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विवाह
वादके स्मृतिकारों तथा पौराणिको'ने स्त्रोधर्मवर्णनमें | मांखको पाप और रोनेके पापोंको पूर्णाहुति द्वारा प्रशा.
पतिव्रता पत्नियो के.लिपे बहुनेरे उपदेश दिये हैं। : लन कर रहा है।
. पध-प्रदर्शन।
(३) "शोलेपु यच्च पापकं भापित हसिते च यत्। "
जब नई वधू घरमें जातो, तब उसके मुख दिखाने- .तानि च पूर्णाहुत्या सर्वागि शमयाम्यहम् ॥".:
के लिये टोल पड़ोसको नियुलाई जाती हैं। वे भा: तुम्हारे माघार ध्याहार और भाषा (पोला) या
कर वधूको देखतों और दमतोको आशोर्शद देतो। हसीमें यदि कोई पाप लिपटा हो, तो हमारी इस पूर्णा- .
पे सर मदाचार और शिष्टाचार अघ भो विवाहपद्वति हुतिसे नष्ट हो जाये।
तथा सामाजिक व्यवहारमें दिखाई देते हैं । इस सम्बन्ध (४) "भारोपु च दण्डेषु इस्तयोः पादयोश्व यत्। .
में वैदिक मत यह है:-
, तानि ध पूर्णाहुत्श सifण शर्माम्यहम् ।" ।
" मुमजलीरिय वधूरिमा समेत पश्यत । ' तुम्हारे मसूड़े में, दांतों, हाथों तथा पामि जो
सौभाग्यमस्य दत्वा याथास्त्व' विपरेत न ॥" पाप लिपटे हुए हैं, उनका इस पूर्णाहुतिसे नाश हो.
है पड़ोसियो ! आप लोग एकत्र हो कर भाये और | जाये।
इम नई सुमङ्गलो वधूतो देखें', माशीर्वाद दें गौर (५) "उध्योरपस्थे जय सन्धानेपु च यानि ।
सौभाग्य प्रदान कर अपने अपने घर पधारें।
तानि ते पूर्णाहुत्या सर्वाणि शमयाम्यहम् ॥"
वधूका मुंह देखनेको और आशीर्वाद देनेको पुरानी हे फरये! तुम्हारे उरुद्व, योनि (जननेन्द्रिय), जंघे
प्रथा अथ भो समाज में प्रायः उसी तरहसे प्रचलित है, और घुटने आदि सधिन्धान में सटे हुए पापोका सा.
किन्तु इसके लिये बुलानेकी जरूरत नहीं होतो। पड़ोमो नाम मैंने इस पूर्णाहुति से कर दिया है।
की वृद्धा और युवती स्त्रियां या पालिकाये स्वतः इस तरह सय तरहके पापों को दूर कर पतोकी देह
शोकसे देखने के लिपे आती है ।। . .. और वित्तको विशुद्ध कर हिंदूपति उसे गृक्षणी और .
देह संस्कार। . . . सहधर्मिणो बना कर इन सब मनोको पढ़ने से हिंदू
वधूको घर लाने पर भी सात्त्विक मनुष्ठानको विवाहका गभोरतम सूक्ष्म अभिप्राय लोगों की धारणाम
नित्ति नहीं होती थी। इसके बाद देह-संस्कार के लिये आ सकता है।
घन करना पड़ता था। इस प्रायश्चित होम द्वारा
हिन्दू विवाहका उद्देश्य।
घधूके दैहेक पाप या पापजनित अमङ्गलसूमक रेखा हिंदूविवाह एक महाया है। स्वार्थ इसकी आहुति
और निहादिको गशुमजगकता दूर करने के लिये यज्ञ तथा निष्काम धर्मलाभ इस या महाफल है। पवित्र
किया जाता था। यह यश आज भी किया जाता है। 'तम मंत्रभय यच हो हि विवाहका एकमात्र पद्धति है।
इसका मग्न यह है-, ... ... : . ! | यश बनलसे इस विवादका प्रारम्भ होता है। किंतु
(१) "गो रेखासन्धिषु पक्ष्मखायज्ञेषु च.यानि ते। श्मशानको विताग्नि भी इस विवाह बंधनको तोड़ नहीं ...
तानि ते पूर्णाहुत्या सर्वाणि शमयाम्यहम् ॥". . संकती। क्योंकि शाखकी आशा है कि स्वामोको मृत्यु
हे वधू। तुम्हारा रेनाङ्कित ललार हाथ मायि और धोनेस साध्यो खो ब्रह्मचर्य धारण कर पतिलक पानेकी · ·
चक्षुः इन्द्रिय परिरक्षक सभी पक्ष्म और नामिकूप आदि । चेष्टाम दिन वितायेगी। पियाफ दिनसे हो नारियल
स्थानों में लिपटे हुए पापों या अमङ्गल चिट्ठोंको. का ब्रह्मवर्यवत भारम्भ होता है। पतिके सुखमय मिलन
मैं इस पूर्णाहुति द्वारा प्रक्षालन कर रहा हूँ। के तीन दिन पहले भी कुसुमकोमला हिंदूवालाको ब्रह्म,
(२) "केशेषु पद्य पापकमीक्षिते रुदिते च यत् ।। चा धारण करना पड़ता है। फिर यदि भाग्पदोषसे
तानि च पूर्णाहुत्या सर्वाणिं शमयाम्यहम् ॥" / सती साध्या स्त्रो जय श्मशान के यज्ञानलमें पतिकी प्रेम. . .
' में तुम्हारे बालोंके समीप अशुभ चिहों, तुम्हारे मयो देह डॉल कर भून्य हाथ और शून्य चिचसे श्मशान- .
पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष एकविंश भाग.djvu/६६६
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