पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष एकविंश भाग.djvu/७५८

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६६६ विषदायक-विषम ( रहनेसे पर केवल यहो सब लक्षण देख विषदाताको विपपादप ( स० पु०) विपक्ष, विपद् म, कुचल।। पहचाना नहीं जा सकता। क्योंकि अनेक समय ऐसा विपपुच्छ ( स० दि०) जिसको पुच्छमें विष हो, जिसको भी देखा गया है, कि नितान्त मम्म्रान्त व्यकि भी राजाके छ जहरीली हो। मयसे या राजाशासे पिम्रान्त हो इस प्रकार असत्की विषपुच्छो ( स० पु०) वृश्चिक, बिच्छू । तरह चेष्टाए दिखलाता है। . विपपुर (स'. पु० ) ऋषिभेद। बहुवचनमें उक्त ऋषि- विषदायक (मपु०) विपदाता। | वंशधरोंका बोध होता है। (पा २४६३) . विपदूषण (स० वि०) १ विषनिवारक । “विषदूषणं विश्वस्य विषपुष्प ( स० क्ली० ) १ नोलपन, नीला कमल । २.विष. स्थावरजङ्गमोद्भवस्य दूषक निवर्तकम् (गयर्य० ६.१००।१ / युक्त पुष्प, जहरीला फूल । ३ मतसोपुष्प, अतसीका फूल । मायण) २ विपदुष्ट। (पु०) ४ मदनक्ष, मैनाफलका पेड़। . . विपदुष्ट (स. त्रि०) १ विषके द्वारा दूषित । २ विषपुष्पक (स.पु०) विपयुक्त पुष्पं यस्य -कन् । १ विपमिश्रित । मदनवृक्ष, मैनफल। २ विषपुष्पक भक्षणसे होनेवाला, विपद् म ( स० पु० ) कारस्कर वृक्ष, कुचला। ( राजनि० ) | रोग। "विपपुप्पैजनितः विपपुष्पको ज्वर: (पा ५।२।८६) विषधर (स० पु०) विष धरति धृ-यच । १ सर्प, सांप। विषप्रशमनी (स'० स्त्रो०) वन्ध्याककोटको वांझ ककड़ी। स्त्रियां डीप । २ विषधरी। , . ( येद्यकनि०) विषधर्मा ( स० स्रो०) शूकशिम्बी, केषांव। विपप्रस्ध ( स० पु०.) पर्वतमेदः । ( महाभारत पनप ) विषधाती ( स० स्त्री० ) विषाणां विपधरसर्पाणां धात्री | विषयञ्चिका (स' स्रो०) विच्छो नामकी लता । यह लता मातेय । जरत्कारुमुनिको स्त्री, मनसादेवी। लंधी होतो और घास-पातके ऊपर चढ़ती है। शरीरके जिस अगमें यह छू जाती है, यहां खुजलो होती है। विपधान (स० पु०) विषस्थान । (अपर्य २।३२।६ सायण)इसके पत्ते डेढ़ उंगली लये तथा पुष्प और फल छोटे विषध्वंसिन ( स० पु०) नागरमोथा । (वैद्य०निघ०) होते हैं। फल देखनेमे मावला जैता मालूम होता है। विपनाड़ी ( सत्रो०) विषतुल्य क्षतिकर समय। विषभद्रा ( स० स्त्री० ) हहन्ती, वडी दंतो। विषनाशन (स.पु०) विपं नाशयति नश ल्यु । १ गिरीष | विषभद्रिका ( स० स्त्री०) लघुदन्ती, छोटी, दंतो। वृक्ष, सिरिसका पेड़। २माणक, मानकच्च। (त्रि०) | विषभिपज ( स० पु०) विषस्य विपचिकित्मको या ३ विषनाशक, जो विषको दूर करता हो। भिपक्। विपर्व ध, सपरिया.! विपनाशिनी (स' खी० ) विप' नाशयितु शील यस्याः | विषभुजङ्ग ( स० पु०) विषधरसर्प, जहरीला सांप। .. विप नश-पिनि स्त्रियां ङोप । १ सर्पकङ्काली । २ वन्ध्या विषम (स. त्रि०) १ असमान, जो. घरावर न हो। २ . कर्कटिका, पांझ ककड़ी। ३ गन्धनाकुलो। भीषण विकट । ३ बहुत तोत्र, बहुत तेज । ४ जिसको विपनु ( स० त्रि०) विपं नुदति दूरोकरोति नुद-शिप ।। मीमांसा सहजमें न हो सके। ..... श्योनाक वृक्ष, सोनापाठा।। (क्ली०) ५ सङ्कट, विपत्ति । ६ पथके तीन विपत्रिका ( स० वि०) १ पतविपभेद, कोई जहरीला | प्रकारफे वृत्तों मेंसे. एक वृत्त। यह पद्य चतुष्पदी पत्ता । २ जमालगोटा आदि किसी जहरीले वीजका अर्थात् चार चरणयुक्त होता है.! यह वृत्त और छिलका। -जातिके भेदसे दो प्रकारका है। जो पद्य 'अक्षर सण्यामे विषपन्नग ( स० पु०) विपयुक्ता पन्नगः। सविपासप, निर्णय है, उसका नाम वृत्त है , इस वृत्तके भो फिर तीन जहरीला सांप। भेद है, सम, अद्ध और विषम । जिसके चारों चरणों में चिपपर्यन (स पु०) दैत्यभेद । . .. समान अशा रहते हैं, उसका नाम समवृत्त है। प्रथम ... ... . .(कथासरित्सा० ४५६३७६ ). | और तृतीय तथा द्वितीय और चतुर्थ चरणमें समान