पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष एकविंश भाग.djvu/७५०

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विप मर्पियाका प्रक्षेप ( Hypodermic injection ) द्वारा, हैं। कुछ लोगोंका कहना है, कि लालटेनमें किरासन इसमें विशेष उपकार होता है। तेल जलानेसे ऐसा नहीं होता, किन्तु यह उनको भूल वायवीय विष। है। चाहे किसी तरह हो किरासन तेल जलाया जाय, १। फ्लोरिन और मोमिन-यह दोनों वायवीय यिप | - उसका धूगा निकलेगा हो। इस पर यदि उसके बाहर भयानक उप्रताजनक है। निश्वासके साथ ये दोनों । निकलनेका पथ रुद्ध कर दिया जाये, तो यह अयश्य है, कएठके नीचे पहुचने पर कण्ठमालीमें भयानक आक्षेप कि उससे शरीरकी भीपण क्षति होतो तथा कभी कभी उपस्थित होता है। श्यासयन्त्रको श्लेमिक झिल्लो तो उससे मृत्यु तक हेर जाती है। इसका धूआँ श्वासके प्रदाह उत्पन्न होता है। इससे शीघ्र ही मृत्यु होती है। साथ साथ शरीरके भीतर पहुंच कई तरहका रोग उत्पन्न प्रतिकार-एमोनियाका वाष्प सूधना, घड़ा उपका | करता है। यदि दरवाजा वन्द भी न किया जाये, तो भी इसका धूां नासिका या मुहम भ्यासके साथ प्रवेश २। हाइडोक्लोरिक पसिद्ध-गैस-हाइसोक्लोरिककर जाता है। और हाइडोक्लोरिक एसिष्ट इन दोनों पदार्थों के गैस हो। प्रतिकार-वक्षम पर्यायक्रमसे शीतल और गरम उप्रताजनक और सांघातिक है। शिल्पादिके कारखानों जलका प्रयोग है। दैहिक रक सञ्चालनके लिपे हायसे में कभी कभी इस विषसे विपात हो कर कितने ही लोग देह मलना और कृत्रिम भ्यासका उपयोग साधन करना मर जाते है। इसकी प्रतिक्रिया भी पूर्ववत् है। प्रधान कर्त्तव्य है। । सलफरस पसिद्ध गैस-गन्धक जलानेसे यह ६ कार्यानिक अक्साइड गैस-इसमें विशुद्ध कार्योनिक गैस उत्पन्न होता है । यह उप्रताजनक और ध्यासरोधक | पसिर रहनेसे ही इससे विपलक्षण, उपस्थित होता है। इससे भी कण्ठनालो माक्षिप्त होती है। एमो- रहता है। कार्यानिक अक्साइड रक्तके हिमग्लोविनके नियाका बाप सूचनेसे इसका प्रतिकार होता है। साथ दृढ़ रूपसे विमिश्रित होता रहता है। इससे मरे ४। नाइद्रास मेपार (Vapour)-गेलभेनिक चेटरी- आदमीके रक्तका रङ्ग अधिकतर, समुज्ज्वल दिखाई देता से यह गैस उत्पन्न होता है। यह घाप्प फुस्फुसमें है। इसकी प्रतिक्रिया पूर्ण चत् है। फार्बोनमनक: प्रविष्ट होने पर उसमें प्रदाह उत्पन्न होता है और शोन साइद मिथित वायुके गाघाणसे तुरन्त ही मृत्यु हो ही मृत्यु हो जाती है। जाती है। ५। कानिक एसिड गैस-यह वायुकी अपेक्षा । कोयलेका गैस-इसके द्वारा श्वासरोध और बहुत भारी है और वायुके साथ फुस्फुसमें प्रविष्ट होने | ज्ञान विलुप्त होता है। इसको चिकित्सा कायॉनिक पर प्राणघातक होता है। लकड़ी आदिके जलाते . सिडके विषको चिकित्साको तरह है। समय भी यह विष पदार्थ उत्पन्न होता है। यह भीषण | ८ सलफरेटेड हाइड्रोजन गैस-यह भयङ्कर वाय विपवायु शरीरमें स्पर्श होते ही मनुष्य मृत्युमुवमें पतित वीय विष है। यह विषवायु घनीभूतमात्रामें देहमे प्रविष्ट होता है। पुराने कप' या "वन्द मोरियों में यह विष | होने पर तुरन्त मृत्यु होती है, श्वासरोध इसका प्रधान सञ्चित रहता है। ऐसे स्थलमें घुसा हुआ व्यक्ति लक्षण है। घायुके साथ विमिश्रित हो देहमें प्रविष्ट होने तुरन्त मर जाता है। घरमें किरासन तेल जला घरका | पर भी इसके द्वारा शूल, विवमिषा, वमन और तन्द्रा उप. श्रयाजा बन्द कर देनेसे जो भादमी उस घरमें रहते हैं, स्थित होती है । श्यासमन्दता और पसीना निकलना आदि. उनको देहमें उसका धूगो घुस जाता है, इससे उन- दुर्लक्षण क्रमशः दिखाई देते हैं। रक्तको लाल कणिका की शीघ्र ही मृत्यु होती है। बहुधा देखनेमें माता है, विश्लिष्ट हो जाती है। ऐसो अवस्था में हायसे देह कि बहुतेरे व्यकि किरासन तेल जला कर उस,' कमरेका मलने, उष्णताका प्रयोग और उत्तेजक औषधादि व्यवहार्य दुरवाज़ा बन्द कर लेने हैं और इस विपके शिकार होते | है। कुछ लोग समझते हैं, कि क्लोरिन गैस. जब रासा.