पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष एकविंश भाग.djvu/७२

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। वाणिज्यदूत-वातकफडर वर्षमै वाणिज्य संसारमें हलचल मच गई । इस अान्दोलनसे पाणीफूट लक्ष्मीधर-पक प्राचीन कवि । भारतके शिल्पोत्थानका बड़ा सहारा मिला । तबसे दिनों | चाणोचि ( सं० स्त्री० ) वापू पा स्तुति, वाक्यरूपास्तुति । "दिग करघे और चरखेका प्रचार पढ़ रहा है। इस समय . . . . . . . (मृ ५७५४ ) देशके लोग प्रहरसे प्रेम करते देखे जाते हैं। फलतः वाणीनाथजामविजयकाव्यफे प्रणेता। .. . . . . . हरका प्रचार तथा देशी चीजोंका वाणिज्य बढने लगा वाणीयत् (सं० वि०) वाक्य सदृश ।।...- है। कितने ही हिन्दुस्तानी पुजीपति असंख्य धन लगा घाणीवाद (२० पु०) तर्फे । ....:.. ;. कर कलकारखाने खोले हुए है। इस समय देशी कलवाणीविलास-१ पद्यायलोधृत. एक कवि।..२ पराशर टीकाके रचयिता। "कारखानेमि ताता कम्पनीका कारखाना अधिक माल .. . ....... ... तैयार कर रहा है। इममें लोहे के समान तैयार होने हैं। याणेय ( सं०. पु. ) चाणराजसम्बन्धीय , अस्त्र या द्रष्यः विशेष । इस तरह भारतीय शिला वाणिज्यकी उन्नति धीरे धीरे अप्रमुखी हो रही है। अभी तक विदेशी राज्य कायम "याणेश्वर (सं०. पु.) शिवलिङ्गभेद । याणे वर देखा। ..... रहनेमे किस तरह भारत शिल्पोन्नति फर साता है।

वात ( सं० पु० ) यानोति घा-तं। .१ पञ्चभूत के अन्तर्गत ..."

': चतुर्थभूत, वायु, हवा । पर्याय-गन्धयह घायु, पयमान, फिर इम्पने अभी तक जो कुछ उन्नति की है, यह एक . | महायल, पवन, स्पर्शन. गन्धयाह, मंगत् , आशुग, श्वसन, परतन्त्र राष्ट्र के लिये कम नहीं और यह श्राशा होती। मातरिश्या, नभस्यत् , मारुत, अनिल, समीरण, जगत्प्राण, है, कि समयको परिवर्तन हुआ है। इस नये युगमें नये । . समोर, सदागति, जीयन, पृपदश्व, तरस्त्री, प्रभञ्जन, प्रधा. उत्साहसे लोग देशोको वनी चीजों पर ममता प्रकट करने यन, अनवस्थान, धूनन, मोटन, खग। गुण-जड़ताकर, तथा उसे अपनाने लगे है , किन्तु तब तक देशी चोजेका लघु, शीतका, रूक्ष, सूक्ष्म, संज्ञानक, स्तोककर! माशु. प्रसार और उसको उन्नति आगे नहीं बढ़ सकती जय. यन्निभक्षण, साभकाल, अपराह काल, प्रत्यूषकाल और तक विलायतकी तरह भारतमें भी विलायती वस्त्रों की अनजीर्ण काल ये सब समय कापत हुमा करते हैं। मामदनीको रोकनेकी चेष्टा भारत सरकारको गोरसे ! - वायु शब्द देखा। " महो। २ वैद्यकके भनुसार शरीरके अन्दरकी वह घायु पाणिज्यदूत (सं० पु० ) घ६ मनुष्य जो किसी स्वाधीन जिसके कुपित होनेसे अनेक प्रकार रोग होते हैं । शरीर- ' राज्य या देशके प्रतिनिधि रूपसे दूसरे देशमें रहता और में इसका स्थान पकाशय माना गया है। कहते हैं, कि. अपने देशके व्यापारिक स्वार्थोकी रक्षा करता हो, कानमल। शरीरको सब धातुगी गौर मल आदिका परिचालन . घाणिज्या (सं० स्त्री०) वाणिज्य टाप अभिधानात् स्त्रीत्वं इसीसे होता है भार ध्वास, प्रश्वास, चेष्टा धेग भादि वाणिज्य, तिजारत। । । इन्द्रियोंके कार्यो का भी यही मूल है। पातव्याधि देखो। पाणिनी (सं० स्त्रो०) यण-शब्द णिनि, डीप् । १ नर्तको । वातक (सं० पु० ) वात एव च इयायें कन्', यहा २ छेक..सूराख । ३ मत्त स्त्री। ४ एक प्रकारका छन्द । यात रोतीति अन्येभ्योऽपोति । अर्शनपणीं। ...इसके प्रत्येक चरणमें १६ अक्षर होते हैं जिनमेस १, २, ३३ / यातकण्टक (सं० पु.) एक प्रकारका पांतरोग । इसमें .. 28६.८६, १०, १२, १४, १५ या लघु और धाकी गुरुपांपकी गांठों में घायुफे घुसने के कारण जोड़ों में बड़ी पीड़ा होते हैं। इसको लक्षण':"नजम जरयदा मति वाणिनी होती है । यह रोग चे नोचे पैर पड़ने या अधिक परि ..' गंयुक्तः।" (छन्दोमजरों) श्रम करनेसे होता है। इसमें बार बार रकमोक्षणं करना पाणी (सं०.स्रो) योणि" या लो। । १ सरस्वती ।२ | आवश्यक है। रेडीका तेल पोने और सुह द्वारा ग्ध चयन से निकले हुए सार्थक शब्द । ३ पाशक्ति। करनेसे भो यह रोग प्रशमित होता है। स्वा५ यागोन्द्रिय, जोम, रसना ।। वातकफदर (सं० पु०) घद्द ज्वरो यातश्लेष्म के प्रकोपसे । वाणीकाय - राणोकारिका रचयिता।