पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष एकविंश भाग.djvu/७४२

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स्त्री और अदृष्ट घ्याधि ये सब ही विष अर्थात् विव, व्यवसायीमात्रको यह जाननेकी बड़ी जरूरत है, कि तुल्य हैं। . . . विषकियाफे फ्या लक्षण है ? और उन दुर्लक्षणोंकी "दुरधीता विज विद्या मजीया भोजन विधे।। शान्तिकी या व्यवस्था है? विशं गोठी दरिद्रस्य वृद्धस्य तरुणो विषम् ॥ विषकी क्रिया। विच चस्क्रमण रात्री विष राशोऽनुकूलता । पाश्चात्य चिकित्सा विज्ञानको पढ़नेसे मालूम होता विष नियोऽप्यन्यहृद्रो विष व्याधिरषीक्षितः ॥" . है, कि विपकी कई क्रियाये हैं। पे क्रियाये स्थानीय (चाणक्य.) गौर दूरव्यापिनी हैं। विषकी स्थानीय फियामें किसी पाश्चात्य मतसे 'विषके लक्षण। ' स्थानका चमे विदीर्ण होता है, कहीं प्रदाह ही होता है विप किसको कहते हैं, इस प्रश्नकी मीमांसाफे अथवा ज्ञानजनक या गतिजनक (Sensory or motor) . सम्यन्ध बैज्ञानिक पण्डितको बहुतेरी आलोचनाये | स्यायुकं ऊपर किया प्रकाश पाती है। दूरध्यापिनी क्रिया दिखाई देती हैं। किसीका कहना है, कि जो देहसंस्पृष्ट | दूसरी तरहकी है। स्पृष्ट स्थानमे उसको किया प्रकाशित . होने पर अपया किसी तरह 'देहमें प्रवृष्ट होने पर हो सकतो या नहीं भी हो सकती है। किन्तु दूरयत्ती . स्वास्थ्यको हानि या जीधन नट हो सके, उसीकी विष यन्त्रक ऊपर उसको सविशेष क्रिया प्रकाश पाती है। सहा होती है। साधारण लोगोंका कहना है, कि | इस अवस्थामे रोगके लक्षणकी तरह विपक्रिया के लक्षण मति अल्प मात्राम जे। पदार्थ शरीरमें प्रवेश कर जीवन- दिखाई देते हैं। जब दूरध्यापिनी क्रिया प्रकाशित , का नाश करता है, यही विष है। फलतः विपकी ऐसी होती है, तय समझना चाहिये, कि विषपदार्थ शरीरमें संशा रखना अचत नहीं, क्योंकि ऐसा होनेसे | शोपित हुआ है। सुतरां दूरवर्तिनी क्रिया प्रकाशकी यह अतिव्याप्ति या अव्याप्तिदोषदुष्ट होता है । 'अति. प्रधानतम साधन-देहमें विपशोषण है। गल्प मात्रामें कांचका चूर्ण पेटमें पहुंचने पर प्राणनाश ..विपक्रियाका न्यूनाधिक । कर सकता है। किन्तु 'इल से उसे विषकी संज्ञा नहीं दी जा सकती। जो अन्न हमारे देख सब अवस्थाओं में विपकी क्रिया एक तरहकी नहीं अत्यन्त प्रपोजनीय है, 'दैहिक अवस्थाविशेषम या परि- दिखाई देतो। विपका माताधिक्य, देहमें उसका क्रमो. माणाधिषयमें वह भो विपकी तरह कार्य कर सकता है। पचय और दैहिक पदार्थ के साथ संमिश्रण और विपार्श और तो फ्या-जिस घायुके बिना हम लोग एक क्षण व्यक्तिको शारीरिक अवस्थाके अनुसार विपकी क्रिया : . भो नहीं जी सकते, समय विशेषों और देहको किसी का तारतम्य होता रहता है। अवस्थामें वही वायु दहको हानि पहुंचाती है। सुतरां ... विषका अंगीयिभाग। . विषकी यथायथ सभा निर्धारण करना सहज काम | ' आयुर्धेदमें विषका जिस तरह श्रेणीविभाग किया नहीं है। गया है, 'उस तरह पाश्चात्य विज्ञान में नहीं हुआ है। किन्तु हमारी भाषामे व्यवहारिक प्रयोजन के लिये | पाश्चात्य विज्ञानविद पण्डितोंका कहना है, कि विषका अनेक पदार्थ विपसंहासे अभिहित होते भा रहे हैं। उन श्रेणीविभाग करना सहज घटना नहो। पाश्चात्य सब पदार्थो के सम्बन्धों हम यहां पर आलोचना करेंगे। विज्ञानमें निखिल विषोंको चार श्रेणियोंमें विभक्त किया । पाश्चात्य प्रदेशमि भो विपके सम्बन्धमें वैज्ञानिक आलो. चना दिखाईदे तो है। ' पाश्चात्य चिकित्सा विज्ञानमे | (१) करोसिवस या देहतन्तुका मपचायक।। 'विपविज्ञान "टक सोलजो" (Toxologs) नामरो ममि. (२) इरिटेण्टस या उग्रताकारक। दिन होता है। मेडिकल जुरिस्म डेम्स नामक चिकित्सा (३) न्यूरेकस या स्नायवीय विकृतिवर्द्धक । विज्ञानमें विविज्ञान एक प्रधान अङ्ग है। चिकित्सा (४) गैसियस या वायबोय विष ।