पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष एकविंश भाग.djvu/७०१

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६१५ विश्वकर्मन्- पुत्र थे। पे प्रासाद, भवन, उद्यान आदि विषयों में | तम कर्ता है, सहन्न शिल्पके आविष्कारक देयकुलके - गिला प्रजापति थे। (मत्स्यपु० ५ १०) मित्रो हैं, सभी प्रकारके कारकार्य के निर्माता है, शिल्पि- . विष्णुपुराणमें लिखा है कि पे आठ पसुओमसे कुलके श्रेष्ठतम - पुरुष हैं। इन्होंने ही देवतामों का प्रभास नामक पसुकं. मौरस वृहस्पतिकी, ग्राम वारिणी स्वगोंय रय प्रस्तुत कर दिया है। इन्हों को निपुणता यहमके गर्भ से उत्पन्न हुए थे। पे.शिल्पोंके कर्ता तथा| पर सभी लोग जाविका निर्वाद करते है, ये महत् - देवताओंके वक थे। इन्होंने ही देयतामों के विमा- भौर अमर देवताविशेष हैं। इनकी सभी जोध-पूजा ___नादिको बनाया था। मनुष्य रहाका शिप ले कर करते हैं। .. जीविका निर्वाह करते हैं। . . रामायणमें लिखा है कि राक्षसशे लिये इन्होंने .. वेदादिमें विश्वकर्मा इन्द्र ( ८1१२).स्र्य लङ्कापुरी बनाई यो । सेतुबन्ध तैयार करने के लिये रामके - मार्क ०पु० १०७।११); प्रजापति ( शक्ल यजुः १२२६१), साहाय्याय इन्होंने नल. वानरको सृष्टि की थी।

-विष्णु (भारत भीष्म ), शिय ( लिगपु० ) आदि शक्ति 'महाभारतके आदिपर्य तथा किस किसी पुराण

___मान देवताओं के नामरूपमें व्ययत: हुए हैं। पोछे । - देखा जाता है, कि अष्टवसुओ से एक वसु प्रभासके उनका निपटा त्वष्टाके नाममें भाया है। इस! : मौरससे और उनको पत्ता लावण्यमयी सती योगसिद्धाके पर्याय में विश्वकर्मा विश्वग्रह्माण्ड के अद्वितीय शिल्पो माने गर्मसे विश्वकर्माका जन्म हुभा। विश्वकर्माने अपनी गये हैं । अग्येदक १०१८१-८२ सूकमें लिखा है, कि "पे कन्या संछाका विवाह : सूर्णक साथ कर दिया, संज्ञा सदशा भगवान हैं, इनके नेस, यवन, वाहु और पद सूर्यका मसर ताप सहन सकतो थी, इस कारण विश्व- चारों ओर फैले हुए हैं। वाहु और दोनों पैरको सहा- कर्माने सूर्यको शानन्त्रक पर चढ़ा कर उनको उज्यलता. यतासे ये स्वर्ग और मत्ता का निर्माण करते हैं। ये पिता, का अष्टमांश काट डाला। कटा दुभा मशजो कृषियी . सर्गप्रस्, सर्गनियन्ता ,पे विश्वष्ठ है, प्रत्येक देवता पर गिरा था, उससे इन्होंने विष्णुका सुदर्शनचक्र, पथायोग्य नाम रखते हैं नपा नश्वर प्राणीम. ध्यानातीत शिवका शिशुल, कुवेरका अन, कार्शिकेयका यल्लम तथा पुरुष है। उन.श्लोकों में यह मा लिया है, कि ये भारम- 1. अन्याय्य देवताओं के अनादि निर्माण किये थे। कहते दान करते हैं अपया आप हो सब भूनाका बलिदान लेते हैं, कि प्रसिद्ध जगन्नाथ मूर्शि विश्वकर्माको ही बनाई हैं। इस पलिके मम्मन्ध निरकमें इस प्रकार लिखा हुई है। है,-"भुवनके पुत्र विश्वकर्माने सर्गमेघ द्वारा जगत्को .. सृष्टिकारक रूपमें विश्वकर्मा कभी कमो प्रजापति सृष्टि प्रारम की तथा मारम-दलिदान कर निर्माणकार्य | नाममे पुकारे जाने है। ये .कार, तक्षक, देव वकि, 'शेप किया। ऋग्वेद १०८१-८२ सूकमें विस्तृत विवरण देखो। - सुधरयन भादि नामों से भी प्रसिद्ध है। पुराणकारीका कहना है, कि पे घेदिक त्वष्टाका कार्य विश्वकर्मा शिल्पसमूहके कर्ता होनेके कारण देय. करते हैं तथा उस कार्य में इन्हें विशेष क्षमता है। इस शिल्पी कहलाते हैं। हिन्दु शिल्पी शिल्पककी उन्नति. कारण पे त्यष्टा नामसे मो प्रसिद्ध है। फेवल श्रेष्ठ । के लिये प्रति वर्ग भाद्र मासको संक्रान्ति तिपिको विश्य- शिल्पी कहनेसे हो इनका.परिचय शेष नहीं होता, पर कर्माको पूजा करते हैं। उस दिन घे, लोग किसी मा पे देवताओं के शिलाकार हैं तथा उनके अनादि तैयार शिल्प पन्तादिको काममै : नहीं लाते। पेसा यावादि - कर देते हैं। , माने यात्र नामक भीषण युद्धास्त्र इन्ही अच्छी तरह परिष्कार कर पूजाके स्थान में रखे जाते हैं। का बनाया हुमा शिल्पयिशव है। इन्होंने ही जगत्-.निम्नश्रणों के हिन्दू कृषक भी हल, कुदाल मादिको पूजा मे स्थापत्य घेद या शिल्पविज्ञान प्राय अमिध्यक्त किया करते हैं । विश्वकर्माको पूजा इस प्रकार है,-माताकालमें महाभारतमें लिखा है, कि, “पे शिल्पसमूहके धेष्ठ.' नित्य क्रियादि समाप्त करके ..शुद्धासन पर बैठ