विश्यदेवनेव-विश्वनाथ
विश्वदेवनेत्र (सलि०) विश्वदेवा जिनके नेता हैं। सारा संसार जो धारण करते हैं । (रु १७३३.
( शुक्लयजुः ६।३५ वेददीय) विश्वधार ( स० 'पु०) प्रेयमन, मेधातिधिके पुत्रभेद,
विश्वदेवधत् ( स० वि० ) विश्वदेवयज्ञ ।
शाकद्वोपके राजा मेधातिथिके पुनभेद। . .
( मथळ १६।१८।२०)
___(मागयत ०२०।२५) :
विश्वदेवस्तुत् (सं० पु० ) एकाहभेद ।
विश्वधारा-हिमघत्पादसे निकली हुई एक नदी :
(भाभ्व० औ० हा८10) .. . .. (हिम० ख० ४६.७६)
विश्वदेप्य (०नि०) १ ममी देवताओंको उपयुक्त क्रिया के विश्वधारिणी ( स० स्लो०) विश्वं सर्वधरतीति .
साधु । (ऋक् ॥१४८।१ ) यह अग्निका विशेषण है। णिनि-ङोप। पृथिया। . . , . ...
२ सभी देवताओंका समूह।
विश्वधावीर्ण (सं० त्रि०) १सर्वशक्तिशालो। २जग-
(शुक्लयजुः १९३१६ ) / धारणापयोगी योर्मशाली । (मययं ५।२२।३)
विश्वदेण्यावत् (सं० वि० ) समस्त देवतायुक्त, समस्त विश्वधृक ( स० नि०) जगद्धारणकारी, विष्णु ।
देवविशिष्ट, सभी देवताओं के साथ।
विश्यधृत (io नि० ):विश्य धरति,धृ.किए तुक्च । विश्व
विश्वदेव (२० अवा०) विश्वदेवाके सदृश ।
धर्ता, विश्वधारणकारी। . .
विश्वदेव (सं० लो० ) नक्षत्रभेद, उत्सरापाढा नक्षत्र । विश्वधेन (स' लि०) विश्वप्रीणनकारी, विश्वको सांतोष
विश्वदेव इसके अधिष्ठात्री देवता हैं इसीसे इस नक्षत्रका | फरनेवाला। (शूक १९२)
नाम विश्वदेव पड़ा है। (यहत्स०७।२)
| विश्यधेनु.(० पु०)एक प्राचीन ऋषिका नाम, ।
विश्यदैवत (Eio लो०) विश्वदेवता अधिष्ठात्री देवताऽस्य । विश्वनन्दतेल-तैलोपविशेष । (चिकित्सासार)
उत्तरापाढ़ानक्षत्र । ( वृहतसहिता ७१।११)
विश्वनर ( स० त्रि.) विश्य सबै नरा यस्य । समस्त ।
विश्ादोहस (लि०) समस्त विश्यका दोहनकारी। मनुष्य हो जिनका है। सभाका योध होनेसे 'विश्वा.
(ऋक् ६४८।१३.), नर' ऐसा पद होगा। 'नरे संज्ञायां' (पा ६।३।१२६)
विश्वदच (सं० लि०) विश्व समन्तात् अञ्चति: गच्छति इम सूत्रानुसार दोर्ज होता है। .
इत किए। सर्पल गमन कर्ता, जो तमाम जाने में समर्श | विश्वनाथ (सपु०) विश्वस्थ नाथः। १ शिव, महादेव ।
हो।
| २ काशीस्थित शिलिङ्ग। ३ साहित्यदर्पणफ प्रणेता
विश्वध (सं० अश्य०) सर्वता, सर्वन, चारों ओर।। एक पण्डिन। इनके पिताका नाम श्रीचन्द्रशेखर महा.'
(क १६३४८) कविचन्द्र था। ४ भ'पापरिच्छेद और उसको टोका
विश्वधर ( स०-पु०) विभ्यधारणकारी, विष्णु। . सिद्धान्तमुकावलीके प्रणेता एक पण्डित । ये विद्या
विश्वधरण (स' लो० ) समस्त जगत्को धारण। | निवास भट्टाचार्या के पुत्र थे। पञ्चानन इनको उपाधि
... ..( राजतर० १३१३६) थी। विश्वनाथ कविराज पौर विश्वनाथ पञ्चानन शब्द देखो! .
विश्वधा (60 लि.) विश्वधारणकारी, विष्णु ! विश्वनाप-१ शास्त्रदीपिकाके प्रणेता प्रभाकरके गुरु।।
. . . (शुक्लयजु० ११२) २ उपदेशसारफे रचयिता। ३ कोमलाटीकाके प्रणेना। :
-विश्वधातृ (म०नि०) विश्वस्य धाता। विश्वधारण ४ जातिविवेकके प्रणेता। :५ दुढिप्रतापके रचयिता ।
कारी, विष्णु। . .
इन्होंने अपने प्रतिपालक दुण्ढिमहाराज के आदेशसे उक्त
विश्वधाम.(स० क्लो०) १ विश्वका आश्रमस्थान, ईश्वर । प्रन्धको रचना की थी। ६ तत्त्वचिन्तामणि-शब्दखएड
२ सभी लोगों के रहनेका स्थान। ३.स्वदेश। 1. टोकाके रचयिता। ७ तर्कसप्रदटोकाके प्रणेता।
..,,..... । . (श्वेताश्वतर उप० ६६) ८ दुर्योधभञ्जिका नाम्नी मेघदूतटोका और राघवपाण्ड-
विश्रयायस (०.नि.) समस्त जगत्का धारणकर्ता, | वायटोकाके कर्ता। प्रेमरसायनके प्रणेता । १० मुक्ति
पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष एकविंश भाग.djvu/७०८
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