आभास मिलता है। उसको स्त्री बहुत सुन्दरी है, यह दोनोंका वासस्थान है। इसके बाद सो मन्त्र पढ़ कर वधूको, घरमें प्रवेश इस समय तम पतिके घर उपयक्त उपढीकन ले जाओ।। __इस पाठसे मालूम होता है, कि बहुत पुगने कराना होता है, यह बहुत मारगर्भ है- समयमे हो इस देश में रथका प्य पदार होता जा रहा है। ___ "मो १६ प्रियं प्रजायेत समृध्ध तामस्मिन् गृहे गाईप यधू जिम रथ पर जातो यों, वह रथ मन्छो तरह ढका त्याय जागृहि । पना पत्या तन्व सं सृजस्थाधा विदयमा हुआ होता था। उद्देश्य यह था कि वो कोई बदाया"। (१० मपहन ८५ रुक्क २७ क ) देख नहीं ले या पथकी धूलि वधू पर न पड़ सक। पिता इसका अर्थ यह है, कि इस स्थानमे तुम्हारे सन्तान के घर पति के घर जाते समय बंधुको उपहोकन ले सन्तति पैदा हो और उनमें तुम्हारी प्रीति हो । इस जाने को प्रपा बहुत दिन की है गर्थात् अन्येकालसे गृहमें रह कर तुम सावधानोसे गृहकार्यों का सम्पादन चलो आतो है। इस समय भी यह प्रथा दिखाई देतो करो। पनि साथ अपनी देह और मनको मिला कर है। मादक दश मंडल के ८५' सूक्त में और भी मरणपर्यन्त गाई र धर्मका पालन करो। कितनो में यधूके पतिगृइने जाते समय रथ और ____नई घध को मुगृहिणा में परिणत करने के लिये विवाद उपदोहनका उल्लेख है। के वैदिक मन्त्रों में इस तरह के. वहुनैरे उपदेश दिये गपे राहमें किसी तरह का विघ्न उपस्थित न होने के लिये हैं। हिन्दू पत्तो दासी नहीं है, यद फंघल विलासको भी कितने हो मन्त्र दिखाई देते हैं। जैसे । सामग्री नहीं, यह है सहयाम्मणी और सच्चो गृहिणो