पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष एकविंश भाग.djvu/७७२

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विषहा-विपादिन

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ओषधि। सिंघा Relnet . Koint . HII lugar , illnir माMAMAM नि ment. fim gri मानपी भाvिanit: namaintait fayषाप्रान्ति पूर्ण m luntilsini hanu r Hinा कि सपा पदमी पा" ufani dad गर्षको राशिमोगा सुशार गो ( उस मामराशि ) एक माम: रना पड़ता है। गराए सजगतिमें दिन, पार का दूसरा राशिमें जाना भसम्भय है। मतग सभी ठोक ठोक मीमांसा विस्तृतरूपसे नीचे को। "विष सहत् मीशा या तस्माद्विपहरी स्मृता।" विपाणवत् ( स० वि०), . ('देवीमागवत १४७४७ ) मनसा देखो। विषाणान्त ( स० पु०): ___ विपदा (स. स्त्रो०) विष हन्ति हन-उ-स्त्रियां टाप । १ देव विषाणिका (स० स्त्रे दालो लता, बंदाल! २ निधिोघास। (रत्नमाला) २ कर्फट यिपहारक ( स०पु.) भूकदम्ब । कर्क रङ्गी, कुल विहारिणी (स' स्त्री०) निर्विपा, निर्विपी- नामक घास। भगवतवरला विपदय ( स० वि०) विपं हृदये यस्य । जिसका अन्तः करण विषमय हो। यिपाणिन् । विपद्य (सं० त्रि०) वि.सह यत् । विशेष प्रकारसे सह- नीय, खू। सहने योग्य। विषा ( स० स्त्री०) १ अतिविषा, अतीस । पर्याय- काश्मीरा, अतिविषा, श्वेता, श्यामा, गुजा, अरुणाल । (रत्नमाला ) विश्वा, शृङ्गी, प्रतिविषा, , शुक्लकन्दा, उपविषा, भङ्गरा, घुणयल्लभा। गुण-उष्णवीर्या, कटु, तिक्त, पाचनी, दीपनी तथा कफ, पित्त, अतिसा आम, विष, कास, वमि और क्रिमिनाशक । (भाव २ लाङ्गलिका, फलिहारी। (वैद्यक निध० ) तुण्डी, कड़वो कन्दूरो। ४ कटुतुम्यो, कर ५काकोली।६धुद्धि, अक्ल । विपाक्त ( स० त्रि.) विपमिश्रित, विपण मिला हो, जहरोला। विपाख्या (स'० स्त्री०) शुक्लकन्दाति विपाप्रत ( स० पु० ) तलवार । विषाङ्कर ( स० पु०) शल्यास्त्र, विपाङ्गाना ( स० स्त्री०) विपनारी । " विषाण ( स०नि०) १ विशेष प्रकारसे मददार ५।४।११) (पु.) २ कुट या फुड नामक औ५ ३ पशुङ्ग, पशुका साग । ४ हस्तिदन्त, हाथीदांत ।। (शिशुपालवध श६०) २ वराहदम्स, सूअरका दांत ।। ६ मेपटङ्गी, मेढासिंगी । इसका फल सोगके जैसा होता विपादयत् । है। ७ औषधको लता। ८ वृश्चिकालो, यिच्छ नाम- विपादिता (सं. को लता। शोरकोली। १० वाराहोकन्द, गेठी। धर्म या भाव। .... ११ निन्तिड़ी, इमली। ' ' " विषादित्य (स० क्लो०). विपाणक ( स० पु० ) विपाण स्वार्थे कन् । विषाण देखो। -भाय या.धर्म । विषाणका' ( स० स्त्री० ) वह जिससे रोग अच्छी तरह / पिपादिन ( स० वि०) विषादो पहचाना जाय । । (अथर्ग ६४४३). . इनिविषादयुक, विषपण। : प विपुकारका नियम, सूर्पको मेराशि संक्रमण पूर्व और परनाइप्रतिरोम सौर भनुरोन गति २४सके च विधुर भारन्न होता है। जिस मधुबालोदर है, अभद कपुररे.. दन्दुरे भरा होरे है. उस - TO पिन र स्थानों का कित्य है। एिर है : म मरने रम्भ