पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष एकविंश भाग.djvu/७६६

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- विषमय-विषयोन्नत '.. विपमय (स.नि.) विषयुक्त, जहरीला। । विषमाक्ष ( स० पु० ) १ विपम नयन । २ शिव, महादेव । विषमराशि ( स० स्रो०) अयुग्मराशि : मेप, मिथुन, सिंह, (त्रिकापडशेज) तुला, धनुः और कुम्भ। - विषमाग्नि (स.पु०) जठराग्निविशेष । कहते है, जि. विषमरूप्य ( स० लि०) विषमादागत । विषम रूप्य | यह अग्नि कमी तो खाए हुए पदार्थो को अच्छी तरह (सिद्धान्तको०)। जो विषमसे आया हो। पचा देती है और कभी बिलकुल नहीं पचाती। विपमई निका (स० स्त्री० ) चिप मृधतेऽनया मृव-ल्युट विषमादित्य एक प्राचीन कधि । - स्यायें कन् । गन्धनाकुली। पिंधमाशन (सं० क्लो० ) वैद्यकके अनुसार ठीक समय विषमहिनी ( स० स्त्री० ) गन्धनाकुली, गन्धरास्ना। पर भोजन न करके समयके पहले या पीछे मधया थोड़ा विषमयकल ( स० पु० ) करुण निम्बुक, नारगी। या अधिक भोजन करना । अधिक भोजन करनेसे विषमभाग (सपु०) असमान अश। मालस्य, गातगुरुता, पेटके भीतर गुड़गुड़ाहट शब्द तथा विपमविशिख ( स० पु०) विषमा विशिखा चाणानि अल्प भोजन करनेसे शरीरकी कृशता और वलका क्षय (पञ्च ) यस्य । पञ्चवाण, कामदेव । | होता है। (भावप्र.) विषमवृत्त ( स० क्ली० ) वह वृत्त या छन्द जिसके चरण विपमाशुकर (संपु० ) प्रन्थिपर्ण मूल, गंठियन। . या पद समान न हो, असमान पोषाला गृत्त। विपमित (सं०नि०) १ प्रतिकूलतापाप्त । २ कुटिलीकृत । विषमवेग ( स० पु०) न्यूनाधिक वैग, धेगकी कमी बेशी। विषमीय (सं० वि०) विषमादागतम् विषम-छः (गहा- (माधवनि० ) | दिभ्पश्छः । पा ४२११३८ ) विषमसे प्राप्त, सङ्कटापन्न । विशशिष्ट (स'० पु०) मनुचितानुशासन, प्रायश्चित्त विपमुच ( स० वि०) विप मुञ्चतीति विषमुच किए। मादिके लिये व्यवस्थाका एक दोष । जान बूझ कर विपोझारणशील, जहर उगलनेवाला। ' अर्थात् इच्छानुसार भारी पाप करने पर तप्तकच्छ विपमुष्कक (स.पु० ) मदनवृक्ष, मैनफल । (वैद्यकनिषं) तथा अनिच्छासे अर्थात् अनजानमें भारी पाप करने विषधि (सं० पु०) १क्षपविशेष, यकायन । पर्याय- पर चान्द्रायणप्रतको व्यवस्था शालमें बताई है। कंशमुरि, सुमुष्टि, रणमुटिक, क्षुपडोडमुष्टि । गुण-कटु, यहां पर यदि विपरीत भायमें अर्थात् कामाचारीके | तिक, दोपन, रोचक तथा कफ, वात, कण्ठरोग और प्रति चान्द्रायण तथा अज्ञानत पापोके सम्वन्धमें तप्त. रक्तपित्तादिका दाहनाशक । (राजनि०) २ महानिम्य, कृच्छ व्रतको ध्यास्था दी जाय, तो यह व्यवस्था विपम | घोड़ा नीम। ३ कुचला 1 ५ जोवन्तो। ६ कलिहारी। शिष्ट दोपसे दूपित होता है। ७ मदनरक्ष। चिपमशील ( स० लि०) असरलप्रकृति, उद्धत । विपमुष्टिक (सं० पु० ) १ विपमुष्टि, घशायन। २ वृहत् विषमसाहस ( स० लि. ) अत्यधिक साहसयुक, बहुत | मालम्युषा, गोरखमु।। '३ कोटी, घनतरोई।' साहसी। विषमसिद्धि-पूर्व चालुक्यवंशीय राजा कुजविष्णु विश्वमुटिफा (सं० स्त्री०) विषमुष्टिक देखो। स्त्री०) शिरामलक, शिरायला। वर्द्धनका एक नाम, कीर्तिवर्माफे पुस । चालुक्यवश देखो। (विषमृत्यु (सं० पु० ) विषेण विषदर्शनमात्रेण मृत्युरस्य । . विषमस्थ ( स० त्रि०) विषमे उग्नतानते सङ्कटे वा तिष्ठ- जोयजीवपक्षी, चकोर पक्षी। . . तीति विषम-स्था क । १ उन्नतानत प्रदेशका | २ सङ्क- 'विषमेक्षण (स ०) १ विषमनयन । २ शिव। . टस्थ, आपद्कालका। ३ उपप्लय (उपद्रव प्राप्त ) विपमेषु (सं० पु०) विपमा अयुग्मानि इपयो वाणा, . देशस्था । (१ञ्च) यसा।' पञ्चवाण! कामदेव। ' विषम (स्रो०)। सौवीरवदय, झरवेरो। २ एक विषमोन्नत ( स० त्रि.) १ मोच निम्न, दालया। प्रकारका षछनागा २ स्थपुट।