पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष एकविंश भाग.djvu/७४९

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विप ६५६ खूब अधिक मात्रा व्यवहत किया करते हैं । वालकोंक | उद्भिदोंसे तोक नियन विषको उत्पत्ति होती है । कुचिला- • लिये अफीम भयानक विप है। यहुत कम मातासे भो । मे यथेष्ट परिमाणसे ष्ट्रोकनिया है। धनुष्टड्डारमें जो 'वे अचेत हो जाते हैं । छोटे छोटे वयोंके लिपे यह विलफुल लक्षण दिखाई देते हैं , प्रोकनिया विपके भी यही "मथ्यवहार्य है। अफीमके विपसे पहले मस्तिष्कमें सब लक्षण हैं। इससे उङ्गलो, गुल्फ, उदर, हृदय, 'रक्तसंचय होता है, मुखमण्डल नीलाम हो जाता है, रक वक्ष और गला आकृष्ट होनेसे रोगोकी दृष्टि सञ्चालनमें बाधा उपस्थित होने के कारण ही मुख नीलाभ | स्तम्भित हो जाती है, हनुरोध भी होता है, गलेका होता है। आंखको पुतली संकुचित हो जाती है। देहका पिछला भाग कठिन हो जाता है, रोगो धनुषको तरह चमड़ा सूख जाता और नरम हो जाता है। श्वास टेढ़ा हो कर आक्षिप्त हो जाता है। कुछ देर तक विराम मन्द पड़ जाता तथा भाराकान्त हो जाता है। चैत- के वाद फिर यह लक्षण दिखाई देता है। जरा सञ्चा- न्यता विलुप्त होने लगती है। इस अवस्थामें शिर लनसे या दूसरेके स्पर्शसे तुरन्त उक्त लक्षण दिखाई पकड़ कर हिलाने तथा कानमें उच्च शन्द करनेसे चेतना | देता है। अन्तमें स्नायुमएडली अवसन्न हो कर भाती है। इस अवस्थामें भी यदि विपकी क्रिया विनष्ट यन्त्रादि क्रिया विलुप्त होती है। इसके बाद रोगोको न हो, तो घोरतर तन्द्रा उपस्थित होती है। उस समय शीघ्र ही मृत्यु हो जाती है। किसी तरह चेतनता लाई नहीं जा सकतो। पत्तीना प्रतिकार-हार माय क्लोराल और क्लोरोफाके निकलता रहता है। श्वास गति, वैषम्य उपस्थित प्रयोग द्वारा इस विपकी चिकित्सा करनी चाहिये। होता, नाहीको द्र सगति हो जाती है, अन्तम विलफुल हो ४। पकानाइट-यह भो उद्भिद विप है । पकानाइट विलुप्त हो जाती है। इसी तरह क्रमसे मृत्यु हो बहुत भयङ्कर विप है। इसके एक प्रेमके १६ भागक जाता है। । । । एक भागसे मृत्यु हो सकती है। इससे शरीरमें जलन, प्रतिकारकी व्यवस्था-इसकी पहली चिकित्सा झिम झिमानी (झिम्मनी), भयानक यमन, स्नायु. ' वमन कराना है। “एमाकपम्प" द्वारा यह कार्य सुचारु- 'मएडलीको गति और ज्ञान क्रियाका निबद्ध होता है। अपसे 'सम्पादित होता है। विपीड़ित रोगीको टह हृदपिएड अबसन्न हो जाता, मूछावस्थामें रोगोकी लाते रहना चाहिपे, जिससे वह सोने न पाये। छाती | मृत्यु हो जाती है। किन्तु कभी भी हानका वैषम्य पर पर्यायक्रमसे गरम और शीतल जलका 'इस' प्रयोग नहीं होता है.। करना चाहिये। कानक निकट सदा उच्च शब्द करते। ' रहना चाहिये। इससे स्नायुमण्डली उत्तेजित होतो ___ प्रतिकार-डिजिटेलिस एकोनाइटको विपक्रियाका है। भिगे गमछेसे हाथ और पैरम माघात करना विनाशक है। सुतरां विजिटेलिन नामक वीर्य यमके नीचे प्रक्षेप कर ( Injection ) इसको चिकित्सा करनी चाहिये। ताड़ित प्रवाह प्रयोगसे भो उपकार होता है। 'देहम हाथका सञ्चालन कर रक्त संञ्चालनका संरक्षण चाहिये। करना उचित है। एमोनिया और अलकोहल पानीय. ___५। येलेडोना-धतूरा जातिका एक उमिज विष है। रूपसे व्यवहार करना चाहिये। काफोका जल भी उप। इससे आंखोंको पुतलियां फैल जाती, नाडीको गति तेज कारक है। श्वास गतिमें पम्य उपस्थित होने पर हो जाती, चमड़ा उत्तेजित और गर्म हो जाता, किसो , कृत्रिम श्वासप्रश्वास चलानेका उपाय करना चाहिये। चीजके गलेसे घोटने पर महाक्लेश होता, अत्यधिक पद्रोपिया पूर्ण मातासे त्वकके नीचे प्रक्षेप करनेसे बात पिपासा और प्रलाप उपस्थित होता है। इसके पीयंका उपकार होता है। प्रोकनिया भी अफोम विपका प्रति- नाम-एटोपिन है। पेधक है। . .. प्रतिकार-टमाक पम्प द्वारा विष वापर करना ३। लोकनाइन--पह उद्भिज विप है। विविध : नाहिये। मर्फिया इसका प्रतिषेधक है। अधस्त्यकर्म