पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष एकविंश भाग.djvu/७४४

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विष उचित है। इन सब प्रक्रियाओं द्वारा पसिसकी क्रिया । संस्कृत भाषामे यह विप शवविधके नामसे परिचित है। विनष्ट होती है। हिन्दी में इसे "संखिया" कहते हैं। (३) अक्जालिक ऐसिड-यह भयङ्कर विष है। ___ . सखिया चिप, रसाअन, सीसा, तांबा, दस्ता और इससे १५ या ३० मिनटमें ही आदमी मर जा सकता है। कोमयम आदि भी धातव विषके अन्तर्भुत है। उप्रता- अकजालिक एसिड खनिज नहीं, उद्भिज है। साधारणत: जनक उद्भिज विषों में इलेटेरियम, गाम्योज, मुसम्बर, :, हपिण्ड पर इसकी विपक्रिया प्रकाशित होती है । इस | कलोसिन्य गौर जयपाल के नाम विशेष भाषसे उल्लेख विष सेवन करते ही रोगी . अत्यन्त दुर्गल हो जाता है | नीय है। जङ्गम या अब उप्रविष पदार्थों में कान्पारिज और सहसा मूर्छित हो कर प्राणत्याग, करता है ।। ही प्रधानतम है। इसके द्वारा विपार्श होने पर सब तरहको यमनकारक | ___ उद्भिद और जान्तय उप्रताजनक चिप खाद्य द्रव्पसे । औषध सेवन करना कर्तव्य है। इसके बाद फूलखड़ी. भी उत्पन्न हो सकता है। फिर वेकटेरिया ( जीवाणुः का व्यवहार करनेसे अकजालिक एसिडको विपक्रिया नष्ट विशेष ) द्वारा भी देहमे विष सञ्चारित होता है। करी.' होती है। सिव या दैहिक उपादान-विध्यसि विषकी अपेक्षा उपता. (४) क्षारद्रव्य-पोटास, सोडा और इनके कार्गनेट | जनक विष बहुत धीरे धीरे क्रिया प्रकाशित करता है। और सलफाइड सेवनसे भी निज एसिडकी तरह इस जातिका विप गलेके नीचे उतरने पर मुखमें और विपक्रिया प्रकाशित होती है। अधिकन्तु, इन सब द्वारा उदर में जलन पैदा करता है। पेट हाय छुने पर देवमे विपलक्षण दिखाई देने पर उसके साथ अतिसार | भी रोगीको विशेष क्के शवोध होता है। चमन, वियः । भी उसका एक आनुसाङ्गिक लक्षण रूपसे दिखाई देने मिपा और पासा उपस्थित होती है। के-के बाद ही लगता है। अम्ल द्रव्य सेवनसे इस अवस्थाका प्रतिकार | दस्त आने लगते हैं। इससे भी विष न निकल सकने करना चाहिये। पर प्रादाहिक ज्वर दिखाई देता है। इस ज्वरमें अचैत- (५) कार्यानिक एसिड - यह भी एक भयङ्कर विष न्यायस्थाम रोगीको मृत्यु हो जाती है। इस श्रेणीके है। यह विप देहमें जो स्थान-स्पर्श करता है, वह स्थान विपकी कियाफे साथ कई रोगांका यथेष्ट साद्दशा है । देखते देखते श्वेत वर्ण धारण करता है, देहसन्तु संकुचित | जैसे गमाशयका प्रदाइ (Gastritis ), आमायिक क्षत, हो जाते है। स्नायुफेन्द्र में विपकी क्रिया शीघ्र ही प्रका- शूल ( Colic), उदर गौर अतड़ियों में प्रदाह और हैजा शित होती है। इसलिये रोगो सहसा अचेतन हो होता है, जाता है। इसका विशेष लक्षण यह है, कि इस विपके | १-हम सबसे पहले संघिया विपकी बात कहते सेवनफे बाद पेशाय हरे रंगका हो जाता है। इसका हैं। जिन सब विषोंसे मनुष्योंकि भामाशय और मंत. प्रतिकार--नके जलमें चीनी मिला शरयत घना कर ड़ियों में उग्रता उत्पन्न होती है, उनमें सखिया ही प्रधान रोगीको खूप पिलाना चाहिये। सालफेट आप सोसा है। सखिया विप नाना तरहसे तय्यार किया जाता जलमें घोल कर सेवन करनेसे भी विशेष फल होता है। है। जिस नामसे चाहे जिस प्रणालीसे वह तय्यार . . उग्रताजनक विष । क्यों न हो, उसकी अल्प मात्रा भी मनुष्यों के लिये निदा. उप्रताजनक विष उत्पत्ति स्थानभेदसे तीन तरहके रुण हो उठती है। इसको एक प्रेनकी माता मनुष्यो- होते हैं। धातव, जङ्गम शोर उद्भिज । इस श्रेणीके की मृत्यु हो सकती है। देह बहुत दुर्यल हो जाती है। यिप सेवन या गात्रमें स्पर्श करानेसे स्पृएस्थानमें जलन मूर्छाको तरह मालूम होने लगती है । इसके बाद जलन पैदा होती है अर्थात् स्पृष्टस्थल रकरसादि द्वारा स्फोत पैदा होती है। वमन भारम्भ होता है, जो कुछ मुखसे (मोटा) और वेदनायुक्त हो जाता है। " . ।जाता है, यह भी चमनके साथ बाहर निकल विपमें सबसे पहले मार्स निकका : पेटमें ठहरने नहीं पाता। इस वमनस भो