पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष एकविंश भाग.djvu/७०५

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• विश्वका-विश्वगुर्ति कि, विश्वकर्माने यहां लिङ्ग स्थापित किया था ।। किपे रहते हैं और जो विष्णुका निर्माल्या धारण करने (स्कन्दपुराया ) | वाले माने जाते हैं। ये दीर्घश्मधू, जटाधारी और विश्वका (सं० खो०) गङ्गानिली, गांगचोल । रकपिटल वर्ण हैं तथा श्वेतप के ऊपर बैठे हैं । विश्वकाय ( स० पु०) विश्य हो जिसका काय अर्थात् । ___(फान्निकापु० ८२ म०) शरोर , विष्णु। । कहीं कहीं विश्वक्शेन इस तालम्पशकारको जगह "स विश्वकायः पुरुहूत सत्या स्वयं ज्योविरजः पुराया।" दन्त्यसकार देखने में माता है। (मागवन ८११११३) विश्वकशेना (स. स्त्रो०) प्रिय'गुश, कंगनी। यह विश्वकाया (मो०) दाक्षायणी, दुर्गा। शम्न भा तालशशकारका .गह दम्त्यसकार लिखा है। विश्कारक (सं० पु०) विश्वस्य कारक विभ्यका कर्ता, विश्वा (स० पु.) विश्व गन्छतोति गम ३ । १ ब्रह्मा । शिवा (शिवपु०) २ पूर्णिमाका पुत्र, मराविका लड़का ।। विश्वकार (सपु०) विश्वकर्मा । । (भागवत ४।१।१३ १४) विशकार्य ( स० पु० ) पूर्णको सात प्रधान ज्योति- विश्वगङ्गा-मध्यभारत. येरार राज्यमें प्रवाहित. एक का भेद। छोटो नदी । यह अक्षा० २०२४' उ० तथा देशा० ७६१६ विश्वफुट-हिमालयको एक घोटीका नाम। पू०के मध्य विस्तृत है। पुलदागा जिलेके घुलदाना (हिम०ख०८१०२) । नगरके समाप निकल कर नलगङ्गाके समान्तरालमे विश्वरत् (स० पु०) विश्व करातीति छ कि तुकच। वहतो हुई पूर्णानदी में मिलता है। इस पहाड़ो नदों में १ विश्वकर्मा। २ ग्रमा । (मागत १४८. समो समय जल नदों रहता, किन्तु वोके समय इस विश्वरि ( स० वि०)ो सब लोगों को अपने सगे नहोसे जयपुर, पदनेरा और चांदपुर नगर तक गमना. सम्बन्धीके समान समझता हो। गमन होता है। विश्वकंतु (स.पु.) विश्वमेम- केतुः विश्यमापी या विश्वगत (स० वि०) विश्व' गतः। विश्वगामी, विश्व- केतर्गस्य । १ अनिरुम। (अमर) २पर्यंतमेद। . व्याप्त। (हिम०१० ८।१०६) विश्वगन्ध (स'. लो० ) विश्व सर्वस्थाने गन्धेो यस्य । विश्वकोश ( स०-०) विश्वं ब्रह्माण्ड: यावत्पदार्गः, १ पोल नामक गंधद्रव्य। (पु.)२ पलाण्ड, प्याज । फोपे माधारे यस्य । १ विश्वमएडार, पह कोश,या भएडार विश्वगन्धा (सं० स्त्रा०.) विश्वेषु समस्तपदायपु मध्ये जिसमें संसार भरके सब पदार्थ आदि संग्रहीत हो। गन्धा गन्धविशिष्ट, क्षितावेव गन्ध इति न्यायादस्यास्त. विश्वप्रकाश नामक ममिधान, यह मंच जिसमे संसार थारख। पृथिवी। भरके सब प्रकारके विपपों मादिका विस्तृत विवेचन या विश्वधि ( स० पु. ) पुरअयपुत्र, पृथुका लड़का । पर्णन हो। .. .. यश्वगर्भ (स.पु. ) विश्व गौं यस्य । १ विष्णु । विश्वकोप-विश्वकोश देखो। २ शिव । ३ रैयतका पुत्रभेद । (हरिबंध ) विश्वक्षय (सं० पु०) विश्वविनाश, प्रलयकालमें ब्रह्माण्डका विश्वगुरू (स.पु.) विश्वस्य गुरुः। हरि विष्णु । ध्वंस। . (राजतर० २१) . (भागस्त ११५२६) विश्वक्षिति. (स'. लि.) विश्वकृष्टि, जो सब लोगोंका विश्वगूर्त (स. त्रि०) १ सभी कार्यों में समर्थ । अपने सगे सम्बन्धोके समान समझता हो। ..., २ उद्यतसर्यायुध, जिसके सभी मायुध उद्यन । विश्वाशेन (सं० पु. १ विष्ण। २ तेरहवें मनु । (ऋक श६१६.) (मत्स्यपु०.६ . ० ) ३ कालिकापुराणके अनुसार एक विश्वगू ( स०नि०) सवोंका स्तुत्य सभी लोगों के ' चतुर्भुज देवता जो शंख, चक्र, गदा और पन. धारण स्तयपाय। (एक १२१८०१२) : : Vol. xxz 153