पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष एकविंश भाग.djvu/७७४

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

६७८ विपुद्रह-विपुष २ सकल, सभी। "धनोरधि विपुण-पते घ्यायन ।' राशिमे जो विपुव प्रारम्भ होता है, उसका नाम 'महा. (ऋक २३३४), विषुवं' है और चित्रा नक्षत्रके शेगद्ध में तुलाराशिक विधुर । ( स० वि० ) विपु विश्वान् सकलान शबून पारम्भमें जो विपुवरेखा स्पर्श होती है उसे 'जलविषुव ... दूधति हिनस्ति इति विपुद्र हक । शर, वाण, तीर । "विपुद्र हेव यशमूहथुर्गि।" (ऋष दा२६।१५) प्रतिलोम और अनुलोमका नियम-जिस शकादमें विपुप (नक्की० ) विपुत्र ।। सूर्यको मेपराशि सञ्चारके दिन जब विषुव आरम्म होता । विपुरूप ( स० लि.) १ नाना रूप, अनेक प्रकारका । है, तब उस शकको ३०यो चैन और ३०धों आश्विनको (ऋक् १११२३१७ )२ विषमरूपका। (ऋक् ६१५८१) दिन और रात्रिका मान समान रहता है । ६६ वर्ष . ३ नानावर्ण, अनेक रंगका। (ऋक् ६७०३) ८ मास तक यही नियम चलता है। प्रतिलोम गतिको । यिपुर ( स०, क्ली०)१ समरासिन्दिव फाल, वह समय जगह सूर्याके मेप गौर तुला संक्रमणके एक एक दिन जय कि सूर्य विपुवरेखा पर पहुंचता है और दिन तथा पहले विपुव मारम्भ होता है । अतएव इस (प्रतिलोम) : रात दोनों वरावर होते हैं। चैत्रमासके अन्तिम दिन में गतिमें प्रत्येक ६६ वर्ष ८ मासके बाद मेप और तुला जब सूर्य मीनराशिको पार कर मेपराशिमें तथा उसो संक्रमणके एक एक दिन पहले विपुव बारम्भ होने प्रकार आश्विनमासके अन्तिम दिनमें जब वे कन्यराशि कारण उन दो मासोंके ( चैत्र और मांश्विन ) एक एक को अतिक्रम कर तुलाराशिमें जाते हैं, उसी समयका दिन पहले अर्थात् १म ६६ वर्ष ८ मास तक ३०वीं को नाम 'चिपुय' है, पयोंकि इस दिन दिन और रातका २य ६६ वर्ष ८ मास २५वीको ३य ६६ वर्ष ८ मास . मान समान रहता है। इस उक्तिसे यह विश्वास हो । २८वोंको ४ा ६६ वर्ष ८ मास २७ वी को इत्यादि । सकता है, कि आजकल पञ्जिकामें दिवारात्रिका समान | प्रकारसे दिन और रात्रिका मान समान होता है. वीस मान हवीं चैत और घी आश्विनको लिखा रहता है, । ६६ वर्ष ८ मासके बाद या इकोस ६६ वर्ष ८ मासक नम फ्या उसी तारीख में विपुषसंक्रान्ति होगो १ अर्थात् । भोतर विपुव आरम्भ हो कर वर्तमान ( १८५१ शकाब्द) सूर्य उक्त मितीको हो मोनसे मेपमें सथा कन्यासे तुलामें | यो चैत्र और 'धी आश्विनको दिन और रात्रिका जायंगे। किन्तु यथार्थ में वह नहीं है। क्योंकि, मोन- मान साएन भाव चला आता है । फिर अनुलोम राशिमें संक्रमणसे सूर्यको राशिभोगकालके नियमा | गतिस्थलमै भो मेष और तुला संक्रमणके दिन विषुध नुसार यहाँ ( उस मोनराशिमें ) एक मास तक आरम्भके बाद ऊपर कहे गयेके अनुसर ६६ वर्ष ८ मास रहना पड़ता है। अतपच सहजगतिमें ६ दिन बाद के अन्तर पर एक एक दिन पोछे विपुष मारम्भ होता उनका दूसरी राशिमें जाना असम्भव है। अतएव है । अर्थात् १ ६६ वर्ष ८ मास ३०वी चैन और ३०यी इसकी ठीक ठीक मीमांसा विस्तृतरूपसे नीचे को | आश्विनको २६६ वर्ष ८ मास, १लो वैसाख और लो कार्तिकको, ३य १६ वर्ष ८ मास २री घेशान और री , विपुपारम्भका नियम, सूर्यको मेपराशि संक्रमणक, कार्तिकको, इत्यादि नियासे दिन और रात्रिका मान पूर्व और पश्चात्, प्रतिलोम और अनुलोम गति द्वारा समान होता है। २७ दिनके मध्य विपुव आरम्भ होता है। जिस जिस सूर्णकी मेषराशि संक्रमणके पूर्व और पश्चात्, '. दिन विपुव आरम्भ होता है अर्थात् सूर्य विपुररेखाके प्रतिलोम और , अनुलोम गति द्वारा २७ दिनके ' पूर्व पश्चिम मार्शविन्दुके मध्यगत होते हैं, उसी उसो | मध्य विषुव आरम्भर्ण होता है। इसका स्फुटाये यह दिन पृथियोंके जिन सय स्थानों में सूर्यका नित्य दर्शन है, कि सूर्यको मेराशि सफमण (३० यो चैत्र) - . होता है, वहां दिन और रात्रिका परिमाण समान रहता दिनसे ले कर, पूर्ववत्तौ २७ दिन (४थो चैत). है। विषुव दो है। अश्विनी नक्षत्रके प्रारम्ममें मेष- तक प्रतिलाम गतिसे तथा उस दिन (३० षी चैत )...