पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष एकविंश भाग.djvu/६८४

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विशालदेश सुखसाधनमें रत होते थे। सिया' इनके खण्डमत्तूं। हरिहर देवके मन्दिरको जीर्ण सत्कार कराया था और .. स्थानमें जिनका वास था, घे राजकीय कर देनेमें विल- | देव-संघाके लिये बहुत सी भूमि दान को यो।' फुल विमुख थे। फालिका एकांश धोतने पर हो इस मामे-प्रामके. दक्षिण दो द्वार प्रदेशके अन्तर्गत : देशमें केतुका उदय हुआ। किन्तु पक केतु नहीं, शङ्करपुर एक प्रसिद्ध ग्राम है। यहां कल्याणकारी नाम : श्वेत, मोल भौर रक्तवर्ण भेदसे लगातार चार भीषण | एक शियलिङ्ग था। मुसलमानो अमलमें उसका .. केतु उदय हुए । ये लोकनाशके हेतुभूत कहलाते । अन्तर्धान हुआ। साथ ही साय पापस्रोतसे इस प्रामकर हैं। फल भो ऐसा ही हुआ-सी समय नेपालियोंके . धनवैभव भी विलुप्त हुआ। तीसरा ग्राम दुग्धल है। साथ गण्डको नदोके किनारे. विशालदेशवासियोंका। यहां सोमदत्त नामक एक माह्मणके घर एक कपिला गाय घोर युद्ध हुआ। यह युद्ध तीन वर्ष तक रहा। हरि- थी। इसीलिये इसका दूसरा नाम कपिला ग्राम था। हर शियदेव उस समय विशालदेशके राजा थे। इस | - प्रवाद है, कि इस कपिला गोफे प्रसादसे इस प्रामके. युद्धमें विशालदेश विध्वस्त हुमा ।' यही नहीं, नेपा- | मादमियोंको भक्ष्य, भोज्य, पेय आदि सामप्रियांका कभी .. लियों द्वारा यह देश लूटा गया, लोगोंको हत्या को अभाव होता न था। गौको आधा थी, कि इस ग्राममें । गई, अन्त में इस देश पर नेपालका अधिकार हो गया। यदि गोहत्या होगी, तो इस प्रामका नाश. अवश्यम्भायी। यह सब घटनाये' कलिके आरम्भिक समयमें हुई है। परबत्ती प्रामका नाम गङ्गाजल है। यह प्राम' नेपालियों के लूट तरज मचानेसे यह विशाल देश दरिद्र । : यड़ा हो . समृद्ध है। पुराणों में लिखा है, , हो गया। इस दरिद्रताके कारण यहाँके अधिवासो: कि इस प्रामके सभी घ्राह्मण त्रिसंध्या गङ्गा स्नान करते . . यहांसे चले गये और दूसरी जगह वस गये। थे। : फर्मवश एक ब्राह्मण पडग्र हो गये। गङ्गा स्नान .. ____ कार्तिक महीने में यहां मेला लगता है। यहां गङ्गा / फर न सकेंगे, यह इस चिन्तासे ध्याकुल हो उठे। और गण्डकी नदीका संगम बड़ा ही पुण्यंप्रद है। इसोसे' स्नानाहार न.कर. उपवास रहे । रातमें ब्राह्मणने स्वप्न यहां यात्री मा कर स्नानादि कर अपने पाप क्षालन .देखा, माना गङ्गाजो कहती हैं-"जय तक तुम्हारो व्याधि : करते हैं। .. . . अच्छी न होगी, तब तक मैं तुम्हारे घड़े में बात करगो" . अब विशालदेशके प्रसिद्ध प्रसिद्ध प्रामोंका. घिवरण . तभोसे इस. प्रामका नाम "गङ्गाजल" हुभा था 1. इस संक्षेपमें दिया जायगा। विशालदेशके.एक ही प्रदेशमें ही प्रामक सम्बन्धमें भविष्यवाणी है-गाजल प्रामके . कुल सात हजार प्राम हैं। इन सात हजार प्रामोंमें तीस: प्राहाणों के पापाचारसे इस प्रामका, ध्वंस होगा। - इस ' . प्राम विशेष उल्लेखनीय हैं । पहला ग्राम हरिहरक्षेत्र है। यह प्रामगे। सात घार अग्निकाण्ड, याद कलिकदेयके मावि प्राम गण्डकी नदोके किनारे पर घसा हुआ है। यहांके - र्भाव तक गहन वनमें इसको परिणति होगी।. . अधिवासियों में ब्राह्मणों को संख्या ही हाधिक है। शूद्र । गन्धाहार एक प्रधान प्राम है। कलिमें यह यवनाः । आदि निम्न श्रेणाके गधिवासी बहुत कम हैं । यहां.हरि-: धिकारमें पतित ?हुआ 1. यहां बहुतेरे गन्धणि कोका हर देवका एक ऊंचा, मन्दिर है। इसका दृश्य बड़ा हो । आवास था। शतदल, - मलिका, - यूधिका और मनोरम है। हर साल मेला यहां ही लगता,है। इस | केतको पुष्पोंको यंत्र . द्वारा नियोडित कर एक तरहका मेलेम अरण्य और प्राम्य हर तरह के पशुओं को विको सौगन्धिक रसद्रव्य तय्यार करना इन पणिोंका व्यवसाय . पडत अधिक होती है। सन् १५०५. विक्रमीय संवत्में | था। इसीसे यह प्राम गंधादार नामसे सर्वत्र परिचित । . अमोर यां. ममेरनगरोके मधिरति मानसिंह यधन-! था। ग्राम सदा सुगंधसे परिपूर्ण, रहता था। माममें राजके आदेशसे यशोराधिपतिको विनाश करने के लिये प्रकाण्ड-प्रकाण्ड अश्वत्थ वृक्ष ( पोपलके पेड़-) थे। इस , ' '

चले थे। , यहां पहुंच आपने अपना खेमा गण्डकीके सुगंधसे भाकृष्ट. हे कितने ही ब्रह्मदैत्योंने इन वृक्षों पर . .

किनारे खड़ा किया था। उन्होंने अपने ययसे इस आ कर पास किया। कमशः पणिक वधुनों पर... -