विवाहविधि-विविक्तनाम
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इसी प्रकार प्रणालीसे दिन और लग्न स्थिर कर! कर रातको विहित लग्नमें बाधादि नाना उत्सवों के साथ
विवाह कार्य करना उचित है। दुर्दिन तथा कुलग्नमें अग्नि, ब्राह्मण और आत्मीय स्वजनके सम्मुत्र कन्या-
विवाह कदापि नहीं देना चाहिये।
। सम्प्रदान करना चाहिये। सम्प्रदानके दाद कुशण्डिका
'विवाहके समय सौरमासका उल्लेख कर कन्यादान ' और लाजहाम आदि करने होते हैं। यदि विवाहको
करना उचित है। क्योंकि शास्त्र में लिखा है, कि विधा- रात्रिको ये कार्य न हो सके, तो विवाह के बाद जो दिन
हादि संस्कार कार्यों के सङ्कल्प यायों में सौरमासका उत्तम दिखाई दे, उसो दिनको करने चाहिये ।
हो उल्ले
साम, ऋक् और यजुर्वेदीय विवाह पद्धतियां
_उद्वाहतस्वमें लिखा है, कि दिनको विवाह नहीं करना | अलग अलग है। इनके होम आदि कार्य भी भिन्न
चाहिये। क्योंकि दिनको वियाह करनेसे कन्यायें पुत्र- प्रकारके हैं।
वर्जिता होती हैं। दिनका दान साधारण विधि है, किन्तु विवाहित (सं० लि०) कृतवियाह, जिसका विवाह हो
विधाहमें जो दान किया जाये, वह रातको ही करनेकी गया हो।
विधि है। . .
विवादिता (सं०नि०) जिसका पाणिग्रहण हो चुका हो,
यिवाहके इस दानके समय पर विशेषता है।। ध्याही हुई।
सब जगह दानमात्र में ही दाता पूर्वकी ओर मुंह कर दान | विवाहो ( स० वि०) १ विवादकारी, व्याह करनेवाला।
और गृहीता उत्तरमुखो हो कर प्रहण करते हैं, किंतु २ जिसका विवाह हो चुका हो, व्याही हुई। ३ विशेष.
विवाहमें इसका व्यतिकम दिखाई देता है। व्यतिक्रम शब्द रूपसे वहनकारी, खूब बोझ ढोनेवाला।
का मर्षदाता पश्चिममुखी हो कर कन्यादान करे और विवाद्य (सं० त्रि०) १ विशेषरुपसे वहन करनेके योग्य,
गृहीता पूर्व की ओर मुंह कर कन्या ग्रहण करे। जिमका अच्छी तरह बहन किया जा सके। २ पाणि-
दान करते समय दाता पहले परके प्रपितामहसे ! महण करने योग्य, ध्याहने लायक । (पु०) ३ जामाता।
घर तक नाम, गोत्र और प्रबरका उल्लेख किया जाना विविंश ( स० पु० ) क्ष पराजाके पौत्र । विदर्भराजकन्या
चाहिये । इसके बाद कन्या दान की जाये।
नन्दिनो इनकी माता यो। (मार्क पडेयपु० १२०१४)
वियाइमें वर और कन्याके परस्पर राशि, लग्न, प्रह| विधिशति ( स० पु० ) दियशसम्भूत नृपतिविशेष ।
और नक्षत्र मादिका एक दूसरेसे मेल है या नहीं, उसका
(मागवत हाश२४)
भी अच्छी तरह विचार करके हो कन्या निरूपण करना। विवि (हिं० वि०) १ दो। २ दूसरा।
चाहिये। इस तरह के निरूपणसे विवाह शुभप्रद होता! विविक्त ( स० वि०) वि विच-क्त ।१ पवित्र । निजन,
है। अरिपड़ष्टक, मित्रपड़टक, गरिद्विद्वादश, मित्रद्विद्वादश विजन । ३ पृषक किया हुआ। ४ विघरा हुआ। ५
मादि देख कर राजयोटक मेलक होनेसे विवाद प्रशस्त त्यक। ६ विवेकी, पानी । ७विधेचक, विचारनेवाला14
है। इस मेशकका विषय योटक शब्दमें देखो।
शुभ । ६ एकान । (पु०) १० विष्णु । (भारत १३१४६४१)
विवाह समय कन्याके माल पर तिलक काढना! १संन्यासो, त्यागी।
होता है। यह तिलक गोरोचना, गोमूत्र, सूखे गोवर, विविकचरित ( स० वि० ) जिसका आचरण वहुत
दपि गौर चन्दन मिला कर कोढ़ना उचित है। इससे अच्छा और पवित्र हो, शुद्धचरितवाला।
कन्या सौभाग्यवतो और आरोग्य होती है। तिलक विविकता (स' स्त्री० ) वियिक्तिका भाव.या धर्म, विवे-
आदि द्वारा कन्याको अच्छी तरह सज्जित कर वर भोर किता, वैराग्य।
। .
यधूको सम्मुख कराये।
विविक्तत्व (स० सी०) विविक्तता। -
विवाहके दिन प्रातःकाल सम्प्रदाता पाठो मार्कण्डेय, विचिकनाम (सं० पु.) १ पुराणानुसार हिरण्यरेताके
. मादिको पूजा, अधिवास, यसुधारा और नान्दीमुन-श्राद्ध सात पुत्रोंमेसे एक । २ इसके द्वारा शासित वर्षका नाम ।
पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष एकविंश भाग.djvu/६७३
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