पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष एकविंश भाग.djvu/६७५

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विवाह-विवेकानन्द 'द्रोणी, पानी रखने का एक प्रकारका घरतन। ४ विनार, | श्री, कि कुटिलता और स्वार्थपरता आदि किसका नाम युडिं, समझ । ५ मनको यह शक्ति जिसमे भले बुरेका है। अपने वन्धु वान्धव अथया किसी पड़ोमीके किमी 'ज्ञान होता है, भले और युरेको पहचाननेको शक्ति । कप्टको देख कर शीघ्र ही उसको कष्टसे उबारनेका प्रयत्न ६ शान । ७ पैराग्य, मंसारफे प्रति विराग या विरक्त करने लग जाते थे। भार। ८ स्नानागार, चश्या । ह भेद । १० विचारक, यद्यपि नरेन्द्र खेल तमाशा परोपकार आदि कार्यों में भले बुरेका विचार करनेवाला। लगे रहते थे, तथापि इससे घे अपना काम भी भूजते विकत (सं० वि०) विधक जानाति विवेक-शा-क। नहीं थे। बीस वर्षको उमरमें ये एफ, प, की परीक्षा में जिसे भले बुरे पहचाननेका ज्ञान हो। उत्तीर्ण हो वी० ५० में पढने लगे। इसी ममय उनकी विवे ज्ञान (सं० को०) विवेकाननितरा हान' विवेक एव | चित्तवृत्ति धर्मको ओर आकृष्ट हुई। घमे झिसे कहने शान था। तस्यशान, सत्यज्ञान । है और कौन धर्म सत्य है, इस यातका साधेपण करनेके विवेकता (स. स्त्रो०) १ विवेकका भाव, छान | २ मत् | लिये उनका हृदय प्याकुल हो उठा। हेस्टि साइव नामक और असत्का विचार। एक पादड़ो थे। घे जनरल पसम्पली कालेज अध्यापक विवेकश्वन ( स० वि०) विविक दृष्टगन् विवेक-दृश थे। नरेन्द्र उन्होंके निकट प्रति दिन घंटों बैठ कर धर्म कनि। विवेकदशी, तत्त्वज्ञानी, विमेकी। सम्बन्धी कसोपायन किया करते थे। परन्तु इससे इनका विवेकयत् (सां. नि. ) विवेकमस्यास्तीति विवेक-मतुप | संदेह दूर न हुआ। चारों ओर धार्मिकों की वञ्चकता मस्य वत्वम् । विवेकविशिष्ट, पैराग्ययुक्त। देख कर ये नितान्त संशयास्मा हो गये। अन्तम हृदयका पिकवान (0 पु०) १ २६ जिसे सत् और असत्को संशय दूर कर घे साधारण ब्राह्मसमाजमें प्रविष्ट हुए । शान हो, अच्छे धुरेको पहचाननेवाला। २ बुद्धिमान, जिस समय नरेन्द्र धर्मानुसन्धानके चरम पड़ कर अनुमन्द। इधर उधर भटकते फिरते थे, उसी समय गमकृष्णदेव विवेकविलास (सं० पु.) एक प्रसिद्ध जैन प्रन्य। परमद सके उन्हें दर्शन हुआ | नरेन्द्र के एक मित्र विवेकानन्द-१६षी सदोके शेष भागने जो सब महा परमहस देवके शिष्य थे। घे हो नरेन्द्रको एक दिन पुरुष यङ्गदेश गोर बङ्गालोके शिरोमणिरूपमें प्रतिष्ठा दक्षिणेश्वरको कालीबाड़ी में परमह'स देवके समीप ले लाभ करके पृथ्वी-पूज्य हो गये हैं, स्वामी विवेकानन्द । गये और परिचय करा कर बोले, 'प्रभो! यह लड़का , उनमेंसे पधान है । कलकत्ते में सिमुलिया नामक स्थान नास्तिक होता जा रहा है।' में स्वामी विवेकानन्दने १२६६ सालकी २५यो कृष्णा. | परमहंस देव श्यामाविषयक और देहतत्व सम्बन्धी सप्तमो तिथि उत्तरायण-संक्रांतिके दिन ( सन् १८६३ गीत पड़े प्रेमसे सुनते थे। कुछ देर तक कथोपकथन ई०की १२यों जनवरोको ) जन्मप्रहण किया था। उनके होनेके बाद गुरुकी आछासे नरेन्द्र के मिलने उन्हें गोत पिताका नाम था विश्वनाथदत्ता कलकत्ता हाईकोर्टके गानेके लिये कहा। नरेन्द्रका कण्ठ स्वर बड़ा हो मधुर पटानी थे। 'विश्वनाथ तीन पुत्र थे। सबसे बड़े और हदयग्राहो था। घे अपने मित्रके कहने से परमहंस का नाम नरेन्द्र, मंझलेका महेन्द्र और छोटेका नाम देवके सामने गाने लगे। नरेन्द्रका गाना सुन कर परम- भूपेन्द्र या। स्पेष्ठ पुत्र नरेन्द्र ही स्वामी विवेकानन्द | हसदेव पड़े प्रसन्न हुए । उन्होंने नरेन्द्रसे कहा, 'नरेन्द्र! नामसं विषयात हुए। तुम यहां रोज आया करो।' परमहंस देवके आशमुसार - नरेन्द्र बचपनमें पढ़े खिलाड़ी थे, परन्तु दुष्ट नहीं । प्रायः हो नरेन्द्र उनके यहां आते जाते और परमहंस देय. थे। वचपनमें ही 'स्मरण शक्तिकी अधिकता, प्रत्युः। से शङ्का समाधान करते थे। परमहंस देव जो कहते त्पन्नमत्तित्व, सरल हृदयता भादिको देख लोग विस्मित | ये, नरेन्द्र उसका युकियोंसे खण्डन फर दिया करते थे। हो जाया करते थे। नरेन्द्रको पइ वात मालूम नहीं' एक दिन परमहंस देवने नरेन्द्रसे कहा था, 'नरेन्द्र! यदि Vol.xxl 147