पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष एकविंश भाग.djvu/७१३

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'विश्वरुचि-विश्वयत् ६२५ विश्यरुषि ( स० पु०) १ देवयोनिभेद । (भारत द्रोणपर्व) परिशेषखएड में इनका परिचय है। वहुने अनुमान करते २ दानवभेद। (फयासरित) हैं, कि इन्होंने ही याज्ञवल्क्यस्मृतिकी रोका लिन्त्री थी । विश्यरुची ( स. स्त्रो०)। अग्निकी मात जिहामिसे। विशग्नेश्वरने उस टोसाका घचन उद्धत किया है। एक जिहाका नाम। (मुपटकोपनि० १२४) (पु.) विश्वरूप आचार्य-शङ्कराचार्य के पक शिष्य । इनका पूर्व २ महाभारत के अनुसार एक प्रकारको देवयोनि । ३१क , नाम था सर्वेश्वर। दामयका माम। विश्वरूपक (सं० लो०) १ कृष्णागुरु, 'काला अगर । विश्वरूप (सलो०) १ बहुविधरूप, नाना रूप। (शुपन- २राजादनश, खिरनीका पेड़। यजुः १६.२५) राजा कार्यासिसि के लिये नागा प्रकारके । विश्वरूप फेशय-मागमतस्यसारसग्रह नामक तसिप्रायके रूप स्वीकार करते हैं। विश्यमेयरूपं यस्य । २ विष्णु। रचयिता। तुङ्गमदा नवीके किनारे इनका वास था। (हेम) ३ महादेव 1 ( भारत ५२००।१२४ ). ४ स्पष्टपुत्र। कोई कोई इन्हें केशयविश्वरूप नामसे पुकारते हैं। (विष्णु १।१५।१२२) ५ भगवान् श्रीकृष्णका पह स्वरूप विश्वरूप गणक-गणेशरुतवायु कयन्त्रकी टीका, निस- जो उन्होंने गोताका उपदेश करने समय गर्जुनको पार्थदूती नाम्नी लीलावतीटीका, सिद्धान्तशिरोमणि . दिखलाया था। श्रीमद्भगवद्गीताके ग्यारहये' अध्यायमें. मरीचि, सिद्धान्तसागंभीम आदि प्रन्धोंके प्रणेता। ये . यह इस प्रकार यणित है- | रङ्गानाथके पुत्र और वल्लाल देवाके पौत्र थे। मुनीश्वर ___ "मनेकवादरपक नेत्र पश्यामि त्वा सयेतोऽनन्तरूपं । । उपाधिमे ये सर्वत्र परिचित थे। नान्तं न मध्य न पुनस्तवादि' पश्यामि विश्वेश्वर विश्यरूपं ॥ । विश्वरूपती-इठनत्यकौमुदीके प्रणेता, सुन्दरदेव गुरु । किरीटिनं गदिन चक्रिनच तेजोराशि सर्वतोदीप्तिमन्त्री विश्वरूपतीर्थ (म लो० : तीर्थमेद । . . पश्यामि त्या दुनिरीक्षा समन्तात् दीप्तानलाकशु तिमप्रमेयम् ॥" विश्वरूपदेय-विधेकमार्तण्ड नामक ज्योतिप्रन्धके प्रणेता, (गीता ११.भ.) । शतगुणाचार्य पुत्र। अर्जुनगे भगवान्का यह भदएपूर्ण देन कर भय- विश्वरूपभारतीम्यामी एक प्रसिद्ध योगी । प्याकुल चित्तसे कहा था, 'भगवन् ! मैं गापा यिश्य- | विश्वरूपवत् ( स०नि०) विश्वरूप अस्त्यर्थे गतुप.मस्य रूप देख कर मर गया है। ममी बाप अपना पूर्ण देवरूप । विश्वरुपयुक्त, विश्वरूपविशिए, विष्णु। : दिखाइये भीर प्रसन्न होइपे। - (रामायण ७२३१) "भदृष्टपूर्व दृषितोऽस्मि दृष्टया मयेन च प्रव्यत्थितं मनो मे। विश्वकोप (स० त्रि०) विश्वरूप मस्त्यर्थे इनि । विश्वरूप- सदेव मे दर्शय देवरूपम् । प्रसीद देवेश जगनिवास ॥" विशिष्ट, भगवान् विष्णु । । (गीता १९४५) विश्वरेतस् (सं० पु०) विगे रेतः शक्तिर्यस्य । १ ब्रह्मा । भगवान् श्रीकृष्णने गर्जुनको दिखलाया था, कि | (हेम) २ विष्णु। विश्वरोचक (सं० पु०) विश्वयान् रोचयतीति रुच ल्यु । इस घिश्यक चन्द्र, सूर्य, प्रह, नक्षत्र आदि ज्योतिष्क- ..गण तथा प्रमादि देवगण जो कुछ देखने में जाते हैं, ये १ नाडीच शाक, नारीच मामका साग । २ कचूर या । पेचुक नामक साग। सभी मेरे स्वरूप है। . | विश्वलोचन ( स० ली० ) विश्वस्य लोचनं। १ विश्व ६ असुरमेह । ( मारत सभापर्व ) ७ सर्वात्मक । चच, विश्वप्रकाश। (पु०) २ सूर्य और चन्द्रमा। (भृक् १०१००४) | विश्वलोप (स.पु०) पिभेद। (तैत्तिरीयम० ३३।८।२) विश्यरूप-१ एक मिद्धपुरुष। ये जगन्नाथ मिश्र पुत्र विश्ववनि (स. त्रि०) सर्यामीटपूरक (साम ) । तेति. और महाप्रभु श्रोचैतन्यके अप्रज थे। चेतन्यचन्द्र शब्द देखो। रीयस० २१४५२) २ एक आमिधानिक। महेश्वर और मेदिनोकरने इनका , विश्वात् (सं. नि०) १ विष्णुतुल्य ।' २ विष्णु है . उल्लेख किया है। ३ एक व्यवस्थातत्त्वज्ञ। हेमाद्रित जिसम । Vol xxi, 167