६६२
.
.
नामके कई तरह के विपन्न वा तय्यार हो रहे हैं। ये गलर्क-यह मयानक यिष है। इससे दुग्धका ,
सब "सिरम" पदार्थ हो इस समय उक्त संघातक रोगोंकी | तरह जो पदार्थ निकलता है, उससे भ्रूणहत्या को
वैधानिक विपन्न औषध स्थिर हुई है।
जाती है। इसका एक डाम खिलानेसे १५ मिनटमै
भारतमें उत्पन होनेपाले उद्भिज विषको किरिश्त । एक कुत्ता मर सकता।
१-काष्ठविष यह पाश्चात्य उभिद् विज्ञानमें '११। गांजा-इससे उन्मत्तता उत्पन्न होती है।
एकोनाइट नामसे प्रसिद्ध है। इस देशमें कई तरहके | गांजेके योजका नाम केनाधिन है। इससे मूर्छा और
काठविप दिखाई देते हैं। पाश्चात्य उद्भिद विज्ञान मृत्यु होती है।
पिद पण्डितोंने इस देशमें एकोनाइटम् फेरफ्स, एको १२i ढाकुर-इससे वमन और भेद होता है और
नाइटम नेपोलस, एकोनाइटम पामेटम, एकोनाइटम इसकी अधिकता होनेसे मृत्यु तक हो जाती है।
हिटारोफाइलाम आदि बहुतेरे वृक्षों में कारविप या ___१३ । माला-यह उभिद मणिपुर, ब्रह्म
एकोनाइटका प्रभाव देख पाया है । इस विषका विवरण और भूटानमें उत्पन्न होता है। यह देवम प्रविष्ट
इससे पहले लिखा गया है।
हो जाने पर धनुष्टंकारके विष लक्षण दिखाई देते है।
२। दादमारी या वनमिर्ज-इस वृक्षके पत्र दाहक ___१४। जयपाल-जयपाल, भयङ्कर भेदधमनकारक
विष है। इसके पतसे फोड़ा पड़ जाता है।
है। इसका वर्णन पहले पाक्त किया जा चुका है। .
३ काफमारो-काकमारी अल्पमात्रामे विपलक्षण
१५। धतूग-धतूरे के वियसे मोह ओर उन्मत्तता
प्रकाश न करने पर भी इसकी अधिक मात्रा सेवनसे
उत्पन्न होती है। पश्चिम और उत्तर भारत में इस विष. .
इससे विपके लक्षण प्रकट होते है। इसके बीजमे विप को प्रयोग विधि दिखाई देती है। यह दा तरहका .
रहता है । इसके बीज, जो विष रहता है, उसका नाम
है-Datura Fastuosi और Datura Siramonium
पाइको-टेकसिन है।
आयुर्वेदमें भी इसके दो भेद देखे जाते हैं, जैसं सादा
___४। कुकनी-यह उदमिद विष पक्षाव प्रान्तमें उत्पन्न
होता है। यह पशुके मारने में काम गाता है। ग्रामीण
सादा धतूरा और काला धतूर्ण ।
चमार इसी चिपका खिला कर गाय आदि पशुफिी
१६॥ वनगाव-बङ्गालके जङ्गलोंमे भी यह उद्भिद .
मार डालते है।
प्रचुर परिमाणसे उत्पन्न होता है। इसका फल विष...
५। किरानु-पक्षाव-प्रदेशमे यह उभिद् विप
'मय है।
दिखाई देता है। इसका मूल ही विषमय है।
१७ । वासिङ्ग-यह कुमायू जिलेमें अधिक पैदा होता
६। जेयफज, हिन्दीमें इसे लक्षणा कहते हैं-इसमें
है। इसका संस्कृत नाम' मालूम नहीं। पाश्चात्य .
धतूरेका चीज है, इसीलिये इसमे विपक्रिया प्रकाशित
उद्भिविज्ञान में इसका नाम Exatcaria Agallocha
होती है।
है। यह भयानक विष है । कुमायू में कुष्ठ रोगियोंकी
७। कुलबुद या पन ने-यह उभिद शिमला शैल |
'विकित्साके लिये व्यवहत होता है।
पर, बङ्गालगे और दाक्षिणात्यमें पैदा होता है।
। १८ । जवाशी-यह उद्भिद भूटानमें होता है। इसका
दन्ती-दन्तीका वीज उप्रताजनक है। यह
वल्कल अतीव विषमय है ! इसका संस्कृत नाम मालूम
सेवन करनेसे जयपालके बीजकी तरह यमन होता है।
नहीं। .
.
इसका दूसरा नाम तामालगोरो या जमालगोटा है।
१६कालीकारी--सका दूसरा संस्कृत नाम
इसका तेल वातरोगमें व्यवहत होता है।
गर्भधातिनी है। भारतवर्ष के जङ्गालोमे यह उद्भिद्
.. ' l चिकरो-यह एक तरहका विष क्रियाजनक दिखाई देता है। इसका भारतीय कोई नाम मालूम
उभिद है। हिमालय प्रदेशमें यह उभिद पैदा होता | नहीं। इसके द्वारा जयपालको तरह दस्त और के
| होती है।
स.
२
पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष एकविंश भाग.djvu/७५४
Jump to navigation
Jump to search
यह पृष्ठ शोधित नही है
