पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष एकविंश भाग.djvu/६९६

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. विशोधिन-विश्रवा डीप् । १ नागदन्ती, दाधीपूड़ । २. ब्रह्मापुरीका, अनुष्ठित यष्ठविशेष। पापर्ण नामक, ब्राह्मणांक नाम । ३ नीली नामक पौधा । ४ ताम्बूल, पान। आख़िज कर्गम प्रतो न करके . अर्थात्, उन्हे : निराकरण विशोधिन् ( स० त्रि०) घि-शुध-णिच-णिनि । शोधन पूर्णक इस यसका अनुष्ठान किया : जाता है, इस कारण कारक, बिलकुल शुद्ध करनेवाला। इसका नाम विश्यापर्ण (श्यापर्ण घिरहित )यह पड़ा विशोधिनो (स. स्त्रो०) १ नागदन्ती लता। नीली है। पृक्ष। (वैद्यकनि० ) ३ दन्ती वृक्ष। विधाणन (सं०.लो०) दान, वितरण | ... विशोधिनाघोज, (स'० छो० ) जयपाल, जमालगोटा। विधम्घ (स'. लि . ) यि श्रन्भ का अनुभट, शान्त । विशोध्य ( स० त्रि०) वि शुध यत् । विशोधनीय, शोधन । २ विश्वस्त, जिसका विश्वास किया जाये । ३ भासम्म । करने लायक। (हेम ) ४ गाढ़ा, घना। (मेदिनी) ५ निवि शङ्क, निःश, विशोयिशोय ( स०,क्लो०) सामभेद। निर्भय, निर। विशोप ( स० पु० ) घि-शुर घम् । शुष्कता, नीरसता, | विन्धनवोदा ( स०सी० ) साहित्यमें नवादा नायिका. रूखापन। का एक भेद, वह नयोढ़ा नायिका जिसका अपने पति पर विशेषण ( स० त्रि०) यि-शुप-ल्युट । १ विशेषरूपसे कुछ कुछ अनुराग और कुछ कुछ विश्वास होने लगा शोषणकारक, अच्छी तरह सोखनेघाला । (को०) २ शुष्क हो। मुग्धा नायिकाको रति सज्जा और भय पराधीन भाष, नीरसता, मापन। है, किन्तु पोछे यह मुग्धा प्रश्रय पा कर मिधाधनयोढ़ा विशोषिण ( स० वि०) वि-शुष णिनि। विशोषणकारक, होती है। इसको चेटा और क्रिया :मनोहारिणा है। सोखनेयाला। (रघुवंश श६२) इसका कोप मृदु है तथा इसकी नयभूषण पर. प्रबल विशीजस (स० वि०) प्रजाफे ऊपर शासन फैलानेवाला। इच्छा रहती है। (शुक्लयजुः १०।२८ महीधर) विश्रम ( स० पु०)वि-श्रम घम् । वृद्धभाव, विधाम | विश्चकद्राकर्ण (स.पु. ) फुपकुरशास्ता, वह जो कुत्ते. ., ( कातन्त्र कृत्स० ३१) को शिक्षा देता और उसको रक्षा करता है। मिश्रग्म (सं० पु० ) वि-धनम :घम् । १ विश्वास, पत विशन ( स० पु० ) विछ-दीप्ती ( यजयाचपतविच्छेति । पा धार। (अमर) २ केलिकलह, प्रेमी गौर प्रेमिकाम ३३६० ) इति नह। १ दीप्ति । २ गति। रतिके समय होनेवाला झगड़ा। ३.प्रेम, मुन्वत । विश्पति ( स'• पु०) विशां पतिः। १ प्रजापालक, :४ हत्या, मार-धालगा। ५ स्वच्छन्दविदार, स्वच्छन्दता- पृथिवीपति । (ऋक् ११३८ )२ वैश्योका पति, वैश्य- पूर्णक घूमना फिरना। , जातिका अधिपति, मुखिया या पञ्च । , . , विश्रामण (स'• लो०) विश्वासजनक, एतबार करने (भागवत १०।२०।२४) लायक। विश्पटना ( स० स्त्री० ) पणिों का पालन करनेवालो। विश्रम्भणीय, (स० वि०) विश्वासनीय, पतवार करने , (ऋक १३२१७) लायक। विश पला ( स० स्त्री० ) अगस्त्यपुरोहित खेल राजाकी विधम्मता (सं० स्त्री०) विश्वासत्य,. प्रणयत्यादि। रनी। (भूकं १११६।१५) : विश्रम्भिन (सं० लि.) विश्वासशील । शिपलायसु ( स० नि० ) प्रजाओंके पालयिता, तथा विश्रयिन् (सं० लि. ) यिश्रंतु शील यस्य विनि-इनि धन । (ऋक १११८२१) (पा ३।२।१५७) १ सेवाशीला विशेष प्रकारसे सेवा विश्य ( स० नि० ) प्रजाभय, जो प्रजासे हो। परायण। २ आश्रययान्। ...... ....... (ऋक -२०१२६५)| विश्रवण (स० पु० ) ऋषिमेद। .... . विश्यापर्ण (स' पु०) विश्वन्तर नामक किसी एक राजासे | विश्रवा ( स० पु०), पुलस्त्यमुनिका. पुत्र, दूसरे जन्ममें