पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष एकविंश भाग.djvu/६७६

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५८६ . विवेकानन्द । तुम हमारी याने मानते ही नहीं हो, तो फिर हमारे यहां सम्मानको रक्षा करनेके लिये स्वयं स्वामीजी खेती माते क्यों हो।' नरेन्द्र ने उसर दिया, 'मैं आपके दर्शन | : पधारे। स्वामीजीसे साक्षात् होने पर महाराजने म्यामी.. करने माता, न कि आपकी पाते सुनने ।' जोसे पूछा, 'स्वामीजी ! जीवन पया है ?' स्यामोजीने परमहस देयके पास माने जानेसे नरेन्द्रका संदेह कुछ उत्तर दिया, मानव अपना - म्वरूप. प्रकाशित करना : कुछ दूर होने लगा। इसी समय पी० ए० परीक्षा पास ! चाहता है और कुछ शक्तियां उसको दयानेकी चेष्टा कर . करके वे कानून पढ़ने लगे। कुछ दिनों के बाद नरेन्द्र रही है। इन प्रतिद्वन्द्वो शक्तियों को परास्त करने के लिये के पिताका देहान्त हो गया । पिनाको मृत्युके बाद नरेन्द्र : प्रयत्न करना हो जोवन है।' महाराजने स्वामोजोसे का स्वभाव एकदम पलट गया। वे परमहस देवके पास इसी प्रकार अनेक प्रश्न किये और स्वामीजीसे यथार्थ . जा कर बोले, 'महाराज ! मुझे योग सिखाइये । मैं ! उत्तर.पा कर फूले न समापे । स्वामीजोफे वे कट्टर भक्त समाधिस्थ हो कर रहना चाहता है। आप मुझ हो गये। महाराजके कोई पुत्र नहीं था। उसी समय उसको शिक्षा दें । परमहस देवने कहा, "नरेन्द्र ! इसके .महाराज के हृदयमें यह भाव उत्पन्न हुआ, कि यदि लिगे चिन्ता क्या है ? सांस्य, वेदान्त, उपनिषद् मादि स्वामीजी महाराज आशीर्वाद दें, तो अवश्य ही घे धर्मग्रन्थोंको पढ़ो, आप हो सव मोख जाओगे। तुम तो पुतवान् होंगे। यही विचार कर स्वामीजीके जानेके धुद्धिमान हो। तुम्हारे जैसे पुद्धिमानोंसे धर्मसमाजका , समय महाराजने बड़े विनयसे कहा, 'स्वामीजो ! यदि - बड़ा उपकार हो सकता है।" उसी दिनसे परमहस देवके : आप आशीर्वाद दे, तो मुझे एक पुत्र हो।' स्वामीजोने" कथनानुसार नरेन्द्र धर्मग्रन्थ पढ़ने और योग सीखने । अन्तःकरणसं भाशीर्वाद दिया। इसके दो वर्ष बाद लगे। स्वामीजोफे माशोर्यादसे महाराज के एक पुत्ररत्न उत्पन्न नरेन्द्रकी माता अपने पुत्रको उदास देख उनका ! हुआ।. विवाह कर देना चाहती थी, परन्तु नरेन्द्रने विवाद महाराज चाहते थे, कि स्वामीजी के आशीर्वादसे पुत्रने करनेसे दिलकुल इन्कार कर दिया। कहते हैं, कि जन्मग्रहण किया है, इसलिये स्वामीजी ही आ कर उसका परमहंसदेयने नरेन्द्रफे विधाहकी बात सुन कर कालोजो। जन्मोत्सव फरें। उस समय स्यामोजी मन्दाजमें थे। से कहा था, 'मा! इन उपद्धोंको दूर करो, नरेन्द्रको मुन्शो जगमोहनलाल उनकी खोज करते करते वहीं बचाओ।" । पहुंचे और उन्होंने खेतडी महाराजका अमिलाप परमह'स देवकी कपासे नरेन्द्र महाज्ञानी सन्यासी स्वामोजोसे कह सुनाया। उस समय १८९३ १०को. हो गये। परमस देवके परलोकधामी होने पर गुरुको अमेरिकामें एक महाधम सम्मेलन होनेवाला था। उस - माहासे नरेन्द्र ने अपना नाम विवेकानन्द स्वामी रखा 11 समामे. समार-भरके धर्मके प्रतिनिधि निमलित किये . परमाहस देवो शरीरत्याग करनेके धाद विवेकानन्द | गये.थे, परन्तु हिन्दू धर्मका कोई प्रतिनिधि उस समयमे । स्वामी हिमालय मायावतो. प्रदेशमें जा कर योगमाघन नहीं बुलाया गया था। उस सभाका यह उद्देश पा, करने लगे। दो वर्षके याद तिष्यत और हिमालयके | कि सारफे धर्मो से तुलना करके ईसाई धर्मको श्रेष्ठता . भनेक प्रदेशों में ये घूमे। वहांसे पुनः स्वामीजी राजः स्थिर. को जाय। उस सभाके समापति थे रेवरएड पूतानेके भावू पर्वत पर भापे। वहाँ खेतड़ी महाराज के व्यारो। व्यारो सावने शायद समझा था, कि हिन्दु मन्त्री मुन्शो जगमोहनलाल स्वामीजीके किसी भकफे | मूर्ण होते हैं, उनको निमन्त्रण देना स्पर्धा है। इस अप साथ उनके दर्शन के लिये माये। मुन्शीजीने जा कर मानको न सह कर कतिपय भारत सन्तानाने स्वामी । खेतड़ी महाराजसे स्वामीजीकी विद्या बुद्धि आदिकी विवेकानन्दको यहां भेजना स्थिर किया।, .. . प्रशंसा की। स्वामीजोको प्रसा. सुनकर खेतड़ोके .. मुंशी जगमोहनलाल के विशेष अनुरोध करने पर महाराजने स्वामोजोका दर्शन करना चाहा ! ,महाराजके । स्वामाजी खेतहो आये । खेतड़ीके महाराजने स्वामीजीका